दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने साफ कर दिया है कि छात्रों को मनुस्मृति नहीं पढ़ाई जाएगी। दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ शिक्षकों की तरफ से सुझाव दिया गया था कि पहले और आखिरी सेमेस्टर के छात्रों को मनुस्मृति पढ़ाई जाए। इसके लिए मनुभाषी के साथ मनुस्मृति और मनुस्मृति की व्याख्या नाम की दो किताबें पढ़ाए जाने का सुझाव दिया गया था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया है। विश्वविद्यालय के कुलपति का साफ कहना है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में ऐसा कुछ नहीं पढ़ाया जाएगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने कहा "दिल्ली विश्वविद्यालय को विधि संकाय से एक प्रस्ताव मिला था, जिसमें न्यायशास्त्र के पाठ्यक्रमों में से एक में बदलाव किए जाने की बात थी। उन्होंने मेधातिथि की राज्य और कानून की अवधारणा के लिए दो ग्रंथों का सुझाव दिया था- मनुभाषी के साथ मनुस्मृति और दूसरा मनुस्मृति की व्याख्या। इसलिए इन दोनों ग्रंथों और विधि संकाय के संशोधनों को दिल्ली विश्वविद्यालय ने खारिज कर दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय में ऐसा कुछ नहीं पढ़ाया जाएगा।"
क्या है मनुस्मृति?
मनुस्मृति हिन्दू धर्म व मानवजाति का एक प्राचीन धर्मशास्त्र और प्रथम संविधान (स्मृति) है। यह 1776 में अंग्रेजी में अनुवादित होने वाले पहले संस्कृत ग्रंथों में से एक था। ब्रिटिश फिलॉजिस्ट सर विलियम जोंस ने ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के लिए हिंदू कानून का बनाने में इस ग्रंथ की मदद ली थी। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं, जिनमें 2684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 भी है। मनुस्मृति को भारत के अलावा भी कई देशों में बहुत अहमियत दी जाती है और सदियों पहले राजाओं से उम्मीद की जाती थी कि वे इसके अनुरूप शासन करें। हालांकि, इसमें स्त्रियों और हाशिये को लोगों को लेकर जो बातें कही गई हैं, उनका विरोध होता रहता है। भीमराव आंबेडकर ने मनुस्मृति को जाति व्यवस्था के लिए दोषी ठहराते हुए जला दिया था। इसके अलावा महिलाओं को लेकर भी मनुस्मृति की बातों का अक्सर विरोध होता है।