सुप्रीम कोर्ट ने पेट्रोल ने 20 फीसदी इथेनॉल मिलाने का विरोध करने वाली याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही यह भी साफ हो गया है कि देशवासियों को इथेनॉल फ्री पेट्रोल का विकल्प नहीं मिलेगा। देश में इन दिनों इथेनॉल का मुद्दा गर्म है। इसी बीच एक याचिका में कहा गया था कि देशवासियों को इथेनॉल फ्री पेट्रोल का विकल्प भी मिलना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और के विनोद चंद्रन ने पूरे मामले की सुनवाई की और सरकार की तरफ से भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि का पक्ष सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी।
सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट सदन फरसत ने याचिकाकर्ता का पक्ष रखा। उन्होंने नीति आयोग की 2021 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि देश में 2023 से पहले बने वाहनों के लिए 20 फीसदी इथेनॉल वाला पेट्रोल उपयुक्त नहीं है। इससे वाहनों का माइलेज छह फीसदी तक कम होता है। वकील ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता इथेनॉल वाले पेट्रोल के खिलाफ नहीं है। वह सिर्फ पुराने वाहनों के लिए बिना इथेनॉल वाले पेट्रोल का विकल्प चाहता है।
सरकार का पक्ष
भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि याचिकाकर्ता सिर्फ एक नाम है। उसके पीछे बड़ी लॉबी काम कर रही है। सरकार ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए यह नीति बनाई थी। इससे गन्ना व्यापारियों को फायदा हो रहा है। देश के बाहर बैठे लोग यह नहीं तय कर सकते कि देश में कैसा पेट्रोल मिलेगा। इसके बाद सीजेआई ने याचिका खारिज कर दी।
क्या है मामला?
भारत में सरकार पेट्रोल में 20 फीसदी तक इथेनॉल मिलाती है। इससे गन्ना किसानों को फायदा मिलता है और उनका गन्ना ऊंची कीमत में बिकता है। हालांकि, इसका असर वाहनों के माइलेज पर पड़ता है। कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने से वाहनों का माइलेज कम होता है और कई वाहनों में भी गड़बड़ी आती है। हालांकि, सरकार ने इन रिपोर्ट का खंडन किया है।