बिहार के छपरा में बंद कमरे में अंगीठी जलाकर सोने से एक ही परिवार के चार लोगों की मौत हो गई। वहीं, तीन अन्य लोगों की हालत गंभीर बनी हुई है। घटना भगवान बाजार थाना क्षेत्र की अंबिका कॉलोनी की है। भारत मिलाप चौक के पास शुक्रवार की देर रात एक दर्दनाक हादसा हुआ है। बताया जा रहा है कि घर के सभी लोग रात में अंगीठी जला कर सो गए थे और देर रात दम घुटने से तीन बच्चों समेत एक महिला की मौत हो गई। तीन लोगों का इलाज छपरा सदर अस्पताल में चल रहा है। घटना के बाद पूरे मोहल्ले में अफरातफरी मच गई।
मृतकों में तीन मासूम बच्चे और एक बुजुर्ग महिला शामिल हैं। वहीं गंभीर रूप से बीमार लोगों की पहचान अमित कुमार, अमीषा और अंजलि के रूप में हुई है, जिनका इलाज छपरा सदर अस्पताल में चल रहा है।
तीन लोगों की हालत नाजुक
परिजनों के अनुसार, अत्यधिक ठंड के कारण परिवार के सभी सदस्य एक ही कमरे में सो रहे थे। ठंड से बचने के लिए कमरे में अंगीठी जलाकर रखी गई थी। देर रात अंगीठी जलती रह गई, जिससे कमरे में गैस फैल गई इसी दौरान घटना घटी। सुबह जब एक सदस्य को छटपटाहट महसूस हुई तो उसने किसी तरह उठकर दरवाजा खोला और बाहर निकलने की कोशिश की। हल्की जान आने के बाद जब उसने अन्य लोगों को जगाने का प्रयास किया तो चार लोग नहीं उठ सके। आनन-फानन में सभी को सदर अस्पताल लाया गया, जहां चिकित्सकों ने चार लोगों को मृत घोषित कर दिया, जबकि तीन की हालत नाजुक बनी हुई है।
पुलिस की जांच जारी
मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मच गया। एएसपी राम पुकार सिंह, भगवान बाजार थानाध्यक्ष सुबाष कुमार, टाउन थानाध्यक्ष संजीव कुमार सहित कई प्रशासनिक अधिकारी सदर अस्पताल और घटनास्थल पर पहुंचे। पुलिस ने घटनास्थल की जांच-पड़ताल शुरू कर दी है और परिजनों से पूछताछ की जा रही है।
बंद कमरे में अंगीठी जलाना क्यों जानलेवा?
कोयला या लकड़ी की अंगीठी जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनती है। यह ज्यादा खतरनाक नहीं होती है। हालांकि, इसकी मात्रा होने पर सांस लेने में मुश्किल हो सकती है। वहीं, जब अंगीठी के पास पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं होती है, तब कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस बनती है। यह गैस रंगहीन, गंधहीन और बेहद जहरीली होती है। इंसान को इसकी भनक तक नहीं लगती कि कमरे में कुछ गलत हो रहा है। यह गैस फेफड़ों में जाती है, तो खून के हीमोग्लोबिन से बहुत मजबूती से जुड़ जाती है। इससे खून में ऑक्सीजन पहुंचाने की क्षमता लगभग खत्म हो जाती है। शरीर के अंगों (खासकर दिमाग और दिल) को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। सोते समय व्यक्ति को लक्षण महसूस भी नहीं होते, क्योंकि नींद में शरीर पहले से ही कम एक्टिव होता है। इसलिए मौत बहुत शांत तरीके से बिना किसी संघर्ष के हो जाती है।
(छपरा से बिपिन श्रीवास्तव की रिपोर्ट)
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