साल 1991 से लेकर 16 मई 2014 तक का विकासशील दौर
• साल 1991 के आर्थिक संकट के बाद देश की अर्थव्यवस्था ग्लोबलाइज हो गई। यह विश्व के लिए एक अहम बदलाव था। भारत में अवसरों के द्वार खोले गए।
• हालांकि वैश्वीकरण भारत के लिए नया पहलू नहीं था। भारतीय सामान जैसे कि सोना, कीमती पत्थरों की खरीद फरोख्त मध्य एशिया और यूरोप में की जाती थी। यह सब कुछ सम्राट अशोक के दौर से होता चला आ रहा था।
• भारती बाजारों के द्वार खुलने के बाद काफी सारी कंपनियों ने भारतीय बाजारों में दस्तक और अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की क्योंकि लोगों को भारत के विशाल बाजार में अपार संभावनाएं दिख रही थीं।
• भारत को अभी काफी कुछ मिलना था, इसके पास प्राकृतिक संसाधन थे, सस्ता श्रमिक था, मेहनती लोग थे और एक बहुत बड़ा बाजार। इस सब ने भारत में व्यापार के पूरे परिदृश्य में आमूलचूल बदलाव ला दिया।
• एकाधिकारवाद ने प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया जिसका सीधा फायदा हम सभी को हुआ और जिसने भारतीयों के लिए अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों के सृजन में अहम योगदान दिया। अगर सही मायनो में कहें तो यह सच्चे लोकतंत्र का काल था। लोगों का, लोगों के लिए लोगों द्वारा शासन।
• लाइसेंस राज की तुलना में अब व्यापार करना आसान हो चुका था, लेकिन अभी काफी कुछ होना बाकी था।
• निजी कंपनियां होने के बावजूद वैश्वीकरण ने लार्सन और ट्यूबरो जैसी कंपनियों को भारत के रक्षा क्षेत्र में प्रवेश के रास्ते खोल दिए। यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था ग्लोबल हो चुकी थी और उस समय कुछ अच्छे और त्वरित फैसले लिए गए।
• निजी लोगों को रास्ते खोलने के बाद एलएंडटी जैसी कंपनी ने दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, हैदराबाद और बेंगलुरू हवाई अड्डे का निर्माण किया।
• भारत आज सभी विकसित देशों के बीच एक जाना माना और सम्मानित नाम है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस देश में एक जबरदस्त क्षमता है। विकसित देशों के बाजार स्थायित्व को प्राप्त कर चुके हैं या वो भविष्य में स्थायित्व की स्थिति में पहुंच जाएंगे इसलिए उन्हें हमारी जरूरत होगी क्योंकि हमारे देश में एक बड़ी आबादी और विकास की अपार संभावनाएं हैं।
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