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फारूक, उमर, महबूबा के चुनाव लड़ने पर रोक मामले में न्यायाधीश ने उठाया यह कदम

एक अधिवक्ता ने यह याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि इन तीनों नेताओं ने संविधान के खिलाफ राजद्रोह वाले और सांप्रदायिक बयान दिए। उन्होंने कहा कि अदालत या चुनाव आयोग को लोकसभा में उनके प्रवेश पर शर्तें या प्रतिबंध लगाना चाहिए।

Reported by: Bhasha
Published : Apr 11, 2019 08:32 am IST, Updated : Apr 11, 2019 08:32 am IST
फारूक, उमर, महबूबा के चुनाव लड़ने पर रोक मामले में न्यायाधीश ने उठाया यह कदम - India TV Hindi
फारूक, उमर, महबूबा के चुनाव लड़ने पर रोक मामले में न्यायाधीश ने उठाया यह कदम 

नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने जम्मू कश्मीर के नेताओं - फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के लोकसभा चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने के लिए चुनाव आयोग को एक निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। दरअसल, याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन नेताओं ने राजद्रोह वाले बयान दिए थे। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन की खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति ए जे भंभानी ने इस विषय की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

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मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इसे उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें जिसमे न्यायमूर्ति भंभानी सदस्य नहीं हों। यह विषय अब 12 अप्रैल को दूसरी पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आएगा। एक अधिवक्ता ने यह याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि इन तीनों नेताओं ने संविधान के खिलाफ राजद्रोह वाले और सांप्रदायिक बयान दिए। उन्होंने कहा कि अदालत या चुनाव आयोग को लोकसभा में उनके प्रवेश पर शर्तें या प्रतिबंध लगाना चाहिए।

ये तीनों नेता जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। याचिका में चुनाव आयोग, भारत सरकार, दिल्ली पुलिस, नेशनल कांफ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ्ती को पक्ष बनाया गया है। अधिवक्ता संजीव कुमार की याचिका में इन नेताओं पर राजद्रोह और नफरत को उकसावा देने सहित भारतीय दंड संहिता और सूचाना एवं प्रौद्योगिकी कानून की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज करने की मांग की गई है।

इसमें आरोप लगाया गया है, ‘‘लोकसभा चुनाव में भाग लेने के लिए उन लोगों और दलों को इजाजत देना क्या लोकतंत्र का माखौल नहीं होगा, जबकि वे लोग/ पार्टियां ‘मदर इंडिया’ का विभाजन धर्म (मुस्लिम बहुसंख्यक) के आधार पर करने और दो प्रधानमंत्रियों (जम्मू कश्मीर और शेष भारत के लिए अलग - अलग) की खुल कर मांग कर रहे हैं।’’

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