Thursday, May 02, 2024
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क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड और क्यों हो रहा है विरोध ? जानिए इसके बारे में सबकुछ

देश का कानून सब पर समान रूप से लागू होता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून होगा। 

Niraj Kumar Written by: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published on: April 30, 2022 15:07 IST
Representational Image- India TV Hindi
Image Source : FILE Representational Image

Highlights

  • यूनिफॉर्म सिविल कोड यानि हर नागरिक के लिए एक जैसा कानून
  • धर्म के आधार पर रियायतों की कोई गुंजाइश नहीं होगी
  • शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने कहा था

Uniform Civil Code : देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड या फिर हिंदी में कहें तो समान नागरिक संहिता की मांग फिर जोर पकड़ने लगी है। यूनिफॉर्म सिविल कोड में पूरे देश में एक समान कानून बनाने और उसे सब पर समान रूप से लागू करने की बात कही गई है। यह हाल के दिनों में तब चर्चा में आया जब उत्तराखंड चुनाव से पहले वहां के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अगर उत्तराखंड में फिर से बीजेपी की सरकार बनती है तो वे प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करेंगे। पहले तो इसे चुनावी जुमले के तौर पर लिया गया लेकिन वहां सरकार बनने के बाद फिर से सत्ता संभालने वाली पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने अपनी पहली मीटिंग में यूनिफॉर्म सिविल कोड का मसौदा तैयार करने के लिए कमेटी गठन करने का ऐलान कर दिया। अब उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की सत्ता में दोबारा वापसी के बाद वहां के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि यूपी जैसे राज्यों के लिए इसकी सख्त जरूरत है। वहीं एक तबका इसका विरोध भी करता रहा है। विरोध के उनके अपने तर्क हैं। आइये यहां हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है ? इसका क्यों विरोध हो रहा है? अदालतों ने इसे लेकर क्या कहा है और संविधान में क्या प्रावधान है।

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड

यूनिफॉर्म सिविल कोड को आसानी से समझना हो तो यह कहा जा सकता है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक जैसा कानून। व्यक्ति चाहे किसी भी जाति या धर्म का क्यों न हो, देश का कानून समान रूप से लागू होगा। यूनिफॉर्म सिविल कोड में शादी, तलाक और जमीन जायदाद के मामले में भी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होने की बात कही गई है। इन मामलों में धर्म के आधार पर कोई रियायत नहीं मिलनेवाली है, जैसा कि अबतक होता रहा है। 

संविधान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा 

दरअसल, देश के संविधान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा है और इसकी मूल भावना समानता की है। देश का कानून सब पर समान रूप से लागू होता है। लेकिन अभी भी धर्म के मामलों में रियायतें मिली हुई हैं। जिसके चलते कुछ मामलों में देश का कानून प्रभावी नहीं रह पाता है और धर्म के आधार पर मिली हुई रियायतें समानता और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को चोट पहुंचाती हैं।  यही वजह है कि वर्ष 1986 में शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कही थी। लेकिन तत्कालीन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए शरीयत को प्राथमिकता दी थी। 

सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून 

यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून होगा। मौजूदा समय में मुस्लिम, ईसाई और पारसी के लिए अलग पर्सनल लॉ है जबकि हिंदू सिविल कोड के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध अपने मामलों का निपटारा करते हैं। इस तरह की व्यवस्था की आड़ लेकर अन्याय और जुल्म भी होते रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तीन तलाक का है जिसे भारी विरोध के बाद भी मौजूदा सरकार ने खत्म कर दिया। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ भी कम होगा। क्योंकि धर्म की आड़ लेकर कुछ विशेष मामलों में होने वाले जुल्म पर कानून का शिकंजा कसेगा। 

यूनिफॉर्म सिविल कोड का क्यों किया जा रहा विरोध

यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करनेवालों का तर्क है कि इसके लागू होने से लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं से वंचित हो जाएंगे और इन्हें मानने का उनका अधिकार छिन जाएगा। क्योंकि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से शादी-विवाह, जमीन जायदाद, संतान और विरासत जैसे मामलों में जो अलग-अलग रियायतें है वो खत्म हो जाएंगी और हर धर्म के लिए एक ही कानून होगा। वहीं इसे लेकर सबसे ज्यादा विरोध कट्टरपंथी मुस्लिमों की ओर से हो रहा है और वह इसे अपने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बताते हैं। शाहबानो मामले में भी मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव के आगे ही तत्कालीन केंद्र सरकार को झुकना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना पड़ा था। 

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अदालतों ने क्या कहा

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सबसे बड़ा घटनाक्रम शाहबानो के मामले से जुड़ा है जिसका इस लेख में हम पहले भी जिक्र कर चुके हैं। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा महिला के पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था और साथ ही देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही थी। लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों के दवाब में आकर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पार्लियामेंट में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और एक तरह से यूनिफॉर्म सिविल कोड की बहस को जमींदोज करने का काम किया। इसके बाद भी समय-समय पर अदालतों के पास ऐसे मामले आते रहे जहां अलग-अलग धर्मों के चलते न्यापालिका पर बोझ बढ़ता गया और अदालतों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कही। 

हाल में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कहा कि भारतीय समाज अब सजातीय हो रहा है। समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़ी बाधाएं मिटती जा रही हैं। कोर्ट ने अनुच्छेद 44 के तहत यूनिफॉर्म सिविल कोड का उल्लेख करते हुए कहा कि केंद्र सराकर को इस पर एक्शन लेना चाहिए।

संविधान में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड का प्रावधान 

देश में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को लेकर बहस आजादी के जमाने से ही चल रही है। भारत के संविधान के निर्माताओं ने सुझाव दिया था कि सभी नागरिकों के लिए एक ही तरह का कानून होना चाहिए। यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत आता है और इसमें कहा गया है कि इसे लागू करना राज्य की जिम्मेदारी है। राज्यों का दायित्व है कि भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।  लेकिन आज तक यह पूरे देश में लागू नहीं हो पाया है। आजादी के पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार हिंदू कोड बिल लेकर आई जिसका मकसद हिंदू समाज की महिलाओं पर लगी बेड़ियों से मुक्ति दिलाना था। वहीं दूसरी तरफ मुसलमानों के शादी-ब्याह, तलाक़ और उत्तराधिकार के मामलों का फैसला शरीयत के मुताबिक होता रहा, जिसे मोहम्मडन लॉ के नाम से जाना जाता है। अब तक यही व्यवस्था चलती आ रही है। लेकिन उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी की सरकार के कदम से यूनिफॉर्म सिविल कोड के मसौदे का रास्ता साफ हो गया है। अगर उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो वह इस कानून को लागू करनेवाला देश का पहला राज्य होगा।

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