Sunday, April 28, 2024
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क्या गुजरात-हिमाचल प्रदेश में ब्लूटूथ और वाईफाई से ईवीएम की हुई हैकिंग?

प्रजातांत्रिक व्यवस्था की पहली शर्त ही यही है कि जनता के फैसले को हर पार्टी माने। इसकी जिम्मेदारी चुनाव में हारी हुई पार्टी पर ज्यादा होती है क्योंकि उनका हार को स्वीकार करना होता है। हार के लिये वो बहाने तो बना सकती है लेकिन चुनावी प्रक्रिया पर सवाल

India TV News Desk Written by: India TV News Desk
Published on: December 19, 2017 12:58 IST
EVM-Hacking- India TV Hindi
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नई दिल्ली: गुजरात चुनाव के नतीजे को लेकर है सोशल मीडिया में हलचल मची है। कांग्रेस समर्थक ये दावा कर रहे हैं कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे ईवीएम की गड़बड़ी से हुई है। दावा ये किया जा रहा कि पोलिंग के दौरान ही ब्लूटूथ और वाईफाई से ईवीएम को हैक किया गया। दावा ये भी किया जा है कि गुजरात चुनाव में पोलिंग के दौरान कई ईवीएम में गड़बड़ी पाई गई। काग्रेस पार्टी ने ईवीएम से छेड़छाड़ की शिकायत इलेक्शन कमिशन से भी की लेकिन चुनाव आयोग ने इन शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया। सोशल मीडिया पर अब चुनाव आयोग के रोल पर भी सवाल उठाया जा रहा है। सोशल मीडिया में ये भी दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस की हार के पीछे मणिशंकर अय्यर और कपिल सिब्बल के बयान हैं।

राहुल गांधी की हार की वजह कांग्रेस का झूठा प्रचार है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने सोशल मीडिया और अपनी रैलियों में गलत आंकडे और झूठे आरोप लगा कर वोट लेना चाहती थी इसलिए गुजरात और हिमाचल की जनता ने कांग्रेस को नकार दिया। कुछ लोगों का ये भी मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेहनत और उनकी लोकप्रियता की वजह से भारतीय जनता पार्टी जीत गई। वहीं हार से तिलमिलाए विपक्ष के नेता ईवीएम में तमाम गड़बड़ियों की शिकायत कर रहे है। कोई कहा रहा है कि ब्लूटूथ से ईवीएम को हैक किया जा रहा है तो कोई वाइफाई के जरिए ईवीएम में छेड़छाड़ करने के आरोप लगा है लेकिन हकीकत यही है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है।

एक तरफ राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन अध्यक्ष बनने की खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकी क्योंकि गुजरात और हिमाचल में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। सोशल मीडिया में अब ईवीएम के साथ-साथ मणिशंकर अय्यर और कपिल सिब्बल को कांग्रेस की हार का जिम्मेदार बताया जा रहा है। एक ने प्रधानमंत्री मोदी को नीच कह कर गुजरातियों को नाराज कर दिया तो सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिबब्ल ने राम मंदिर की सुनवाई 2019 तक टालने की मांग कर दी। इससे राहुल गांधी के मंदिरों में जाने और सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड की हवा निकल गई। इसके अलावा राहुल गांधी ने पूरे चुनाव को जीएसटी और नोटबंदी को मुद्दा बनाया जिसे लोगों रिजेक्ट कर दिया।

राहुल गांधी अपने रैलियों और भाषणों से जनता का विश्वास जीत नहीं पाए। कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की हार से कांग्रेस पार्टी ने सीख नहीं ली जहां उन्होंने नोटबंदी को मुख्य मुद्दा बनाया था लेकिन पार्टी की ऐतिहासिक हार हो गई। यही गलती राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव में की। जैसे ही कांग्रेस हारने लगी तो सोशल मीडिया पर कांग्रेस समर्थक फिर से ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ने लगे। कुछ काग्रेस कार्यकर्ताओं ने तो ईवीएम के खिलाफ धरना प्रदर्शन करना शुरु कर दिया।

प्रजातांत्रिक व्यवस्था की पहली शर्त ही यही है कि जनता के फैसले को हर पार्टी माने। इसकी जिम्मेदारी चुनाव में हारी हुई पार्टी पर ज्यादा होती है क्योंकि उनका हार को स्वीकार करना होता है। हार के लिये वो बहाने तो बना सकती है लेकिन चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाना गलत है। उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद भी कुछ राजनीतिक दलों ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। अब, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के नतीजे के बाद फिर से ईवीएम पर सवाल उठाया जा रहा है। ये मामला गंभीर है। अगर चुनावी प्रक्रिया पर ही सवाल उठने लगेगा तो लोगों के देश के भविष्य के ठीक नहीं होगा।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी को लेकर, सवाल उठाना शुरु कर दिया है। कांग्रेस पार्टी का आरोप ये है कि वो जनता की वोट से नहीं हारे, वो ईवीएम की वजह से हारे हैं क्योंकि वोटिंग के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी की गई है। कांग्रेस समर्थकों का मानना है कि दोनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की जीत का कारण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की हैकिंग है। हकीकत ये है कि जब गिनती शुरु हुई तब शुरुआती दौर में कांग्रेस पार्टी के नेता और समर्थक जीत की खुशियां भी मनाने लगे थे। उस वक्त कांग्रेस पार्टी आगे चल रही थी लेकिन जैसे ही कांग्रेस पीछे जाने तो देखिए कैसे कांग्रेस प्रवक्ता ने ईवीएम पर दोष लगाने लगे।

इतना ही नहीं, कांग्रेस पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता ने धरना प्रदर्शन भी शुरु कर दिया। ये वही लोग है जो कुछ घंटे पहले कांग्रेस की जीत पर मिठाईयां बांट रहे थे, पटाखे चला रहे थे। राहुल गांधी की जयजयकार कर रहे थे लेकिन जैसे ही पासा पलटा तो ये लोग धरने पर बैठ गए। मतलब साफ है, कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश की हार को स्वीकार तो कर लिया है लेकिन सोशल मीडिया में कांग्रेस के समर्थकों ने ईवीएम पर सवाल उठाना बंद नहीं किया है जबकि चुनाव आयोग यह बात कई बार कह चुकी है कि ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित मशीन है।

ये बात कई बार साबित हो चुकी है कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करना पूरी तरह से असंभव है लेकिन उसके बावजूद भी हारने वाली पार्टी इन बातों को मानने के लिए बिलकुल तैयार नहीं है। इसकी वजह ये है कि हारने वाली पार्टियों का ऑफिसियल पोजिशन कुछ होता है लेकिन उनके नेता कुछ ऐसा बोल देते हैं जिससे कार्यकर्ता भ्रमित हो जाते हैं। हकीकत ये है कि ईवीएम पर कई बार पहले भी सवाल उठे हैं। एक दो बार नहीं बल्कि 33 बार ईवीएम का मामला कोर्ट में गया है। लोगों ने शिकायत तो की लेकिन अपने दावों को साबित नहीं कर पाए और हर बार उन्हें कोर्ट में फटकार लगी। मद्रास, केरल दिल्ली, कर्नाटक और मुंबई हाईकोर्ट में जांच और बहस के बाद ये साबित हो चुका है कि ईवीएम के साथ टेम्परिंग संभव नहीं है। इसके अलावा इलेक्शन कमीशन ने भी सभी राजनीतिक पार्टी को चुनौती दी थी। कोई भी पार्टी ईवीएम हैकिंग साबित नहीं कर सकी लेकिन चुनाव नतीजे के बाद आरोप लगाने से पीछ नहीं हट रहे।

ईवीएम पर एक और आरोप ये लगा कि इसमें अगर शुरु से एक चिप लगा दी जाए तो फिर छेड़खानी संभव है। अगर चिप वाली थ्योरी को मान भी लिया जाए तो भी ये प्रैक्टिकली संभव नहीं है। इसके लिए लाखों वोटिंग मशीनों में यह चिप लगाना होगा, और इसमें कई लोगों को खुफिया तरीके से काम करना होगा जो करीब-करीब नामुमकिन है। देश में कांग्रेस की नेतृत्व वाली सरकार की 10 साल तक हुकूमत रही। इस दौरान केंद्र सरकार ने कई चुनाव आयुक्त नियुक्त किया। अगर ईवीएम की हैकिंग हो सकती है तो उन्हें जरूर पता होगा। हैरानी की बात ये है कि यूपीए द्वारा नियुक्त सभी चीफ इलेक्शन कमिश्नर हैकिक को मजाक बता चुके हैं।

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