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530 दिन बाद जेल से बाहर आएंगे मनीष सिसोदिया, लेकिन जमा होगा पासपोर्ट, इन शर्तों पर मिली है जमानत

दिल्ली शराब नीति घोटाले से जुड़े मामले में मनीष सिसोदिया को जमानत मिल चुकी है, लेकिन उन्हें कुछ शर्तों का पालन करना होगा। इसमें पहली शर्त यह है कि वह अपना पासपोर्ट जमा कर दें।

Reported By : Atul Bhatia Edited By : Shakti Singh Published : Aug 09, 2024 11:28 IST, Updated : Aug 09, 2024 12:26 IST
Manish Sisodia- India TV Hindi
Image Source : PTI मनीष सिसोदिया

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है। दिल्ली में शराब नीति से जुड़े कथित घोटाले में वह आरोपी हैं। सिसोदिया को 26 फरवरी 2023 को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद से वह जेल में ही बंद हैं। वह 530 दिन बाद जेल से बाहर आएंगे। हालांकि, जमानत के दौरान उन्हें कई शर्तों का पालन करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सशर्त जमानत दी है। ताकि वह विदेश न भाग सकें और तथ्यों के साथ छेड़छाड़ न कर सकें, जिससे ईडी या सीबीआई की जांच प्रभावित न हो। दोनों एजेंसियां उनके खिलाफ जांच कर रही हैं।

सिसोदिया के लिए पहली शर्त यही है कि वह अपना पासपोर्ट जमा कर दें। ऐसा होने पर वह विदेश की यात्रा नहीं कर पाएंगे। इसके अलावा उन्हें शराब नीति घोटाले से जुड़े गवाहों और तथ्यों से दूर रहने के लिए भी कहा गया है। अदालत ने सिसोदिया को दो जमानतदारों के साथ 10 लाख रुपये का जमानत बांड भरने, अपना पासपोर्ट जमा करने और सप्ताह में दो बार सोमवार और गुरुवार को सुबह 10 से 11 बजे के बीच जांच अधिकारी के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि वह गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ करने का प्रयास नहीं करेंगे। 

मनीष सिसोदिया को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

  • सुप्रीम कोर्ट ने मनीष को जमानत देते हुए अपने फैसले में कहा समय के साथ, ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय कानून के एक बहुत ही स्थापित सिद्धांत को भूल गए हैं कि सजा के रूप में जमानत को रोका नहीं जाना चाहिए।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय जमानत देने के मामलों में सेफ खेलने का प्रयास करते हैं। 
  • यह सिद्धांत कि जमानत एक नियम है और इनकार एक अपवाद है।
  • ओपन एंड शट मामलों में भी जमानत न दिए जाने के कारण, इस न्यायालय में बड़ी संख्या में जमानत याचिकाएं भर गई हैं, जिससे बड़ी संख्या में जमानत याचिकाएं बढ़ रही हैं।
  • अब समय आ गया है कि निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों को इस सिद्धांत को पहचानना चाहिए कि "जमानत नियम है और जेल अपवाद है"।
  • वर्तमान मामले में, ईडी मामले के साथ-साथ सीबीआई मामले में, 493 गवाहों के नाम दिए गए हैं। - इस मामले में हजारों पृष्ठों के दस्तावेज़ और एक लाख से अधिक पृष्ठों के डिजिटल दस्तावेज़ शामिल हैं। 
  • इस प्रकार यह स्पष्ट है कि निकट भविष्य में मुकदमे के समापन की दूर-दूर तक संभावना नहीं है। 
  • हमारे विचार में, मुकदमे के शीघ्र पूरा होने की आशा में अपीलकर्ता को असीमित समय के लिए सलाखों के पीछे रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के उसके मौलिक अधिकार से वंचित करना होगा। 
  • जैसा कि बार-बार देखा गया है, किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले लंबे समय तक कैद में रहने को बिना सुनवाई के सजा नहीं बनने दिया जाना चाहिए।
  • मनीष की समाज में गहरी जड़ें हैं। उसके भागने की कोई सम्भावना नहीं है।
  • किसी भी स्थिति में, राज्य की चिंता को दूर करने के लिए शर्तें लगाई जा सकती हैं।
  • जहां तक ​​सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना के संबंध में यह मामला काफी हद तक दस्तावेजी सबूतों पर निर्भर करता है जो अभियोजन पक्ष द्वारा पहले ही जब्त कर लिया गया है। 
  • ऐसे में सबूतों से छेड़छाड़ की कोई संभावना नहीं है। जहां तक ​​गवाहों को प्रभावित करने की चिंता है, अपीलकर्ता पर कड़ी शर्तें लगाकर उक्त चिंता का समाधान किया जा सकता है।

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