Sunday, June 22, 2025
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Bhool Chuk Maaf Review: खट्टी-मीठी है राजकुमार राव की ‘भूल चूक माफ’, हंसी और इमोशन का है फुल डोज

विवादों में घिरने और लंबे इंतजार के बाद राजकुमार राव की ‘भूल चूक माफ’ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म में वामिका गब्बी भी लीड रोल में हैं। फिल्म की कहानी कैसी है, जानने के लिए पढ़े पूरा रिव्यू।

जया द्विवेदी
Published : May 23, 2025 10:19 IST
Bhool Chuk Maaf
Photo: INSTAGRAM राजकुमार राव।
  • फिल्म रिव्यू: भूल चूक माफ
  • स्टार रेटिंग: 3.5 / 5
  • पर्दे पर: 23.05.2025
  • डायरेक्टर: करण शर्मा
  • शैली: रोमांटिक कॉमेडी

करण शर्मा की फिल्म 'भूल चूक माफ' एक दिल छू लेने वाली कहानी है। इसमें न तो ज्यादा भारी-भरकम मैसेज है और न ही कोई टिपिकल रोमांटिक ड्रामा। ये फिल्म उन फिल्मों में से है जो हर उम्र के दर्शकों को पसंद आएगी। बनारस की गलियों की रंगीनियत, कहानी की सादगी और थोड़ी सी कल्पना इसे खास बनाती है। मैडॉक फिल्म्स की इस पेशकश में हंसी भी है और दिल से निकली सीख भी। ये फिल्म आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। दो बार रिलीज टलने के बाद अब फिल्म को सिनेमाघरों में उतारा गया है। फिल्म में राजकुमार राव और वामिका गब्बी लीड रोल में हैं। दोनों के बीच की लव केमिस्ट्री काफी कमाल की है। फिल्म की कहानी, निर्देशन और पोस्ट प्रोडक्शन कैसा है, जानने के लिए पढ़ें पूरा रिव्यू। 

कैसी है फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी रंजन (राजकुमार राव) नाम के लड़के के इर्द-गिर्द घूमती है जो एक छोटे शहर का आम लड़का है। उसकी जिंदगी में प्यार है, थोड़ी उलझनें हैं और ढेर सारी उम्मीदें हैं। तितली (वामिका गब्बी) के साथ उसकी केमिस्ट्री प्यारी लगती है, लेकिन असली मजा उसके परिवार से जुड़े टकराव में है। कभी मां-पापा की खटपट तो कभी शादी के झमेले, ये सब कुछ बड़ी ही आसान और मजेदार तरह से दिखाया गया है, वो भी बिना ज्यादा ड्रामा किए। भूल चूक माफ किसी बड़े ट्विस्ट या शॉक पर नहीं, बल्कि ज़िंदगी की छोटी-छोटी बातों पर टिकी है। गलती करना, उसे समझना और उसे सुधारने की कोशिश करना। ये फिल्म प्यार, माफी और दूसरे मौके की बात करती है, वो भी बहुत सादगी से। 

'भूल चूक माफ' एक रोमांटिक कॉमेडी है जो वाराणसी के छोटे शहर की पृष्ठभूमि पर आधारित है। कहानी रंजन (राजकुमार राव) और तितली (वामिका गब्बी) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। लेकिन तितली के पिता एक शर्त रखते हैं कि रंजन को दो महीने के भीतर सरकारी नौकरी हासिल करनी होगी, तभी शादी होगी। रंजन इस चुनौती को स्वीकार करता है और नौकरी हासिल कर लेता है। शादी की तैयारियां शुरू होती हैं, लेकिन तभी एक अजीब घटना घटती है। रंजन एक टाइम लूप में फंस जाता है, जहां हर दिन हल्दी की रस्म का दिन ही आता है। वह बार-बार वही दिन जीता है और हर बार लोगों से माफी मांगता है और गलती सुधारने की कोशिश करता है। अब सवाल यह है कि क्या रंजन इस टाइम लूप से बाहर निकल पाएगा और तितली से शादी कर पाएगा? यह जानने के लिए फिल्म देखनी होगी।

कैसा है निर्देशन

फिल्म का सबसे खूबसूरत पहलू उसका साफ-सुथरा ह्यूमर और दिल से निकली गई बातें हैं। इसमें हल्की सी फैंटेसी भी है, जो बिल्कुल बनावटी नहीं लगती। फिल्म की कॉमेडी न ही दोहरे मतलब वाली है और न ही जबरदस्ती हंसाने वाली। बल्कि, कहानी के हालात और पंचलाइन इतने नैचुरल हैं कि हंसी खुद ही निकलती है। कहानी को सही दिशा में एग्जीक्यूट किया गया है और इसका श्रेय निर्देशक को जाता है। फिल्म में गाने भी सही और सटीक जगह आते हैं। सबसे खास बात ये है कि फिल्म उबाऊ नहीं लगती। 121 मिनट की फिल्म का एग्जीक्यूशन जरा भी खिंचा हुआ नहीं लगता है। फिल्म की कहानी में हर किरदार को सोच-समझ कर कास्ट किया गया है। कई दिग्गज एक्टर इस फिल्म में जान फूंक रहे हैं और कहानी को और भी अधिक प्रभावी बना रहे हैं। एडिटिंग और सिनेमैटोग्राफी भी शानदार है।

लेखन और म्यूजिक 

फिल्म की जान उसका लेखन और म्यूजिक है। करन शर्मा की स्क्रिप्ट में ह्यूमर, सामाजिक सच्चाई और पारिवारिक रिश्तों को इतने संतुलन के साथ पिरोया गया है कि सबकुछ असली लगता है। डायलॉग्स में मज़ा भी है और अपनापन भी। सरकारी नौकरी का दबाव जैसे मुद्दों को फिल्म बड़ी सरलता से उठाती है। हर किरदार को उसकी जगह दी गई है, और उनकी कहानियां भी दिल से जुड़ती हैं। अगर म्यूजिक की बात करें तो गाने ‘टिंग लिंग सजना’ और ‘चोर बाज़ारी’ सिर्फ सुनने के लिए नहीं, बल्कि कहानी का हिस्सा बनकर आते हैं। बनारस की रौनक और उसकी खनक म्यूज़िक में इतनी गहराई से समाई है कि वो शहर खुद फिल्म का किरदार बन जाता है। संगीत कहानी के इमोशन को और निखारता है।

सितारों की एक्टिंग

राजकुमार राव ने एक बार फिर साबित किया है कि कॉमेडी और इमोशन दोनों में उनका कोई मुकाबला नहीं। रंजन के किरदार में उनका अंदाज बेहद असरदार है, खासकर उनकी भावनात्मक टाइमिंग। एक्टर पहले भी कई बार कॉमिक रोल में नजर आए हैं, लेकिन इसके बावजूद भी इस बार कहानी में नयापन है। वहीं वामिका गब्बी तितली के रोल में एकदम फ्रेश और नेचुरल लगीं। ये उनका पहला कॉमिक रोल है, लेकिन कहीं भी अनुभवहीन नहीं लगीं। दोनों की केमिस्ट्री शानदार है और इन्हें स्क्रीन पर देखना आपकी आंखों को भाएगा।
 
भगवान भाई बने संजय मिश्रा की मौजूदगी कहानी को एक खास अंदाज देती है, मजेदार भी और सोचने वाली भी। संजय मिश्रा, सीमा पाहवा और रघुबीर यादव जैसे कलाकार अपनी अदाकारी से फिल्म में जान डालते हैं। इन्हें फिल्म में देखना असल ट्रीट है।

क्या ये फिल्म देखनी चाहिए?

अगर आप इस गर्मी परिवार के साथ एक हल्की-फुल्की और दिल से जुड़ी फिल्म देखना चाहते हैं, तो ये एकदम सही चुनाव है। दिनेश विजन के प्रोडक्शन में बनी ये फिल्म शारदा कार्की जलोटा द्वारा को-प्रोड्यूस और करण शर्मा द्वारा लिखी और डायरेक्ट की गई है। ये उन फिल्मों में से है जो बिना शोर मचाए सीधा दिल में उतर जाती हैं। ये फिल्म देखने लायक ही नहीं, बल्कि आपके साथ थिएटर से बाहर भी आएगी।

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