भारत में इस वक्त लोकसभा चुनाव 2024 का सीजन चल रहा है। देशभर के विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 4 चरणों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। वहीं, अभी 3 चरणों के चुनाव शेष हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हम आपके लिए लेकर आए हैं चुनाव फ्लैशबैक जिसमें हम देश में अब तक हुए लोकसभा चुनावों के कुछ खास किस्सों की चर्चा कर रहे हैं। इस कड़ी में हम आज चर्चा करेंगे कांग्रेस नेता संजय गांधी के उस नसबंदी अभियान की जिसके खौफ का खामियाजा कांग्रेस पार्टी को 1977 के लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा था।
क्या था नसबंदी अभियान?
1970-80 के दशक में पश्चिमी देशों, विश्व बैंक आदि का भारत पर जनसंख्या नियंत्रण को लेकर दवाब था। इनका कहना था कि भारत चाहे जितना भी अन्न उगा ले लेकिन बढ़ती आबादी के संकट के कारण ये नाकाफी होगा। इससे पहले भी सरकार द्वारा परिवार नियोजन समेत कई अन्य योजनाएं चलाई गई थीं लेकिन इसका कोई भी बड़ा फायदा देखने को नहीं मिला था। हालांकि, जून 25, 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी। इसी के बाद सरकार लाई नसबंदी अभियान।
संजय गांधी की नीति से फैला खौफ
देश में आपातकाल लगे होने के कारण सरकार को किसी भी नीति को लागू करने की छूट मिल गई थी। नसबंदी अभियान का ऐलान तो पीएम इंदिरा गांधी ने किया था लेकिन इस अभियान की सभी जिम्मेदारी संजय गांधी को मिली। माना जाता है कि संजय गांधी ने काफी क्रूर तरीके से इस अभियान को आगे बढ़वाया। रिपोर्ट्स बताती है कि संजय गांधी ने युवक कांग्रेस में शामिल होने के लिए हर महीने दो लोगों की नसबंदी कराने की शर्त लगाई थी। इस कारण लोगों की जबरन नसबंदी करवाई जाने लगी। आपातकाल के कारण अधिकारी भी सरकार को खुश करने के लिए भयानक नसबंदी करवाते रहे।
युवाओं तक की नसबंदी कर दी गई
आपातकाल के दौर में चले इस अभियान के दौरान शहर से लेकर गांवों तक में लाखों लोगों की नसबंदी हुई। हालांकि, कई सारे युवाओं को भी लालच देकर या जबरन नसबंदी करवा दी गई। सही इलाज न होने या लापरवाही के कारण सैकड़ों लोगों की मौत भी हुई। आपातकाल के कारण लोगों के बीच पहले से ही गुस्सा था। लेकिन नसबंदी के इस फैसले ने लोगों में और रोष फैला दिया। वैसे तो आपातकाल के वक्त कांग्रेस सरकार की कई नीतियों की आलोचना हुई लेकिन लोग सबसे ज्यादा नसबंदी अभियान से खफा हुए। इसी का परिणाम रहा कि साल 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी हार झेलनी पड़ी थी।
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