जौनपुर: उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक ऐसा गांव है जहां 47 आईएएस अधिकारी विभिन्न विभागों में सेवा दे रहे हैं। अफसर भी ऐसे-वैसे नहीं है कोई अमेरिका, स्पेन में राजदूत तो कोई तमिलनाडु का चीफ सेक्रेटरी। कोई बिहार में होम सेक्रेटरी तो कोई रेवेन्यू सर्विसेज के शीर्ष पदों पर काम करके रिटायर हुआ। इतना ही नहीं माधोपट्टी की धरती पर पैदा हुए बच्चे इसरो, भाभा, काई मनीला और विश्व बैंक तक में अधिकारी हैं। बावजूद इसके इस गांव में टॉयलेट तक नहीं है।
ना तो पक्की सड़के और ना एंबुलेंस
जौनपुर जिले के गद्दीपुर ग्रामसभा के माधोपट्टी मजरे के लोगों के पास इलाज के लिए एक प्राथमिक अस्पताल नहीं है। 47 आईएएस देने वाले इस गांव में एक टॉयलेट तक नहीं है। गांव की करीब एक हजार से ज्यादा महिलाओं को शौच के लिए सुबह-शाम अंधेरे में खेतों का रुख करना पड़ता है।
इलाज के लिए ठेले पर लादकर ले जाते है मरीज
माधोपट्टी में धनाड्य और संपन्न लोगों के घरों में गाड़ी जरूर है, लेकिन दूर-दराज तक एंबुलेंस नहीं है। ऐसे में इलाज के लिए गांव के बाहर बसे दलित-पिछड़े तबके के लोग बाइक या ठेले पर मरीज लादकर जौनपुर ले जाते हैं।
आईएएस अफसरों से उम्मीद की जाती है कि वे देश की तकदीर बदल देंगे लेकिन वे इस गांव को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दिलवा पाए हैं। यहां के लोगों का दावा है कि इस गांव ने आजादी से अब तक देश को सबसे ज्यादा आईएएस-पीसीएस दिए हैं। यह अलग बात है कि यहां से निकले ज्यादातर अधिकारी नौकरी पाने के बाद वापस झांकने तक नहीं आए।