इंग्लैंड की कोर्ट में मामला पहुंचने पर पाकिस्तान के साथ भारत ने भी अपना दावा जताया। तभी से दोनों मुल्क 10 लाख पाउंड की रकम के मालिकाना हक के लिए कानूनी जंग लड़ रहे हैं। उस समय 10 लाख पाउंड की रकम आज की तारीख में बढ़कर 350 करोड़ रुपए हो चुकी है। भारत सरकार का कहना है कि ये पैसा हैदराबाद की जनता का है और हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के बाद इस रकम पर उसका का हक बनता है।
1957 में यह विवाद हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहुंचा। हाउस ऑफ लॉर्डस ने इसपर इम्युनिटी यानी ‘संप्रभु सुरक्षा’ लगा दी। इसके मुताबिक अब इस पर ब्रिटेन की अदालत में मुकदमा नहीं चल सकता था और खाता तभी अनफ्रीज हो सकता था जब तीनों पक्ष किसी सहमति पर पहुंच जाएं। 1967 में हैदराबाद के निजाम की मृत्यु के बाद से यह मामला लगभग शांत था। इसके बाद 2008 में भारत सरकार ने पाकिस्तान को प्रस्ताव दिया कि निजाम के वंशजों के साथ मिलकर इस फंड के बंटवारे पर सहमति बनाई जाए। लेकिन पाकिस्तान ने यह प्रस्ताव मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद उसने खुद 2013 में हैदराबाद फंड पर अपना अधिकार जताने के लिए लंदन हाईकोर्ट में एक अपील दाखिल करने की कार्रवाई शुरू कर दी।