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संघ का मकसद भारत को अग्रणी स्थान पर लाना है, किसी से मुकाबला करना नहीं: मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि संघ को लेकर कोई भी चर्चा परसेप्शन पर नहीं, बल्कि फैक्ट्स पर आधारित होनी चाहिए।

Reported By : Yogendra Tiwari Edited By : Malaika Imam Published : Aug 26, 2025 09:11 pm IST, Updated : Aug 26, 2025 09:13 pm IST
मोहन भागवत- India TV Hindi
Image Source : PTI मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने दिल्ली में एक तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि संघ के बारे में बहुत सारी चर्चाएं चलती हैं, लेकिन लोगों में सही जानकारी की कमी है। उन्होंने कहा कि संघ को लेकर कोई भी चर्चा परसेप्शन पर नहीं, बल्कि फैक्ट्स पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ चलने का उद्देश्य अपने देश की जय जयकार होनी चाहिए। भारत को विश्व में अग्रणी स्थान दिलाना है, लेकिन इसके पीछे किसी से प्रतिस्पर्धा करने का कोई इरादा नहीं है।

"हर राष्ट्र का एक मिशन"

डॉ. भागवत ने स्वामी विवेकानंद के कथन का जिक्र करते हुए कहा कि संघ चलने का एक उद्देश्य हैं, अपना देश है उस देश की जय जयकार होनी चाहिए। देश को विश्व में अग्रणी स्थान मिलना चाहिए, लेकिन क्यों मिलना चाहिए, अग्रीण स्थान तो केवल एक ही देश प्राप्त करेगा। विश्व में सैकड़ों देश हैं, उसके लिए नई स्पर्धा उत्पन्न करनी है क्या, ऐसा कोई इरादा नहीं है, लेकिन उसके पीछे एक सत्य है, दुनिया में इतने देश हैं, विश्व बहुत पास आ गया है, अभी ग्लोबल बात होती है। विश्व पास आ गया, इसलिए ग्लोबल बात करनी पड़ती है। एक देश का बड़े होने का महत्व क्या है, यद्यपि सारे विश्व का जीवन एक है, मानवता है, फिर भी वह एक जैसी नहीं है। उसके अलग-अलग रूप हैं, अलग-अलग रंग हैं, ऐसा होने के कारण विश्व की सुंदरता बढ़ी है, क्योंकि हर रंग का अपना-अपना योगदान है। विश्व के इतिहास को देखते हैं, तो स्वामी विवेकानंद का वह कथन- प्रत्येक राष्ट्र का एक मिशन होता है, जिसको फुलफिल करना होता है।

हिंदू यानी क्या...

उन्होंने ने कहा कि भारत का अस्तित्व बहुत प्राचीन है। परिस्थितियां बदलती हैं, स्थिति बदलती है, इसलिए कि एक तत्व नहीं बदलता। भारत के लोग किसी भी नए व्यक्ति से डरते नहीं हैं, क्योंकि हमारा स्वभाव सबके प्रति अपनापन का है। उन्होंने कहा, "इस देश में हिंदू, मुसलमान, बौद्ध आपस में संघर्ष नहीं करेंगे, इसी देश में जिएंगे, इसी देश में मरेंगे... आपस में संघर्ष करते-करते इसका हल निकाल लेंगे, साथ में जिएंगे।"

मोहन भागवत ने आगे कहा कि एक ही जगह सब को जाना है। हिंदू यानी क्या, अपने-अपने रास्ते से चलो, उस पर श्रद्धा रखो, उसको बदलो मत। दूसरों के बीच श्रद्धा है, उसको पूर्ण सम्मान करो, दूसरो को लेकर झगड़ा मत, आपस में मिलजुल कर रहो, यह परंपरा है, यह संस्कृति जिनकी है वो हिंदू हैं। इस भूमि संरक्षण के लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिया है। हमारे पूर्वज ने खून पसीना बहाया। इतिहास हमको प्रेरणा देता है। इसको मानने वाला वास्तव में हिंदू है। आज भी कुछ लोग हिंदू नहीं कहते, जो जानते हैं किसी कारण नहीं कहते, जो जानते नहीं है, ऐसे लोगों को भी हिंदवी भी कहने से बुरा नहीं लगता।

उन्होंने कहा कि डीएनए को भी देखो। वही 40000 पूर्व से भारतवर्ष के लोगों का डीएनए एक है। हमरी संस्कृति मिलजुल कर रहने की है। पूरे समाज को हमको संगठित करना है। देश का जिम्मा हम सबका है। जैसे हम हैं, वैसे हमारे प्रतिनिधि होंगे, पार्टी होगी।

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