संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र (यूएन) अपनी स्थापना की 80वीं वर्षगांठ मना रहा है। बता दें कि यह जश्न वैश्विक संघर्षों, वित्तीय संकट और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कड़ी आलोचना के बीच हो रहा है। भारत ने इस मौके पर दुनिया को संशोधित बहुपक्षवाद का आह्वान किया और इन विपरीत परिस्थितियों में बड़ी जिम्मेदारी निभाने को तैयार होने की पेशकश की है। यूएन में भारत के राजदूत पर्वतनेनी ने यूएन में शीघ्र सुधारों पर जोर दिया है।
यूक्रेन, गाजा से लेकर सूडान, म्यांमार तक संघर्ष
यूएन ऐसे वक्त में अपनी 80वीं वर्षगांठ मना रहा है, जब यूक्रेन, गाजा सहित सूडान से म्यांमार तक के संघर्षों का दौर चल रहा है। इन परिस्थितियों ने यूएन और उसके शक्तिशाली, लेकिन ध्रुवीकृत सुरक्षा परिषद की कमजोरियों को उजागर किया है। मानवीय संकट, जलवायु अराजकता और आर्थिक असमानता के बीच यूएन की प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे हैं। प्रश्न यह भी है कि 1945 में स्थापित यह संगठन क्या 21वीं सदी के बदलते विश्व की समस्याओं का समाधान दे पाएगा?
भारत ने की यूएन में सुधारों की मांग
तेजी से बदल रही वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों में भारत ने यूएन में सुधारों का आह्वान किया है। इससे पहले सितंबर में यूएन महासभा में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि यूएन संकट में है। "शांति पर खतरा, संसाधनों की कमी से विकास बाधित, आतंकवाद से मानवाधिकार उल्लंघन हो रहा है। ऐसे में यूएन हर जगह ग्रिडलॉक में है। बहुपक्षवाद में विश्वास कम हो रहा है। उन्होंने ऐसे तमाम उदाहरणों को पेश करते हुए सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की मांग की। जयशंकर ने कहा था कि यूएन में स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। भारत बड़ी जिम्मेदारियां निभाने को तैयार है। यूएन का नौवां दशक नेतृत्व और उम्मीद का होना चाहिए। भारत अपना पूरा योगदान देगा।
आतंकवाद के खिलाफ भारत ने संभाला मोर्चा
आतंकवाद पूरी दुनिया में गंभीर समस्या बन चुका है। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है। अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले में 26 नागरिकों की मौत के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया, जिसमें पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। यूएन ने भारत पर हुए हमले की निंदा की और पहली बार अपनी रिपोर्ट में द रेसिस्टेंस फ्रंट (लश्कर-ए-तैयबा का प्रॉक्सी) का जिक्र किया। यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग की, लेकिन ट्रंप के दूसरे कार्यकाल ने भारत-अमेरिका के संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है। ट्रंप ने यूएन को "लोगों का क्लब" कहा और सितंबर में महासभा में कड़ी आलोचना की: "यूएन का उद्देश्य क्या है?
दुनिया पर गंभीर वित्तीय संकट
दुनिया के तमाम देशों में संघर्ष के चलते वित्तीय संकट गंभीर है। 2024 के अंत में 760 मिलियन डॉलर बकाया था, 2025 के लिए 877 मिलियन अभी नहीं मिले। कुल 1.586 बिलियन डॉलर का दुनिया पर कर्ज हो चुका है। अमेरिका सबसे बड़ा दाता है, लेकिन उसने इसमें 1 बिलियन से अधिक कटौती की। यूएन मुख्यालय में पेपर टॉवल बंद कर सालाना 1 लाख डॉलर बचाने का फैसला लिया गया। भारत ने स्थिर वित्त पोषण का समर्थन किया। भारत के स्थायी प्रतिनिधि पार्वथानेनी हरिश ने कहा कि वैश्विक शांति और समृद्धि खतरे में है। इसलिएसुधार जरूरी है। यूएन के 80 साल होना सुधार और नेतृत्व का अवसर है, जहां भारत अहम भूमिका निभा सकता है।
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