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'कब शुरू होगा, कब खत्म होगा और कब लागू होगा?' जाति जनगणना पर ओवैसी ने केंद्र से पूछा सवाल

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जाति जनगणना पर केंद्र सरकार से सवाल पूछा है। उन्होंने केंद्र से जाति जनगणना कराने की टाइमलाइन पूछी है। ओवैसी ने सवाल किया कि बीजेपी और एनडीए बताएं कि ये कब शुरू होगा, कब खत्म होगा और कब लागू होगा?

Edited By: Amar Deep
Published : May 03, 2025 06:55 am IST, Updated : May 03, 2025 06:55 am IST
असदुद्दीन ओवैसी।- India TV Hindi
Image Source : ANI असदुद्दीन ओवैसी।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार से जाति जनगणना कराए जाने को लेकर सवाल किया। उन्होंने पूछा कि देश में जाति जनगणना कब कराई जाएगी और इसकी प्रक्रिया कब तक पूरी होगी? ओवैसी ने पसमांदा और गैर-पसमांदा मुसलमानों की भी अलग-अलग गणना कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि हम देशभर में जाति जनगणना की मांग उठाते रहे हैं। आखिरी बार जाति जनगणना 1931 में हुई थी, ऐसे में अगर जाति सर्वेक्षण होगा तो पता चलेगा कि किसे कितना लाभ मिल रहा है और किसे नहीं, इसलिए यह जरूरी है।

'समयसीमा बता दें बीजेपी-एनडीए'

जाति जनगणना पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "मेरी पार्टी ने 2021 से मांग की थी कि देश भर में जाति सर्वेक्षण होना चाहिए। आखिरी जाति सर्वेक्षण 1931 में हुआ था, अगर जाति सर्वेक्षण होगा तो पता चलेगा कि किसे कितना लाभ मिल रहा है और किसे नहीं, किसकी आमदनी क्या है और कौन सी कास्ट ज्यादा आगे बढ़ गई, कौन पीछे रह गया, इसलिए यह जरूरी है। हम भाजपा और एनडीए से सिर्फ एक बात कहना चाहेंगे, हमें समयसीमा बता दीजिए कि यह कब शुरू होगा, कब खत्म होगा और कब लागू होगा? क्या यह 2029 के संसदीय चुनावों से पहले हो जाएगा या नहीं होगा?"

पसमांदा मुसलमानों की जमीनी हकीकत आएगी सामने

वहीं पसमांदा मुसलमानों के जाति सर्वेक्षण को लेकर ओवैसी ने आगे कहा, "पसमांदा मुसलमानों की स्थिति की जमीनी हकीकत सभी को पता चल जाएगी, उन्हें पता चल जाएगा कि गैर-पसमांदा मुसलमानों की स्थिति कितनी खराब है, ये सब जरूरी है। ताकि यह सुनिश्चित हो कि लाभ हाशिये पर पड़े लोगों को मिले। जब अमेरिका ने सकारात्मक कार्रवाई की बात की, तो अफ्रीकी-अमेरिकी, यहूदी और चीनी इससे लाभान्वित हुए। अमेरिका शक्तिशाली होता गया। इसलिए, भारत के लिए ऐसी जनगणना होना जरूरी है। उसके बाद, उन्हें जरूरी कदम उठाने होंगे।" एक अन्य बयान में उन्होंने कहा कि जातिगत आंकड़ों के अभाव के कारण निष्पक्ष नीतिगत निर्णय नहीं हो पा रहे हैं, जिससे देश को पुरानी पड़ चुकी 1931 की जाति जनगणना पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

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