Friday, April 26, 2024
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मनोज बाजपेयी ने किया खुलासा, 'मैं आत्महत्या के काफी करीब पहुंच गया था'

मनोज बाजपेयी ने अपने संघर्ष की कहानी बयां की है कि कैसे आउटसाइडर होने की वजह से वो इंडस्ट्री में फिट होने की कोशिश कर रहे थे।

India TV Entertainment Desk Written by: India TV Entertainment Desk
Published on: July 02, 2020 8:52 IST
मनोज बाजपेयी ने अपने संघर्ष की कहानी बयां की- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM: @BAJPAYEE.MANOJ मनोज बाजपेयी ने अपने संघर्ष की कहानी बयां की

हिंदी सिनेमा में सत्या, अलीगढ़, राजनीति, गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्में करने वाले एक्टर मनोज बाजपेयी ने हाल ही में अपने संघर्ष की कहानी सुनाई है। उन्होंने बताया कि 9 साल की उम्र में उन्हें अहसास हो गया था कि एक्टिंग ही उनकी मंजिल है। हालांकि, इंडस्ट्री में अपने पैर जमाने के लिए उन्होंने कई तकलीफों से गुजरना पड़ा। यहां तक कि आत्महत्या के बारे में भी सोचा, लेकिन उन्होंने इसे खुद पर हावी नहीं होने दिया और अपनी मेहनत के दम पर सफलता का मुकाम हासिल किया।

ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे ने अपने इंस्टाग्राम पर मनोज बाजपेयी के संघर्ष की कहानी बयां की है। इसमें लिखा है, "मैं एक किसान का बेटा हूं और बिहार के गांव में पला-बढ़ा। मेरे पांच भाई-बहन थे। हम झोपड़ी के स्कूल में पढ़ने जाते थे। बहुत सरल जिंदगी गुजारी, लेकिन जब भी हम शहर जाते तो थियेटर जरूर जाते थे। मैं बच्चन का फैन था और उनके जैसा बनना चाहता था।"

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9 साल की उम्र में एक्टिंग को लेकर हुआ था ये अहसास

पोस्ट में लिखा है, "9 साल की उम्र में ही मुझे अहसास हो गया था कि एक्टिंग ही मेरी मंजिल है, लेकिन सपने देखने की हिम्मत नहीं जुटा सकता था। इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी, लेकिन मेरा दिमाग किसी दूसरे काम पर फोकस नहीं कर पा रहा था। मैं 17 साल की उम्र में दिल्ली यूनिवर्सिरी चला गया। वहां मैंने थियेटर किया, लेकिन मेरे घरवालों को इसकी जानकारी नहीं थी। आखिरकार मैंने अपने पिता को पत्र लिखा, लेकिन वे नाराज नहीं हुए और मुझे फीस के लिए 200 रुपये भी भेजे थे।"

आत्महत्या के करीब पहुंच गए थे मनोज

उन्होंने आगे कहा, "मेरे गांव के लिए लोग मुझे नकारा घोषित कर चुके थे, लेकिन मैंने फिक्र करना छोड़ दिया था। मैं एक आउटसाइडर था, जो फिट होने की कोशिश कर रहा था। मैंने खुद को सीखना शुरू किया। इंग्लिश और हिंदी.. और भोजपुरी इसका बड़ा हिस्सा था, जो मैं बोलता था। मैंने एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) में अप्लाई किया, लेकिन तीन बार रिजेक्ट हो गया। मैं आत्महत्या के काफी करीब पहुंच चुका था, लेकिन मेरे दोस्त मुझे अकेला नहीं छोड़ते थे और मेरे पास ही सोते थे। ऐसा तब तक चलता रहा, जब तक मैं स्थापित नहीं हो गया।"

असिस्टेंट डायरेक्टर ने फाड़ दी थी फोटो

इस पोस्ट में आगे लिखा है, "उस साल मैं चाय की दुकान पर था और तिग्मांशु अपने खटारा स्कूटर पर मुझे देखने आए थे। शेखर कपूर मुझे बैंडिट क्वीन के लिए कास्ट करना चाहते थे। मुझे लगा कि मैं तैयार हूं और मुंबई आ गया। शुरुआत में एक चॉल में पांच दोस्तों के साथ रहता था। काम खोजता था, लेकिन कोई रोल नहीं मिला। एक असिस्टेंट डायरेक्टर ने मेरी तस्वीर फाड़ दी थी और मैंने एक ही दिन में तीन प्रोजेक्टस खोए थे। मुझे पहले शॉट के बाद कहा गया कि यहां से निकल जाओ। मैं एक आइडल हीरो की तरह नहीं दिखतका था तो उन्हें लगता था कि मैं कभी बॉलीवुड का हिस्सा नहीं बन पाऊंगा।"

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1500 रुपये मिली थी पहली सैलरी

मनोज ने आगे बताया, "मैं इस दौरान किराए के पैसे देने के लिए संघर्ष करता रहा और कई बार मुझे वडा पाव भी महंगा लगता था, लेकिन मेरे पेट की भूख मेरे सफल होने की भूख को हरा नहीं पाई। चार सालों तक स्ट्रगल करने के बाद मुझे महेश भट्ट की टीवी सीरीज में रोल मिला। मुझे हर एपिसोड के लिए 1500 रुपये मिलते थे, मेरी पहली सैलरी।"

सत्या में मिला काम करने का मौका

इसके बाद मनोज ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने कहा, "मेरे काम को नोटिस किया गया और कुछ समय बाद सत्या में काम करने का मौका मिला। फिर कई अवॉर्ड्स। मैंने अपन पहला घर खरीदा। मुझे अहसास हो गया था कि मैं यहां रुक सकता हूं। 67 फिल्मों के बाद मैं आज यहां हूं। जब आप अपने सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश करते हैं तो मुश्किलें मायने नहीं रखती। 9 साल के उस बिहारी बच्चे का विश्वास मायने रखता है और कुछ नहीं।"

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