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दिल गया रौनक-ए-हयात गई।
गम गया सारी कायनात गई।।
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ऐ सबा, लौट के किस शहर से तू आती है?
तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है।
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लेकिन मुझे पैदा किया उस देस में तूने।
जिस देस के बन्दे हैं गुलामी पे रजामंद।।
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नहीं आती तो याद उनकी महीनों भर नहीं आती।
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं।।
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आपकी याद आती रही रात-भर
चांदनी दिल दुखाती रही रात-भर
गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम-ए-गम झिलमिला
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तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं।
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं।
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अगर खुदा न करे सच ये ख्वाब हो जाए।
तेरी सहर हो मेरा आफताब हो जाए।।
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मुहब्बत में करे क्या कुछ किसी से हो नहीं सकता।
मेरा मरना भी तो मेरी खुशी से हो नही सकता।।
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तेरे इश्क की इन्तहा चाहता हूं।
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूं।।
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इतना तो ज़िंदगी में किसी की ख़लल पड़े
हंसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े
जिस तरह हंस रहा हूं मै
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देखिये क्या गुल खिलाती है बहार अब के बरस
ख़्वाब में देखा है "फ़ानी" ने क़फ़स(पिंजरा) का दर खुला
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सीढिया उन्हे मुबारक हो…..
जिन्हे छत तक जाना है…..
मेरी मन्जिल तो आसमान है..
रास्ता मुझे खुद बनाना