नई दिल्लीः पूरे देश में आज विजयदशमी यानि दशहरा का त्योहार हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। भारत के अलावा भी दुनिया के कई देशों में यह त्योहार उतने ही उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। भारत की तर्ज पर ही कई अन्य देशों में भी दशहरा का पर्व रामलीला से शुरू होता है और आखिरी दिन रावण के पुतले के दहन के साथ विजयदशमी मनाई जाती है। आइये अब आपको बताते हैं कि भारत के अलावा और कौन-कौन से देश हैं, जहां असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई के प्रतीक कहे जाने वाले इस त्योहार को धूम-धाम से मनाया जाता है।
नेपाल: नेपाल में दशहरा "दशै" के नाम से मनाया जाता है, जो एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है। यह नेपाल के विभिन्न हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, खासकर काठमांडू घाटी में। इस दौरान देवी दुर्गा की पूजा होती है और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
बांग्लादेश: बांग्लादेश में भी दशहरा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर हिन्दू समुदाय यहां भारत की तर्ज पर दशहरा मनाते हैं। यहां "दुर्गा पूजा" के रूप में दशहरा मनाया जाता है, जो देवी दुर्गा की पूजा और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
श्रीलंका: श्रीलंका में भी दशहरा कुछ हिन्दू समुदायों द्वारा मनाया जाता है, खासकर तमिल समुदाय में। यहां देवी दुर्गा की पूजा और रावण दहन किया जाता है।
म्यांमार: म्यांमार में भी दशहरा मनाया जाता है, खासकर हिन्दू समुदाय द्वारा। यह पर्व वहां के हिंदू मंदिरों में देवी दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाता है।
थाईलैंड: थाईलैंड में दशहरा का पर्व "विजयदशमी" के नाम से मनाया जाता है। यहां भी खासकर हिन्दू समुदाय द्वारा इसका आयोजन होता है। यहां भी रावण दहन और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
मलेशिया: मलेशिया में भी दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। हिन्दू समुदायों के बीच यहां इसे "दसहरा" के रूप में मनाया जाता है और विशेष रूप से "दीपावली" से पहले पूजा और रावण दहन के कार्यक्रम होते हैं।
सिंगापुर: सिंगापुर में भी दशहरा का पर्व हिन्दू समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यहां के हिन्दू मंदिरों में पूजा और रावण दहन किया जाता है।
फिजी: फिजी में दशहरा का त्योहार हिन्दू समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यहां पर यह "दुर्गा पूजा" के रूप में मनाया जाता है, और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
नेपाल के राष्ट्रपति ने दी विजयदशमी की बधाई
नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने बृहस्पतिवार को विजयादशमी के अवसर पर देश में स्थिरता और समृद्धि की कामना की। विजयादशमी बड़ा दशईं त्योहार का 10वां दिन है, जिसे हिमालयी राष्ट्र में उत्साह के साथ मनाया जाता है। राष्ट्रपति कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि परंपरा के अनुसार, राष्ट्रपति पौडेल को विजयादशमी के अवसर पर दिन में 11:53 बजे शुभ मुहूर्त पर पुजारियों- अर्जुन अधिहारी और देवराज आर्यल ने टीका लगाया। हालांकि, देश में हालिया राजनीतिक उथल-पुथल के मद्देनजर पौडेल और प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने भी इस वर्ष बड़ा दशईं त्योहार के अवसर पर नागरिकों को टीका नहीं लगाया।
नेपाल में कैसे मनाया जाता है दशहरा
राष्ट्रपति कार्यालय की सूचना अधिकारी अर्चना खड़का ने बताया कि देश की हालिया स्थिति को देखते हुए राष्ट्रपति द्वारा कोई टीका समारोह आयोजित नहीं किया जाएगा। अतीत में, राष्ट्रपति पारंपरिक रूप से इस अवसर पर आम जनता को टीका लगाते थे। पौडेल ने अपने संदेश में कहा, "सत्य, धर्म और न्याय की जीत के प्रतीक विजयादशमी के दिन, हम आदरणीय बुजुर्गों से आशीर्वाद, टीका और जमारा प्राप्त करते हैं। मैं देवी दुर्गा से पूरे देश में सद्भाव, सद्भावना और कल्याण की प्रार्थना करता हूं।" नेपाल में बड़ों से सिंदूर का टीका लगवाना आशीर्वाद, समृद्धि और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। घटस्थापना के बाद नौ दिनों तक की जाने वाली पूजा में दिए गए प्रसाद से टीका तैयार किया जाता है।
नेपाल की पीएम कार्की ने भी इस बार नहीं लिया टीका में भाग
नेपाल में हाल में हुए ‘जेन जेड’ के हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद नेपाल में पहली बार कोई बड़ा त्योहार मनाया जा रहा है। प्रदर्शनों के कारण देश में सत्ता परिवर्तन हुआ था। आठ सितंबर को पुलिस की गोलीबारी में कम से कम 19 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। ‘जेन जेड’ के प्रदर्शन के कारण के पी शर्मा ओली को पद छोड़ना पड़ा था। ‘जेन जेड’ उस पीढ़ी को कहा जाता है जो 1997 से 2012 के बीच पैदा हुई। हिंसा जारी रहने के कारण भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर ओली सरकार के खिलाफ दो दिवसीय प्रदर्शन के दौरान मरने वालों की कुल संख्या 75 तक पहुंच गई।
कार्की ने 12 सितंबर को अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि कार्की ने घोषणा की है कि वह टीका और जमारा प्राप्त करने की पारंपरिक परंपरा में भाग नहीं लेंगी। बयान में कहा गया कि यह निर्णय हाल ही में हुए जेन-जेड विरोध प्रदर्शनों के पीड़ितों के सम्मान में लिया गया। (भाषा)