Tuesday, April 23, 2024
Advertisement

राफेल पर फैसला हैरत भरा, मगर ये 'क्लीनचिट' नहीं: सिन्हा, शौरी, भूषण

राफेल सौदे में विवादास्पद ढंग से 36 विमानों की खरीद के संबंध में अदालत की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग कर रहे याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अत्यंत दुखद और हैरत भरा बताया

IANS Reported by: IANS
Published on: December 15, 2018 7:38 IST
राफेल पर फैसला हैरत भरा, मगर ये 'क्लीनचिट' नहीं: सिन्हा, शौरी, भूषण- India TV Hindi
राफेल पर फैसला हैरत भरा, मगर ये 'क्लीनचिट' नहीं: सिन्हा, शौरी, भूषण

नई दिल्ली: राफेल सौदे में विवादास्पद ढंग से 36 विमानों की खरीद के संबंध में अदालत की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग कर रहे याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अत्यंत दुखद और हैरत भरा बताया, मगर कहा कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे में सरकार को 'क्लीनचिट' दे दी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर आश्चर्यजनक ढंग से अपनी ही न्यायिक समीक्षा के दायरे को छोटा कर लिया। मोदी सरकार इस सौदे में भ्रष्टाचार के जिन आरोपों के संतोषजनक जवाब भी नहीं दे पा रही थी, उनकी अगर स्वतंत्र जांच भी न हो तो देशवासियों के कई संदेहों पर से पर्दा नहीं हटेगा। 

Related Stories

ऐसे में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को झूठी जानकारी देकर जिस तरह गुमराह किया वो देश के साथ धोखा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का एक आधार यह बताया गया कि केंद्र सरकार ने सीएजी से लड़ाकू विमान की कीमतें साझा की, जिसके बाद सीएजी ने पीएसी (लोकलेखा समिति) को रिपोर्ट दे दी और फिर पीएसी ने संसद के समक्ष राफेल सौदे की जानकारी दे दी है, जो अब सार्वजनिक है।

उन्होंने कहा, "हमें यह नहीं पता कि सीएजी को कीमत का ब्यौरा मिला है या नहीं, लेकिन बाकि सारी बातें झूठ हैं। न ही सीएजी की तरफ से पीएसी को कोई रिपोर्ट दी गई है, न ही पीएसी ने ऐसे किसी दस्तावेज का हिस्सा संसद के समक्ष प्रस्तुत किया और न ही राफेल सौदे के संबंध में ऐसी कोई सूचना या रिपोर्ट सार्वजनिक है। लेकिन सबसे हैरत की बात है कि इन झूठे आधार पर देश की शीर्ष अदालत ने राफेल पर फैसला सुना दिया!"

सिन्हा, शौरी और भूषण ने कहा कि ऑफसेट पर उठ रहे सवालों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह निर्णय फ्रांस के दसॉ एविएशन का था जो वर्ष 2012 से ही रिलायंस से चर्चा में था, जबकि सच्चाई यह है कि जिस रिलायंस पर आज सवाल उठ रहे हैं वो अनिल अंबानी की है और 2012 से जिनसे दस्सो की चर्चा रही थी वो मुकेश अंबानी की। ये दोनों दो अलग अलग कंपनियां हैं और अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस तो 2015 में प्रधानमंत्री द्वारा फ्रांस में राफेल सौदे की घोषणा के कुछ ही दिनों पहले गठित की गई थी। यानी अनिल अंबानी की रिलायंस को ऑफसेट का फायदा पहुंचाने के मामले में भी अदालत को गुमराह किया गया।

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत अपनी न्यायिक समीक्षा के दायरे को आधार बनाकर याचिका खारिज की है। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे में सरकार को 'क्लीनचिट' दे दी है। 

सिन्हा, शौरी और भूषण ने कहा कि यह फैसला भी सहारा, बिड़ला मामलों जैसे पिछले फैसलों की तरह ही है, जिनमें पारदर्शी ढंग से जांच करवाने की बजाय मामले को रफा दफा कर दिया गया। राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप देशवासियों को तब तक आंदोलित करते रहेंगे, जब तक कि मामले में निष्पक्ष जांच करके दूध का दूध और पानी का पानी न हो जाए। देश की खातिर इस मामले की निष्पक्ष जांच बेहद जरूरी है।

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Politics News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement