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भाजपा के लिए खतरे की घंटी, मध्य प्रदेश में बदल रहा है जनता का मूड!

मुख्यमंत्री चौहान ने लगभग हर सभा और जनसंपर्क के दौरान दोनों जगहों के मतदाताओं से पांच माह के लिए भाजपा का विधायक मांगा और वादा पूरे न करने पर अगले चुनाव में नकार देने तक की बात कही, मगर जनता का उन्हें साथ नहीं मिला।

Reported by: IANS
Published : March 01, 2018 7:24 IST
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भाजपा के लिए खतरे की घंटी, मध्य प्रदेश में बदल रहा है जनता का मूड!

भोपाल: करीब 15 साल से मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बुधवार को आए दो विधानसभा क्षेत्रों के उप-चुनावों के परिणामों से झटका लगा है। तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा के हाथों से ये दोनों सीटें निकल गईं। यहां मुकाबला शिवराज सरकार बनाम कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच हो गया था। चुनाव नतीजों से यह संकेत मिल रहा है कि प्रदेश में भाजपा के लिए पहले जैसा अनुकूल माहौल नहीं रहा है। वहीं, चुनाव परिणाम जनता के मूड में बदलाव की ओर भी इशारा कर रहे हैं। राज्य में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले शिवपुरी के कोलारस और अशोकनगर के मुंगावली विधानसभा क्षेत्रों के उप-चुनाव काफी अहम माने जा रहे थे। सत्ताधारी पार्टी और सरकार ने चुनाव जीतने के अपने प्रयास में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी।

वहीं, कांग्रेस की कमान युवा सांसद सिंधिया के हाथ में थी। उन्हें चुनाव प्रचार अभियान में पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया और सहरिया जनजाति में गहरी पैठ रखने वाले मनीष राजपूत का भरपूर साथ मिला। चुनाव नतीजों पर बुद्धिजीवी साजी थॉमस ने कहा, "ये उप-चुनाव हर दृष्टि से प्रदेश सरकार के लिए अहम थे, क्योंकि पिछले दिनों मंदसौर में किसानों पर गोली चलने की घटना के बाद से जगह-जगह किसान आंदोलन और कर्मचारी वर्गो के आंदोलन चल रहे हैं। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से नोटबंदी और जीएसटी लागू करने को लेकर लोगों में जो नाराजगी है, उसमें अगर अगर भाजपा जीत हासिल करती तो यह माना जाता कि शिवराज का करिश्मा अब तक बरकारार है, मगर ऐसा नहीं हुआ।"

उन्होंने कहा कि उप-चुनाव के नतीजों से भाजपा और सरकार को यह इशारा जरूर मिला है कि आने वाला समय उनके लिए बहुत अच्छा नहीं है। यह बात सही है कि, यह दोनों विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के कब्जे वाले रहे हैं, साथ ही यह सांसद सिंधिया के संसदीय क्षेत्र के अधीन आते हैं। उसके बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री चौहान और संगठन ने जीत के लिए किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी। लगभग पूरा मंत्रिमंडल और संगठन के पदाधिकारी कई-कई दिन तक यहां डेरा डाले रहे। वहीं सिंधिया के करीबी और सांसद प्रतिनिधि के. पी. यादव को भाजपा में शामिल कराकर सिंधिया को बड़ा झटका दिया था।

मुख्यमंत्री चौहान ने लगभग हर सभा और जनसंपर्क के दौरान दोनों जगहों के मतदाताओं से पांच माह के लिए भाजपा का विधायक मांगा और वादा पूरे न करने पर अगले चुनाव में नकार देने तक की बात कही, मगर जनता का उन्हें साथ नहीं मिला। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस हार को स्वीकारते हुए कहा है कि, यह दोनों क्षेत्र कांग्रेस के थे। यहां आम चुनाव में कांग्रेस बड़े अंतर से जीती थी। उसके बाद भी भाजपा के कार्यकर्ताओं ने काफी मेहनत की और मुकाबले को बनाए रखा। भाजपा बहुत कम अंतर से हारी है।

वहीं कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि, भाजपा आगामी चुनाव में 200 पार का नारा दे रही है और दो विधानसभा चुनाव को तो पार कर नहीं पाई है। यह चुनाव कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ पनपते आक्रोश की जीत है। इस जीत में सांसद सिंधिया और कार्यकर्ताओं की मेहनत का बड़ा योगदान रहा है। इन चुनाव के नतीजों से शिवराज सरकार की विदाई का क्रम शुरू हो गया है।

राजनीति के जानकारों की मानें तो इन नतीजों से सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, मगर कांग्रेस में उत्साह का संचार जरूर होगा। वहीं भाजपा को अपनी कार्यशैली और रणनीति पर विचार करने को मजबूर होना पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा ने दोनों चुनाव जीतने के लिए हर दाव पेंच लगाए। पहले आदिवासियों को प्रतिमाह 1000 रुपये देने का ऐलान किया। उसके बाद जाति के आधार पर तीन मंत्री बनाए गए। यह सारी कोशिशें बेकार नजर आ रही हैं। आगामी चुनाव के लिए शिवराज और उनकी सरकार को मास्टर स्ट्रोक की तलाश रहेगी। विधानसभा के दो उप-चुनाव की जीत कांग्रेस में नया उत्साह तो भरेगी ही, क्योंकि उसे इस जीत से वह खुराक भी मिल गई है, जिसकी उसे दरकार थी। आम चुनाव कुछ माह बाद हैं, दूसरी ओर कई वगोर्ं में सरकार के खिलाफ असंतोष पनप रहा है। इन स्थितियों का भाजपा और शिवराज कैसे मुकाबला करेंगे, यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

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