Sunday, April 28, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, FIR में देरी की स्थिति में अदालतों को सतर्क रहना चाहिए

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने 1989 में दर्ज हत्या के एक केस में फैसला सुनाते हुए कहा कि जब उचित स्पष्टीकरण के अभाव में प्राथमिकी में देरी होती है, तो अदालतों को सतर्क रहना चाहिए।

Vineet Kumar Singh Edited By: Vineet Kumar Singh @JournoVineet
Published on: September 08, 2023 9:31 IST
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Image Source : FILE सुप्रीम कोर्ट ने 1989 में दर्ज एक मामले में फैसला सुनाते हुए सलाह दी।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब किसी FIR में देरी होती है और उचित स्पष्टीकरण का अभाव रहता है तो अभियोजन पक्ष की कहानी में चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाने की संभावना को दूर करने के लिए अदालतों को सतर्क रहना चाहिए और सबूतों की सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए। कोर्ट ने 1989 में दर्ज एक मामले में हत्या के अपराध के लिए दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा के मामले में उन 2 लोगों को बरी कर दिया जिनकी सजा को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था।

‘साक्ष्यों का सावधानीपूर्वक परीक्षण करना चाहिए’

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि बिलासपुर जिले में 25 अगस्त 1989 को संबंधित व्यक्ति की कथित हत्या के मामले में आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया, जबकि प्रकरण में FIR अगले दिन दर्ज की गई थी। बेंच ने 5 सितंबर को दिए गए अपने फैसले में कहा, ‘जब उचित स्पष्टीकरण के अभाव में प्राथमिकी में देरी होती है, तो अदालतों को सतर्क रहना चाहिए और अभियोजन की कहानी में चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाने की संभावना को खत्म करने के लिए साक्ष्यों का सावधानीपूर्वक परीक्षण करना चाहिए, क्योंकि देरी से विचार-विमर्श और अनुमान लगाने का मौका मिलता है।’

हाई कोर्ट के फरवरी 2010 के फैसले को चुनौती दी गई
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ताओं, हरिलाल और परसराम द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें हाई कोर्ट के फरवरी 2010 के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के जुलाई 1991 के आदेश की पुष्टि की थी और उन्हें हत्या के लिए दोषी ठहराया था तथा आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने कहा कि तीन लोगों पर हत्या के आरोप में मुकदमा चलाया गया और निचली अदालत ने उन सबको दोषी ठहराया था। बेंच ने कहा कि उन्होंने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट के समक्ष अलग-अलग अपील दायर की थीं और अपील के लंबित रहने के दौरान एक आरोपी की मौत के चलते उसके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई।

‘पिछले बयान से मेल नहीं खाती एक शख्स की गवाही’
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि FIR दर्ज करने में देरी के संबंध में मुखबिर, जो मामले में अभियोजन पक्ष का गवाह था, से कोई विशेष सवाल नहीं पूछा गया होगा, लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ‘यह प्राथमिकी देरी से दर्ज की गई थी’। बेंच ने कहा कि खुद को घटना का चश्मदीद बताने वाले एक व्यक्ति का बयान उसके पिछले बयान से मेल नहीं खाता। बेंच ने यह भी कहा कि आरोपियों को हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराने के वास्ते संबंधित व्यक्ति की गवाही पर भरोसा करना ठीक नहीं होगा।

‘अभियोजन पक्ष साबित नहीं कर पाया कि हत्या कैसे हुई’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि अलग-अलग लोग किसी भी स्थिति पर अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हैं। लेकिन अगर यह वास्तव में सड़क पर लड़ने वाले कुछ व्यक्तियों के बीच का मुद्दा होता, तो मानवीय आचरण का स्वाभाविक तरीका मुद्दों को सुलझाने के लिए लोगों को इकट्ठा करना होता।’ बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि हत्या कैसे हुई और किसने की। (भाषा)

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