और, उन सारे लोगों का मैं शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जो आज इस वक्त मेरे साथ खड़े हैं। हमें हमारे इस खूबसूरत और बेमिसाल देश के खूबसूरत चरित्र को सुरक्षित रखना है। हमें सुरक्षित रखना है इसकी एकता को, इसकी अखंडता को, इसकी विविधता को, इसकी सभ्यता और संस्कृति को, इसके इतिहास को, इसकी अनेक भाषाओं को, इसके प्यार को, इसकी संवेदनशीलता को, और इसके जज्बाती तख्त को।
अंत में रबिंद्रनाथ टैगोर की एक कविता दोहराना चाहूंगा। कविता नहीं बल्कि ये एक प्रार्थना है-
जहां उड़ता फिरे मेरा मन बैखौफ
और सिर हो शान से उठा हुआ,
जहां ज्ञान हो सबके लिए बेरोक टोक बिना शर्त रखा हुआ,
घर की चौखट सी छोटी सरहदों में न बटां हो जहां,
जहां सच की गहराइयों से निकले हर बयां,
जहां बाजुएं बिना थके लकीरें कुछ मुकम्मल तराशें,
जहां सही सोच को धुंधला न पाएं उदास मुर्दा रवायतें,
जहां दिलों-दिमाग तलाशें नए ख्याल और उन्हें अंजाम दे,
ऐसे आजादी के स्वर्ग में, ऐ भगवान, मेरे वतन की हो नई सुबह।जय हिंद।