Tuesday, April 23, 2024
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1984 सिख दंगा मामले में सज्‍जन कुमार को उम्र कैद, दिल्‍ली हाईकोर्ट ने कहा राजनेताओं की शह पर हुआ 'नरसंहार'

सिख विरोधी दंगों के 34 वर्ष बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि इसका षड्यंत्र उन लोगों ने रचा जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: December 17, 2018 23:36 IST
Sajjan Kumar- India TV Hindi
Sajjan Kumar

 

नई दिल्ली: सिख विरोधी दंगों के 34 वर्ष बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि इसका षड्यंत्र उन लोगों ने रचा जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने नरसंहार के खिलाफ कानून बनाए जाने का भी आह्वान किया। अदालत ने कानूनी व्यवस्था को मजबूत करने की अपील की ताकि जनरसंहार के षड्यंत्रकारियों को जवाबदेह बनाया जा सके। अदालत ने कहा कि मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार को घरेलू कानून का हिस्सा नहीं बनाया गया है और इसका तुरंत समाधान करने की जरूरत है। इसने 2002 के गोधरा बाद गुजरात दंगों और 2013 में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों का भी जिक्र किया जो 1947 के बाद हुए बड़े नरसंहारों में शामिल हैं जिनमें अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया।

निचली अदालत द्वारा 73 वर्षीय कुमार को बरी किए जाने के फैसले को उच्च न्यायालय द्वारा पलटे जाने का असर कांग्रेस के उनके साथी नेता कमलनाथ के मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर शपथ ग्रहण पर भी देखा गया। भाजपा और उसके सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने कांग्रेस नेतृत्व से जवाब मांगा है क्योंकि सिख समूहों ने दंगे में कमलनाथ के दोषी होने का आरोप लगाया था। कमलनाथ ने दंगों में किसी तरह की भूमिका से इंकार किया और कहा कि वह किसी भी दंगा मामले में आरोपी नहीं हैं। दंगों को मानवता के खिलाफ अपराध करार देते हुए उच्च न्यायालय ने कुमार को उनके नैसर्गिक जीवन के शेष समय तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई। उन्हें आपराधिक षड्यंत्र और हत्या के अपराध के लिए उकसाने, धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सांप्रदायिक सौहार्द के खिलाफ काम करने और गुरुद्वारे को अपवित्र एवं नष्ट करने का दोषी पाया। सज्जन कुमार को जिस मामले में दोषी ठहराया गया है वह दक्षिण पश्चिम दिल्ली के पालम कॉलोनी में राजनगर पार्ट-एक इलाके में पांच सिखों की एक-दो नवम्बर 1984 को हुई हत्या से जुड़ा हुआ है। इस दौरान राष्ट्रीय राजधानी और देश के अन्य हिस्सों में दंगे फैले हुए थे ।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा 31 अक्टूबर को हत्या किए जाने के बाद एक नवम्बर और चार नवम्बर 1984 के बीच भड़के सिख विरोधी दंगों में 2733 सिख मारे गए थे। अदालत ने कुमार और पांच अन्य दोषियों को 31 दिसम्बर 2018 तक आत्मसमर्पण करने और दिल्ली से बाहर नहीं जाने के निर्देश दिए। कुमार की प्रतिक्रिया अभी नहीं मिल पाई है। उच्च न्यायालय में उनका प्रतिनिधित्व करने वाले उनके वकील अनिल शर्मा ने पीटीआई से कहा कि कांग्रेस नेता फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील करना चाहते हैं। शर्मा ने कहा कि कुमार राजधानी में ही हैं और अगर 31 दिसम्बर से पहले अपील नहीं की जाती है तो वह आत्मसमर्पण करेंगे। सीबीआई की अपील पर कुमार को बरी किए जाने को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने कहा कि मामले में आरोपी को कठघरे तक तीन गवाहों जगदीश कौर, उनके रिश्तेदार जगशेर सिंह और निरप्रीत कौर लाए।

अदालत ने गौर किया कि जगदीश कौर के पति, बेटे और तीन रिश्तेदार केहर सिंह, गुरप्रीत सिंह और रघुविंदर सिंह इन दंगों में मारे गए थे। निरप्रीत कौर ने देखा था कि गुरुद्वारे को जला दिया गया और उग्र भीड़ ने उनके पिता को जिंदा जला दिया। जगदीश कौर और निरप्रीत कौर ने कहा कि भले ही 34 वर्ष लंबा वक्त होता है लेकिन वे आरोपी का पर्दाफाश करने के लिए प्रतिबद्ध थे और न्याय के लिए उनकी लड़ाई जारी रहेगी। जगदीश कौर ने कहा कि इस फैसले से कुछ राहत मिली है। इन वर्षों में हमने जितना अन्याय झेला है उतना किसी को न झेलना पड़े। अदालत ने कहा कि देश के विभाजन के समय पंजाब, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या उसी तरह दुखदायी याद है जैसा कि नवम्बर 1984 में निर्दोष सिखों की हत्या हुई। इसी तरह से 1993 में मुंबई में बड़े पैमाने पर हत्या, 2002 में गुजरात में, 2008 में कंधमाल ओडिशा में और 2013 में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में नरसंहार हुए। इसने कहा कि इन बड़े अपराधों में साझा बात यह रही कि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया और हमले प्रभावशाली राजनीतिक ताकतों के संरक्षण में हुए जिसमें कानून लागू करने वाली एजेंसियों की मिलीभगत रही। 

भाजपा और शिअद ने फैसले की प्रशंसा करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया और कांग्रेस पर निशाना साधा जबकि विपक्षी दल ने सिख विरोधी दंगा मामले की कानूनी प्रक्रिया का राजनीतिकरण नहीं करने की चेतावनी दी। भाजपा के वरिष्ठ नेता अरूण जेटली ने इस फैसले का हवाला देते हुए कमलनाथ को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की आलोचना की और दावा किया कि सिख उन्हें समुदाय के खिलाफ हिंसा में दोषी मानते हैं। केंद्रीय मंत्री और शिअद की नेता हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि फैसले ने विश्वास दिलाया है कि कानून जल्द ही अन्य कांग्रेस नेताओं पर शिकंजा कसेगा जो नरसंहार में कथित तौर पर शामिल थे। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी फैसले की सराहना करते हुए कहा कि अंतत: न्याय हुआ। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि न तो उनकी पार्टी न ही गांधी परिवार की दंगे में किसी तरह की भूमिका थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सिख विरोधी दंगा मामले को देश के राजनीतिक परिदृश्य से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कानून अपना काम करेगा। 

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