फ्लम्सरबर्ग,(स्विट्ज़रलैंड): जब दुनिया भर में रेसिंग की बात होती है, तो ज़्यादातर लोगों के दिमाग में कारें या बाइक आती हैं, लेकिन स्विट्ज़रलैंड की हरी-भरी पहाड़ियों के बीच एक ऐसा अनोखा आयोजन होता है, जहां रफ्तार और रोमांच का वाहक कोई इंजन नहीं, बल्कि गाय होती है।
फ्लम्सरबर्ग के खूबसूरत रिसॉर्ट क्षेत्र में हर साल आयोजित होने वाली ‘काउ ग्रांड प्रिक्स’ रेस (Cow Grand Prix) में महिलाएं गायों की पीठ पर सवार होकर दौड़ लगाती हैं। यह प्रतियोगिता 2006 से आयोजित हो रही है और इसमें भाग लेने की अनुमति केवल महिलाओं को है।
घास से बनी स्टार्ट लाइन और अनोखी तैयारी
रेस के लिए ट्रैक पर कोई हाई-टेक इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होता। इसके शुरुआत की रेखा घास की गठरियों से बनाई जाती है। इस साल नौ प्रतिभागी महिलाओं ने अपनी-अपनी गायों के साथ दौड़ में हिस्सा लिया। रेस से पहले गायों को विशेष रूप से तैयार किया जाता है। उन्हें सजाया जाता है और अच्छे से खिलाया जाता है। कुछ प्रतिभागी तो अपनी गायों से रेस से पहले बातें भी करती हैं जैसे कि वे कोई पेशेवर एथलीट हों।
रोमांच, परंपरा और हास्य का अनोखा मिश्रण
यह रेस न केवल एक प्रतियोगिता है, बल्कि स्थानीय संस्कृति, परंपरा और हास्य का उत्सव भी है। दर्शकों के लिए यह एक हंसने-हंसाने वाला और रोमांचक अनुभव होता है। महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनकर दौड़ में हिस्सा लेती हैं। कुछ प्रतिभागी अपनी गायों को रंग-बिरंगे रिबन या फूलों से सजाती हैं।
महिलाओं के लिए विशेष आयोजन
रेस की सबसे खास बात यह है कि यह पूरी तरह से महिलाओं को समर्पित है। आयोजनकर्ताओं का कहना है कि यह परंपरा ग्रामीण जीवन, महिला सशक्तिकरण और लोक संस्कृति को जोड़ने का एक अनोखा तरीका है। यह न केवल प्रतिस्पर्धा का मंच है, बल्कि एक सामुदायिक मिलन का अवसर भी है।
सिर्फ जीत नहीं, दिल जीतना भी ज़रूरी
हालांकि विजेता को ताज पहनाया जाता है और स्थानीय स्तर पर सम्मान मिलता है, लेकिन प्रतिभागियों का कहना है कि यह रेस गाय के साथ संबंध, मस्ती और परंपरा को मनाने का माध्यम है न कि सिर्फ ट्रॉफी जीतने का। कुल मिलाकर, 'काउ ग्रां प्री' एक ऐसी रेस है जहां दिल भी दौड़ते हैं, और गायें भी।