बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसे लेकर सियासी गलियारों में हलचल और तेज हो गई है। बिहार में जहां एक ओर नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA गठबंधन है, तो दूसरी तरफ RJD की अगुवाई में महागठबंधन के दल चुनावी मैदान में हैं। इस बार के भी चुनाव में नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री फेस हैं, जिनके नाम सबसे ज्यादा 9 बार सीएम पद की शपथ लेने का रिकॉर्ड है। उन्होंने पहली बार साल 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन सिर्फ 7 दिन बाद ही उन्हें इस पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
दरअसल, ये वो दौर था जब नीतीश कुमार समता पार्टी में थे। नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर 1994 में समता पार्टी का गठन किया था। उन्होंने जनता दल से अलग होकर समता पार्टी का गठन किया था। उस वक्त बिहार में लालू प्रसाद यादव का जनता दल पर मजबूत नियंत्रण था और नीतीश कुमार उनकी कार्यशैली और सरकार से असहमत थे।

1995 के चुनाव में कमाल नहीं कर पाई समता पार्टी
समता पार्टी ने अपना पहला बड़ा चुनाव 1995 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था। यह चुनाव लालू प्रसाद यादव के जनता दल के खिलाफ था। हालांकि, उस चुनाव में समता पार्टी को कुछ खास सफलता नहीं मिली और लालू प्रसाद यादव की सरकार फिर से बन गई थी। तब समता पार्टी सिर्फ 7 सीटें ही जीत पाई थी।
2000 के चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े नीतीश
इसके बाद साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनावों में समता पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 34 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में बीजेपी को 67 सीटें मिली थीं, जबकि 21 सीटें जनता दल (सेक्युलर) और जनता दल (यू) के उम्मीदवारों ने जीती थी, जो बाद में जनता दल (यूनाइटेड) में विलय हो गए। इस तरह इस गठबंधन (NDA) को कुल 122 सीटें मिली थीं। वहीं, इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को 124 सीटें मिली थीं। हालांकि, 324 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 163 था और इस जादुई आंकड़ा को ना तो एनडीए गठबंधन और ना ही आरजेडी छू पाई थी।
उस दौरान केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार थी। बहुमत के आंकड़े के कशमकश के बीच एनडीए ने बिहार में सरकार बनाने का दांव चल दिया। उस समय नीतीश कुमार समता पार्टी के नेता थे और केंद्र में कृषि मंत्री भी थे। और उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया।

3 मार्च 2000 को सीएम पद की शपथ ली, 7 दिन का कार्यकाल
3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन उनका यह कार्यकाल बहुत ही छोटा रहा। उन्हें बहुमत साबित करने के लिए सदन में विश्वास मत हासिल करना था। हालांकि, तादाद उनके हक में नहीं थी। एनडीए गठबंधन के पास बीजेपी, समता पार्टी और आजाद (निर्दलीय) विधायकों को मिलाकर भी बहुमत से करीब 21 विधायक कम थे।
दूसरी ओर, लालू प्रसाद यादव की आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बहुमत साबित करने का दावा कर रही थी। जब नीतीश कुमार को यह एहसास हो गया कि वे सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे, तो उन्होंने 10 मार्च 2000 को यानी सिर्फ 7 दिनों के बाद ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

नीतीश कुमार के इस्तीफे की वजह
नीतीश कुमार के इस्तीफे की असल वजह यही थी कि उनके पास सरकार चलाने के लिए जरूरी तादाद नहीं थी। सदन में विश्वास मत हासिल करने की सूरत न होने पर उन्होंने पद से किनाराकशी करना ही उचित समझा। इसके बाद आरजेडी ने राबड़ी देवी के नेतृत्व में सरकार बनाई, जो अगले पांच साल तक चली।
लालू यादव नहीं, राबड़ी देवी बनीं मुख्यमंत्री
2000 के बिहार चुनाव में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री नहीं बनने के पीछे की वजह 'चारा घोटाला' था। कानूनी शिकंजे में फंसने और गिरफ्तारी की संभावना को देखते हुए लालू यादव ने जुलाई 1997 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी, जो एक गृहिणी थीं, उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। 1997 के बाद से राबड़ी देवी ही मुख्यमंत्री थीं। जब 2000 में चुनाव हुए तो चारा घोटाले के मामले में लालू यादव का नाम अभी भी चल रहा था और उन पर मुकदमा चल रहा था।