Sunday, May 19, 2024
Advertisement

बलात्कारी के बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़िता को नहीं कर सकते मजबूर, केरल हाईकोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने कहा कि ज्यादातर मामलों में शादी के बाहर गर्भधारण हानिकारक होता है, खासकर यौन शोषण के बाद यह आघात का कारण बनता है। यह पीड़ित गर्भवती महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करता है।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Updated on: May 06, 2024 19:51 IST
प्रतीकात्मक तस्वीर - India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO प्रतीकात्मक तस्वीर

केरल हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए कहा कि बलात्कार की किसी पीड़िता को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट की धारा 3(2) में प्रावधान है कि यदि गर्भावस्था जारी रहने से गर्भवती महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होता है तो गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है। धारा 3 (2) के स्पष्टीकरण 2 में कहा गया है कि जहां गर्भावस्था बलात्कार के कारण हुई वहां गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर चोट माना जाएगा। इसलिए किसी बलात्कार पीड़िता को उस पुरुष के बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिसने उसका यौन उत्पीड़न किया।''

हाईकोर्ट ने कहा,“बलात्कार पीड़िता को उसकी अवांछित गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार करना उस पर मातृत्व की जिम्मेदारी थोपने और सम्मान के साथ जीने के उसके अधिकार को समाप्त करने जैसा होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।''

'शादी के बाहर गर्भधारण हानिकारक'

हाईकोर्ट ने आगे कहा, "ज्यादातर मामलों में शादी के बाहर गर्भधारण हानिकारक होता है, खासकर यौन शोषण के बाद यह आघात का कारण बनता है। यह पीड़ित गर्भवती महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करता है। किसी महिला के साथ यौन उत्पीड़न या दुर्व्यवहार अपने आप में कष्टदायक है और इसके चलते गर्भधारण से पीड़ा और बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसी गर्भावस्था स्वैच्छिक या सचेतन गर्भावस्था नहीं होती है।''

किस मामले में कोर्ट ने सुनाया फैसला?

कोर्ट ने यह निर्देश 16 वर्षीय बलात्कार पीड़िता द्वारा अपनी मां के माध्यम से दायर याचिका पर दिया। आरोप था कि जब लड़की 9वीं कक्षा में पढ़ती थी, तब उसके 19 वर्षीय "प्रेमी" ने उसका यौन शोषण किया और वह गर्भवती हो गई। चूंकि एमटीपी अधिनियम केवल 24वें सप्ताह (कुछ परिस्थितियों को छोड़कर) तक गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है, इसलिए मां और नाबालिग लड़की ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और अपनी 28 सप्ताह की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति मांगी।

अदालत ने बताया कि प्रजनन अधिकारों में यह चुनने का अधिकार शामिल है कि बच्चे पैदा करें या नहीं और कब करें, बच्चों की संख्या चुनने का अधिकार और सुरक्षित और कानूनी गर्भपात तक पहुंच का अधिकार शामिल है। अदालत ने गर्भवती लड़की की जांच के लिए गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट देखी, जिसका मानना था कि गर्भावस्था जारी रखना उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इस पर ध्यान देने के बाद, अदालत ने उसे गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दे दी और यह भी कहा कि यदि प्रक्रिया के बाद भ्रूण जीवित पाया जाता है, तो अस्पताल को इसकी देखभाल करनी होगी और राज्य को निर्देश दिया कि वह बच्चे को चिकित्सा सहायता प्रदान करने के अलावा इसकी जिम्मेदारी लेने का भी निर्देश दिया। (IANS इनपुट्स के साथ)

यह भी पढ़ें-

रेप का झूठा केस करना पड़ा भारी, कोर्ट ने युवती को सुनाई भयानक सजा, पढ़ें पूरा मामला

VIDEO: कोर्टरूम में भी जुबां केसरी, मुंह में गुटखा भरे वकील जज के सामने दे रहा था दलील, हरकत देख भड़क गए न्यायाधीश

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement