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दो अफसरों की मुलाकात और तय हो गई भारत-पाकिस्तान की सीमा, जानें अटारी-वाघा बॉर्डर की दिलचस्प कहानी

भारत का अटारी और पाकिस्तान का वाघा, दोनों देशों की सीमा रेखा आनन फानन में तय हुई थी। जानें कैसे बना भारत पाक बॉर्डर, इसके बनने की कहानी है दिलचस्प...

Edited By: Kajal Kumari @lallkajal
Published : Apr 27, 2025 15:03 IST, Updated : Apr 27, 2025 15:05 IST
कैसे बना अटारी वाघा...
कैसे बना अटारी वाघा बॉर्डर

अटारी-वाघा बॉर्डर भारत और पाकिस्तान के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जो अटारी (भारत) और वाघा (पाकिस्तान) के बीच स्थित है। अटारी वाघा बॉर्डर भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद अस्तित्व में तब आया, जब अटारी भारत के हिस्से में आया और वाघा पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। यह बॉर्डर आजादी और विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार, यात्रा, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। फिलहाल अटारी-वाघा बॉर्डर संकट में है क्योंकि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सख्त एक्शन लेते हुए भारत ने अपना अटारी चेकपोस्ट बंद कर दिया है।

अटारी वाघा बॉर्डर का इतिहास है दिलचस्प 

भारतीय सीमा पर स्थित एक गांव, जो महाराजा रंजीत सिंह के जनरल सरदार श्याम सिंह अटारीवाला का गांव था और वाघा पाकिस्तान सीमा पर स्थित एक गांव था, जो श्याम सिंह की जागीर थी। ऐसे देखें तो अटारी और वाघा बॉर्डर में कोई खास अंतर नहीं है, बस भारत पाकिस्तान की सीमा के दोनों ओर के दो गांवों के नाम हैं, लेकिन यह सीमा भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार के लिए महत्वपूर्ण बन गए।

भारत पाकिस्तान बंटवारे के समय, कई लोग इसी अटारी वाघा सीमा से भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आए थे।

अटारी वाघा बॉर्डर की कहानी

Image Source : INDIATV
अटारी वाघा बॉर्डर की कहानी

बंटवारे से पहले, लाहौर और अमृतसर अविभाजित पंजाब में व्यापार के प्रमुख केंद्र थे, इसलिए अटारी-वाघा बॉर्डर भी महत्वपूर्ण हो गया था। साल 2005 में, अटारी-वाघा बॉर्डर से व्यापार की शुरुआत हुई।  आज अटारी और वाघा सीमा दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और दोस्ती का प्रतीक है। सबसे खास ये है कि साल 1959 में, दोनों देशों की सरकारों ने वाघा सीमा समारोह (बीटिंग रिट्रीट समारोह) शुरू किया, जो हर शाम सूर्यास्त से पहले होता है। 

सीमा निर्धारण के लिए मिले थे पांच हफ्ते

विभाजन के वक्त अटारी चेक पोस्ट पर इतना तामझाम नहीं था। यहां कुछ नीले ड्रम रखे औऱ पत्थरों से सीमाएं खींच दी गई थीं। 1947 में ब्रिटिश वकील सर सिरिल रेडक्लिफ पंजाब में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा निर्धारण की जिम्मेदारी निभा रहे थे और उन्हें दोनों देशों की सीमा निर्धारण के लिए सिर्फ पांच हफ्ते का वक्त दिया गया था। इस कम वक्त में यह सब कुछ इतने आनन-फानन में हुआ कि भारत और पाकिस्तान दोनों पक्षों को रेडक्लिफ अवार्ड की कॉपी पढ़ने के लिए कुछ घंटे मिले और यह 17 अगस्त 1947 से लागू हो गया। 

दो अफसरों की हुई मुलाकात हो तय हो गया बॉर्डर

ब्रिगेडियर मोहिंदर सिंह चोपड़ा ने रिटायरमेंट के बाद अपनी किताब 1947: A Soldier’s Story में बॉर्डर चेकपोस्ट तय करने की दिलचस्प कहानी बताई है, जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे उन्हें भारत की ओर से और नाजिर अहमद को पाकिस्तान की ओर से बॉर्डर तय करने की जिम्मेदारी दी गई थी। दोनों ब्रिगेडियरों ने ग्रैंड ट्रंक रोड पर टहलते हुए मुलाकात की और मुलाकात वाघा गांव की सीमा में हुई और उसी वक्त यहां चेकपोस्ट बनाने की बात तय हो गई।

11 अक्टूबर 1947 को अस्थायी तौर पर वाघा चेकपोस्ट स्थापित हो गया और वहां कुछ ड्रमों और पत्थरों को रखकर सीमा रेखा खींच दी गई। दोनों ओर कुछ टेंट लगा दिए गए। सैनिकों द्वारा निगरानी के लिए सेंट्री बॉक्स बनाए गए और भारत पाकिस्तान के झंडे भी लहराने लगे। दोनों ओर दो ध्वज स्तंभ भी लगाए गए और इस ऐतिहासिक घटना की याद में एक पीतल की प्लेट भी लगाई गई।

वाघा सीमा तय होने के बाद दोनों अधिकारी फिर 21 अक्टूबर को भारतीय सीमा में अटारी गांव में मिले। पहले करीब साठ सालों तक इस चेकपोस्ट को वाघा बॉर्डर ही कहते थे, लेकिन फिर 8 सितंबर 2007 को इसे अटारी बॉर्डर या अटारी चेकपोस्ट नाम दिया गया। 

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