1990 के दशक में चर्चा में आया ये इंडेक्स-
बाजार की अच्छी खासी समझ रखने वाले विशेषज्ञ एसटी लाउडर ने महिलाओं के इस व्यवहार को देखते हुए साल 1990 के आस-पास इस व्यवहार को जन्म दिया। यह एक ऐसा व्यवहार था जो अर्थव्यवस्था की सेहत के इंडीकेटर के तौर पर काम करता था।
ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस इंडेक्स-
आमतौर पर दुनिया के तमाम देश तरक्की को मापने के लिए जीडीपी का सहारा लेते हैं, लेकिन साल 1971 से ही भूटान ने इस थ्योरी को खारिज कर रखा है। आमतौर पर 1972 में भूटान नरेश जिग्मे सुंग वांगचुक ने दुनिया को तरक्की मापने का एक बेहतर फार्म्यूला दिया। उन्होंने कहा कि ग्रॉस नेशनल हेप्पीनेस-जीएनएच जीडीपी से बेहतर तरीका है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रसन्नता निकालने का यह नया फार्म्यूला भूटान स्टडीज सेंटर के मुखिया करमा उपा और कनाडियन डॉक्टर माइकल पेनाक ने दिया था। यह देश की तरक्की और खुशहाली को मापने का नायाब नजरिया था।
क्या कहता है हेप्पीनेस-जीएनएच-
इसके मुताबिक प्राकृतिक वातावरण में ही लोगों की आध्यात्मिक, भौतिक, सामाजिक और स्वास्थ्य गतिविधियों को शामिल किया जाता है। इस सूचकांक का आधार यह था कि सामाजिक विकास, सांस्कृतिक संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और गुड गवर्नेंस को ज्यादा प्रोत्साहन दिया जाए। दिलचस्प बात यह है कि लोगों की खुशहाली में अहम भूमिका निभाने वाले पर्यावरण की सुरक्षा को भूटान के संविधान में शामिल किया गया है।
हैमबर्गर इंडेक्स-
साल 1986 में द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने दुनिया के तमाम देशों की खर्च क्षमता को नापने के लिए बिग मैक सूचकांक तैयार किया। यह दुनिया भर में मैकडोनल्ड के फूड स्टोर्स पर बिकने वाले बिग मैक हैमबर्गर की कीमत को आधार मानकर तैयार किया गया था। दिग्गज अर्थशास्त्रियों का मानना था कि यह उत्पाद दुनिया के काफी सारे मुल्कों में उपलब्ध है और इस उत्पाद की एक मानक कीमत तय की जा सकती है, जो इस देश की मुद्रा-आधारित होगी। आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 25 सालों में बिग मैक सूचकांक एक मानक सूचकांक के तौर पर उभरा है और काफी मौकों पर सही साबित हुआ है।