
क्या अमेरिका नाटो से अलग हो जाएगा? यह सवाल इस समय काफी गर्माया हुआ है। इसकी वजह है अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और यूरोपीय लीडर्स के बीच बढ़ती अनबन। रूस-यूक्रेन वॉर के मुद्दे पर अमेरिका और यूरोप के देशों के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं। हाल ही में यूक्रेन के प्रेसिडेंट वोल्डिमिर ज़ेलेंस्की और ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की ट्रंप से मुलाकात हुई है। इस मुलाकात के बाद अमेरिका और यूरोप के बीच तनाव साफ दिखाई दे रहा है। ज़ेलेंस्की और ट्रंप के बीच तो मीडिया के सामने ही तीखी बहस हो गई थी। इसके बाद ज़ेलेंस्की को यूरोपीय लीडर्स से जमकर सपोर्ट मिला। अमेरिका और यूरोप के बीच की इस दरार से भारत को फायदा हो सकता है। आइए जानते हैं कैसे।
इस समय नाटो में शामिल यूरोपीय देश मोटे तौर पर अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर करते हैं। नाटो की सुरक्षा के लिए अमेरिका ही सबसे ज्यादा खर्चा करता है। यह बात ट्रंप को रास नहीं आ रही है। वे कई बार यूरोपीय देशों को ताना भी दे चुके हैं। अमेरिका हाथ पीछे खींचता है, तो यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी। उन्हें अपनी सेनाओं को मजबूत करने के लिए बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद खरीदने होंगे। इसमें भारत एक बड़ा सप्लायर बनकर उभर सकता है। भारत तेजी से अपनी डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग और डिफेंस एक्सपोर्ट बढ़ा रहा है। यूरोपीय देशों के पास कम कीमत में हथियार खरीदने के लिए भारत एक बेस्ट ऑप्शन होगा।
यूरोपीय देश बढ़ाएंगे अपना डिफेंस बजट
ट्रंप और नाटो के बीच जैसे-जैसे दरार बढ़ रही है, यह भारत के लिए फायदे का एक सुनहरा अवसर हो सकता है। स्टार्मर पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि यूके अपने डिफेंस बजट को जीडीपी के 2.5% तक बढ़ा देगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जनवरी में कहा था कि नाटो देशों को डिफेंस पर अपनी जीडीपी के 5% के बराबर खर्च करना चाहिए। हालिया विवाद के बाद अब नाटो के कई देशों के लिए डिफेंस बजट बढ़ाना जरूरी हो गया है। इस बात के स्पष्ट संकेत मिल चुके हैं कि यूरोप अब अपनी रक्षा के लिए अमेरिका के भरोसे नहीं रह सकता है। यूरोपियन कमिशन के प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने पिछले साल डिफेंस और स्पेस के लिए यूरोपीय यूनियन का पहला यूरोपियन कमिश्नर एंड्रियस कुबिलियस को नियुक्त किया था।
यूरोप के इस काम आएगा भारत
भारत की यात्रा पर आए कुबिलियस ने एक इंटरव्यू में बताया था कि भारत अपनी मजबूत डिफेंस इंडस्ट्री के साथ यूरोपियन यूनियन की डिफेंस इंडस्ट्री सप्लाई चेन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देश उभरते हुए भविष्य के खतरों से निपटने के लिए अपनी डिफेंस इंडस्ट्री का विस्तार और आधुनिकीकरण करना चाहते हैं। भारत और यूरोपीय यूनियन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने और ट्रेड, टेक्नोलॉजी, कनेक्टिविटी और डिफेंस में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए पीएम मोदी के साथ लेयेन की हालिया बैठक के दौरान सहमत हुए हैं। इस FTA से डिफेंस पार्टनरशिप बढ़ाने में मदद मिलेगी।
भारत बैठता है फिट
भारत का तेजी से बढ़ता डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर यूरोपीय मैन्यूफैक्चरर्स की ग्लोबल सप्लाई चेन में फिट बैठ सकता है। साथ ही यूरोपीय देशों को हम हथियार और सिस्टम्स एक्सपोर्ट करने के लिए भी फिट बैठते हैं। हाल ही में खबर आई थी कि फ्रांस भारत से मल्टीबैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम पिनाका खरीदने के लिए एडवांस स्टेज में बातचीत कर रहा है। यह एक ऐसा सौदा होगा, जिसमें भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार सप्लायर हमसे ही हथियार खरीदेगा। करीब 3 महीने पहले भारत में एक फ्रांसीसी प्रतिनिधिमंडल को 90 किलोमीटर तक रेंज वाला स्वदेशी पिनाका रॉकेट सिस्टम दिखाया गया था।
अमेरिका को भेजेंगे तोपें
हाल ही में भारत फोर्ज लिमिटेड की सब्सिडियरी कल्याणी स्ट्रेटेजिक सिस्टम्स लिमिटेड ने अमेरिकी की कंपनी एएम जनरल को एडवांस तोपखाना तोपों की सप्लाई करने के लिए Letter of Intent (LOI) साइन किया है। यह एक भारतीय डिफेंस मैन्यूफैक्चरर द्वारा अमेरिका को तोपखाने की सप्लाई का पहला मामला होगा।
तेजी से बढ़ रहा हमारा डिफेंस एक्सपोर्ट
भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट एक दशक पहले सिर्फ 2,000 करोड़ रुपये सालाना था, जो अब 21,000 करोड़ रुपये हो गया है। 2024 में कई कंपनियों ने गोला-बारूद मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए निवेश शुरू किया है। देश में कम से कम सात नए प्लांट लग रहे हैं, जो विभिन्न ग्रेड के गोला-बारूद का उत्पादन करेंगे, जिसमें 155 मिमी तोपखाने के गोले भी शामिल हैं, जिनकी दुनिया भर में भारी मांग है। यूरोप से आने वाली डिमांड से हमारी डिफेंस इंडस्ट्री कई गुना बढ़ जाएगी।