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अहमदाबाद में हादसे का शिकार हुए विमान का इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर मिला, जानें यह क्या होता है, कैसे काम करता है?

इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर को ब्लैक बॉक्स सिस्टम का हिस्सा माना जा सकता है, लेकिन यह किसी भी तरह की रिकॉर्डिंग नहीं करता है। इमरजेंसी के समय यह डिवाइस सैटेलाइट के सिग्नल भेजकर विमान की लोकेशन बताती है।

Edited By: Shakti Singh
Published : Jun 13, 2025 18:04 IST, Updated : Jun 13, 2025 18:55 IST
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Image Source : INDIA TV इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर

अहमदाबाद में हादसे का शिकार हुए एयर इंडिया के विमान का इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर मिल गया है। मलबे में मिली यह डिवाइस ऑरेंज और काले रंग की है। इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर का काम इमरजेंसी के समय विमान की लोकेशन सैटेलाइट के साथ शेयर करना है। दिखने में यह डिवाइस ब्लैक बॉक्स की तरह नजर आ सकती है, लेकिन इसका काम ब्लैक बॉक्स से पूरी तरह अलग होता है। ब्लैक बॉक्स का काम विमान से जुड़ी तकनीकी जानकारी रिकॉर्ड करना है। इसके साथ ही कॉकपिट की आवाज भी इसमें रिकॉर्ड होती है। वहीं, इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर कोई रिकॉर्डिंग नहीं करता है।

इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर को ब्लैक बॉक्स सिस्टम का हिस्सा माना जा सकता है, लेकिन इसका काम अलग होता है। जब कोई विमान हादसे का शिकार हो जाता है या पायलट के साथ संपर्क टूट जाता है, तब यह डिवाइस विमान की लोकेशन पता करने में मदद करती है। यह डिवाइस सैटेलाइट को सिग्नल भेजती है, जिसके जरिए विमान की लोकेशन पता लगाई जाती है। यह फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर या कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर नहीं है। यह किसी भी तरह की जानकारी रिकॉर्ड नहीं करता है।

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Image Source : INDIA TV
इमरजेंसी लोकेशन ट्रांसमीटर

बचाव में अहम भूमिका

किसी भी प्लेन के हादसे का शिकार होने पर इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर अपने आप सक्रिय हो जाता है। पायलट भी जरूरत पड़ने पर इसे सक्रिय कर सकते हैं। इसका काम आपातकालीन स्थिति में विमान की सटीक लोकेशन भेजना है। इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर यह काम बहुत जल्दी करता है, ताकि जल्द से जल्द मदद के लिए टीम पहुंच सके। ऐसे में हादसे का शिकार हुए लोगों को समय रहते मदद मिल जाती है और हादसे से हुआ नुकसान कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर से जुड़ी खास बातें

  • यह COSPAS-SARSAT सैटेलाइट सिस्टम के माध्यम से सिग्नल भेजता, जो वैश्विक स्तर पर खोज और बचाव के लिए उपयोग किया जाता है।
  • आधुनिक ELT 406 MHz फ्रीक्वेंसी पर काम करते हैं, जो अधिक विश्वसनीय और सटीक होती है।
  • पुराने मॉडल 121.5 MHz और 243 MHz फ्रीक्वेंसी का उपयोग करते थे, लेकिन अब 406 MHz को प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि यह सैटेलाइट के साथ बेहतर संचार करता है।
  • इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर में एक जी-सेंसर होता है, जो विमान के क्रैश होने पर अचानक झटके पता लगाकर खुद सक्रिय हो जाता है।
  • पायलट या क्रू भी आपातकालीन स्थिति में मैन्युअल रूप से भी इसे सक्रिय कर सकते हैं।
  • कुछ इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर में पानी के संपर्क में आने पर स्वचालित रूप से सक्रिय होने की सुविधा भी होती है।
  • 406 MHz इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर सिग्नल में विमान का खास आइडेंटिटी कोड, GPS निर्देशांक और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है।
  • इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर का सिग्नल सैटेलाइट के जरिए ग्राउंड स्टेशनों तक पहुंचता है, जिससे बचाव दलों को सटीक लोकेशन पता चलती है।
  • इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर में लंबे समय तक चलने वाली बैटरी होती है, जो आमतौर पर 24-48 घंटे तक सिग्नल भेज सकती है।
  • COSPAS-SARSAT सिस्टम के कारण, इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर दुनिया के किसी भी हिस्से से सिग्नल भेज सकता है। यह समुद्र, जंगल और पहाड़ हर जगह से काम करता है। खासकर समुद्र में प्लेन गिरने पर यह बेहद उपयोगी होता है। 
  • भारत सहित कई देशों में इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर का उपयोग जरूरी है। खासकर बिजनेस और प्राइवेट प्लेन में इसका होना अनिवार्य है। 

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Image Source : INDIA TV
इमरजेंसी लोकेशन ट्रांसमीटर की खास बातें

चार तरह के होते हैं इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर

इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर चार तरह के होते हैं। फिक्सड इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर विमान में स्थायी रूप से फिट रहते हैं। इन्हें आमतौर पर कॉकपिट या टेल सेक्शन में फिट किया जाता है। वहीं, पोर्टेबल इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर को हटाया जा सकता है। इन्हें क्रैश के बाद भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सर्वाइवल इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर को आपातकालीन स्थिति में क्रू मेंबर अपने साथ ले जा सकते हैं। इससे बचाव दल को उनकी लोकेशन पता चलती है। इसका चौथा प्रकार डेपलॉयबल इमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर होता है, जो क्रैश होने पर विमान से स्वचालित रूप से बाहर निकल जाता है।

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