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"सियासी दलों के अधिकारों का हनन नहीं होने दिया जा सकता", सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा

बीआरएस से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने तेलंगाना विधानसभा के अध्यक्ष से पूछा है, "उचित समय" का क्या मतलब है?

Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published : Feb 10, 2025 23:53 IST, Updated : Feb 11, 2025 0:01 IST
सुप्रीम कोर्ट
Image Source : FILE PHOTO सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने भारत राष्ट्र समिति (BRS) से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर फैसले में हो रही देरी पर चिंता जाहिर की। न्यायालय ने तेलंगाना विधानसभा के अध्यक्ष से पूछा है कि "उचित समय" का क्या मतलब है, जब वे इन अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय देने में इतनी देरी कर रहे हैं। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में किसी भी पार्टी के अधिकारों का हनन नहीं होने दिया जा सकता है।

यह सुनवाई न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ द्वारा की जा रही थी। यह पीठ दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। एक याचिका बीआरएस द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि कांग्रेस में शामिल हुए उनके विधायकों की अयोग्यता पर फैसला देने में अत्यधिक समय लिया जा रहा है। दूसरी याचिका दलबदल करने वाले 7 अन्य विधायकों से संबंधित थी।

पार्टियों के अधिकारों के हनन पर कोर्ट ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान अदालत ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष से पूछा कि अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए "उचित समय" का क्या मतलब होता है। अदालत ने कहा, "लोकतंत्र में पार्टियों के अधिकारों का हनन नहीं होने दिया जा सकता। हम विधायिका और कार्यपालिका के कामकाज का पूरा सम्मान करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संसद के अधिनियम को नजरअंदाज किया जाए।"

तेलंगाना हाई कोर्ट ने क्या कहा था?

तेलंगाना हाई कोर्ट ने नवंबर 2024 में एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि विधानसभा अध्यक्ष को इन अयोग्यता याचिकाओं पर "उचित समय" के भीतर निर्णय लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अब तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष से यह स्पष्ट करने को कहा कि "उचित समय" शब्द का क्या अर्थ होता है और इसे कितने समय में पूरा किया जाएगा।

अधिकारियों द्वारा यह कहा गया कि तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष ने इन अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए कोई ठोस समयसीमा नहीं निर्धारित की है, जिसके कारण यह मामला अदालत में पहुंचा है। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यदि "उचित समय" का मतलब असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का होता है, तो इसे प्राथमिकता पर लाना चाहिए। 

विधानसभा की ओर से पेश वकील ने अदालत से एक सप्ताह बाद मामले की सुनवाई करने की अनुमति मांगी। इस पर पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 18 फरवरी को तय की। याचिकाकर्ताओं की ओर से उपस्थित वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि "उचित समय" का अर्थ असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तीन महीने के भीतर होगा। (भाषा इनपुट)

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