Friday, April 19, 2024
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दुनिया को खाद्य और ऊर्जा संकट से उबारने में भारत बनेगा "वर्ल्ड लीडर", अमेरिका के साथ उठा सकता है ये कदम

कोरोना महामारी के बाद रूस और यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को खाद्य और ऊर्जा के गहरे संकट में डुबो दिया है। इससे पूरी दुनिया में हाहाकार मचा है। दुनिया के तमाम देश इस समस्या का समाधान खोज पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। विश्व पर मंडराये इस भारी संकट से अमेरिका भी परेशान है। ऐसे वक्त में भारत दुनिया की उम्मीद बन गया है।

Dharmendra Kumar Mishra Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Updated on: February 19, 2023 23:53 IST
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और पीएम मोदी (फाइल)- India TV Hindi
Image Source : FILE अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और पीएम मोदी (फाइल)

नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बाद रूस और यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को खाद्य और ऊर्जा के गहरे संकट में डुबो दिया है। इससे पूरी दुनिया में हाहाकार मचा है। दुनिया के तमाम देश इस समस्या का समाधान खोज पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। विश्व पर मंडराये इस भारी संकट से अमेरिका भी परेशान है। ऐसे वक्त में भारत दुनिया की उम्मीद बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन युद्ध के आगाज से ही दुनिया पर मंडराते गहरे खाद्य और ऊर्जा संकट के प्रति आगाह किया था, जो आज सच साबित हो रहा है। जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भी भारत ने खाद्य और ऊर्जा संकट के साथ जलवायु परिवर्तन को ही मुख्य मुद्दा बनाया है। विश्व को भुखमरी से बचाने के लिए पीएम मोदी ने 2023 को मोटे अनाज के वर्ष के रूप में मनाने की अपील की है। अब ऊर्जा संकट की कमी को दूर करने के लिए भारत और अमेरिका फिर से असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में व्यवहारिक सहयोगी की संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं।

आपको बता दें कि भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 2008 में भी असैन्य परमाणु समझौता हुआ था, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ सका था। मगर अब दोनों देश अपनी और विश्व की जरूरतों को देखते हुए वैश्विक चिंताओं के मद्देनजर नई संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं। यूक्रेन और रूस संघर्ष के कारण पूरी दुनिया में खाद्य और ऊर्जा का भारी संकट पैदा हो गया है। श्रीलंका से लेकर पाकिस्तान जैसे देश तो पूरी तरह कंगाल हो चुके हैं। यूरोपीय देशों में भी ऊर्जा और खाद्य संकट गहराने से हाहाकार मचना शुरू हो गया है। इसका समाधान खोज पाने में अमेरिका को भी भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में भारत के साथ मिलकर ऊर्जा समाधान खोजने में जो बाइडन को भी उम्मीद की नई किरण दिखाई दे रही है।

अमेरिका और भारत सबसे मजबूत

मौजूदा वैश्विक परिवेश में भारत और अमेरिका दुनिया के सबसे मजबूत देश बने हुए हैं। यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि विश्व की रेटिंग एजेंसियां और विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी वैश्विक संस्थाएं कह रही हैं। आइएमएफ ने कहा है कि 2023 पूरी दुनिया के लिए सबसे अधिक चिंतापूर्ण होने वाला है। मगर भारत अकेला एक ऐसा देश है जो पूरी दुनिया को डूबने से बचा सकता है। इस वैश्विक मंदी के दौरान भी विश्व की रेटिंग एजेंसियों ने भारत में सबसे तेज आर्थिक विकास की भविष्यवाणी की है। यह देखकर पड़ोसी पाकिस्तान और चीन से लेकर अमेरिका तक हैरान हैं।

यह सब प्रधानमंत्री मोदी के मजबूत नेतृत्व में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते भारत के कदमों का नतीजा है, जिसे आज पूरी दुनिया सलाम कर रही है। इसीलिए भारत के साथ अमेरिका ऊर्जा संकट का समाधान खोजने के लिए पुराने समझौते पर पुनर्विचार के लिए आगे बढ़ना चाहता है। दिल्ली में 16 और 17 फरवरी को भारतीय वार्ताकारों के साथ अमेरिका के ऊर्जा संसाधन मामलों के सहायक विदेश मंत्री जेफ्री आर पायट की बातचीत में 2008 के भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के तहत परमाणु वाणिज्य सहित स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के तरीकों पर प्रमुखता से चर्चा हुई है।

अमेरिका ने माना दुनिया को ऊर्जा संकट से उबारने में भारत की भूमिका अहम
अमेरिका ने माना है कि यूक्रेन पर रूस के "क्रूर" आक्रमण के बाद जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति में पैदा हुए गंभीर व्यवधानों को देखते हुए भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो ऊर्जा संकट को दूर कर सकता है। इसीलिए अमेरिका वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारत को अत्यंत महत्वपूर्ण साझेदार बता रहा है। अमेरिका 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 500 गीगावॉट ऊर्जा प्राप्त करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अत्यंत महत्वाकांक्षी ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्य का समर्थन करता है। वह भारत के साथ भविष्य के असैन्य परमाणु सहयोग के अवसरों को विकसित करने की संभावनाएं तलाश रहा है।

अमेरिका का कहना है कि असैन्य परमाणु उद्योग का कारोबारी मॉडल बदल रहा है। अमेरिका में हमने छोटे रिएक्टरों के लिए बड़ी प्रतिबद्धता जताई है, जो विशेष रूप से भारतीय पर्यावरण के लिए भी उपयुक्त हो सकते हैं। इसलिए अमेरिका हरित हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत के साथ सहयोग मजबूत करने को इच्छुक है। अमेरिका का कहना है कि क्वाड के गठन के बाद से भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय सहयोगों को मजबूती मिली है। हरित हाईड्रोजन पर भारत, अमेरिका के अलावा आस्ट्रेलिया और जापान भी सक्रियता दिखा रहे हैं। यह चारों देश मिलकर दुनिया को नया ऊर्जा विकल्प देने को प्रतिबद्ध हैं।

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