Monday, April 29, 2024
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पाकिस्तान की सरकार और सुप्रीम कोर्ट में जंग के बीच राष्ट्रपति ने CJI की शक्तियों में कटौती का विधेयक लौटाया

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों में कटौती से संबंधित एक विधेयक शनिवार को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा दिया और कहा कि प्रस्तावित कानून संसद के अधिकार क्षेत्र से बाहर है तथा कानूनी तौर पर सही नहीं होने की वजह से इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

Dharmendra Kumar Mishra Edited By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published on: April 08, 2023 19:50 IST
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट- India TV Hindi
Image Source : AP पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों में कटौती से संबंधित एक विधेयक शनिवार को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा दिया और कहा कि प्रस्तावित कानून संसद के अधिकार क्षेत्र से बाहर है तथा कानूनी तौर पर सही नहीं होने की वजह से इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। बता दें कि प्रधान न्यायाधीश उमर अता बांदियाल की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने मंगलवार को पंजाब विधानसभा के चुनाव की नयी तारीख 14 मई तय की थी और मतदान की तारीख 10 अप्रैल से बढ़ाकर आठ अक्टूबर करने के निर्वाचन आयोग के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसके बाद पाकिस्तान में न्यायपालिका और सरकार के बीच तकरार देखने को मिल रही है।

पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) पार्टी के नेता व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने शीर्ष अदालत के फैसले की आलोचना की और इस फैसले को स्वीकार करने से मना कर दिया। सरकार पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश (सीजेपी) बांदियाल की शक्तियों पर अंकुश लगाना चाहती है। पिछले महीने संसद के दोनों सदनों ने उच्चतम न्यायालय (कार्य व प्रक्रिया) अधिनियम- 2023 को पारित कर दिया था, जिसके बाद इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया। राष्ट्रपति बनने से पहले पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता रहे अल्वी ने अपने जवाब में सरकार से कहा, “उच्चतम न्यायालय (कार्य व प्रक्रिया) अधिनियम- 2023 संसद के अधिकार क्षेत्र से परे है और कानूनी तौर पर सही नहीं होने की वजह से इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

मंत्रिमंडल ने 28 मार्च को पास किया था कानून

” संघीय मंत्रिमंडल ने 28 मार्च को इस विधेयक को मंजूरी दी थी। कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति के सुझाए गए कुछ संशोधनों के बाद नेशनल असेंबली ने इसे पारित कर दिया था। 30 मार्च को इसे सीनेट की मंजूरी मिल गई थी। विधेयक में प्रावधान किया गया है कि उच्चतम न्यायालय में लंबित किसी भी मामले या अपील की सुनवाई और निस्तारण प्रधान न्यायाधीश एवं दो वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों की समिति द्वारा तय पीठ करेगी। उच्चतम न्यायालय के स्वत: संज्ञान के मूल न्यायाधिकार क्षेत्र के बारे में विधेयक में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 184(3) से जुड़ा कोई भी मामला पहले संबंधित समिति के समक्ष रखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि मौजूदा व्यवस्था में प्रधान न्यायाधीश स्वत: संज्ञान अधिकार पर फैसला लेते हैं और वही मामलों की सुनवाई के लिए विभिन्न पीठों का गठन करते हैं।

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