Bangladesh Elections: सोचिए एक ऐसा देश, जहां राजनीति की धुरी दशकों से एक ही हाथ में घूमती रही हो... और फिर अचानक वो टूट जाए। बांग्लादेश इस वक्त ठीक ऐसे ही मोड़ पर खड़ा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के बाद की पॉलिटिक्स एक ऐसे बदलते मौसम के जैसी है, जिसकी दिशा का पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। और यह परिवर्तन केवल नेताओं का नहीं बल्कि बांग्लादेश के पूरे सिस्टम की परीक्षा बनने वाला है। यह है Post-Sheikh Hasina Political Shift यानी शेख हसीना के बाद बांग्लादेश की राजनीति कैसे बदलने वाली है। ये एक ऐसा वक्त है जब बांग्लादेश की पॉलिटिक्स नए सियासी खिलाड़ियों, नए संघर्षों और नई संभावनाओं से भर चुकी है। और इसे समझने का यही वक्त है। इस आर्टिकल में पढ़िए कि शेख हसीना के बाद बांग्लादेश की राजनीति कैसे बदल रही है। चुनाव कराने के लिए प्रशासन के सामने अभी और भविष्य की क्या चुनौतियां हैं।
चुनाव की विश्वसनीयता पर सवाल
बांग्लादेश में अगले साल 2026 में 12 फरवरी को चुनाव होगा। लेकिन बांग्लादेश के आगामी चुनाव से पहले ही सियासत पर धुंध छाई हुई है। शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग पर बैन के बाद चुनावी मैदान अचानक खाली-सा नजर आ रहा है। सियासत के इस निर्वात को कौन भरेगा, इसने डेमोक्रेसी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया। क्या बिना सबसे बड़े राजनीतिक दल के चुनाव, सच में निष्पक्ष और Representative कहे जा सकते हैं।
सियासी मैदान में नए और पुराने खिलाड़ी
बांग्लादेश के आगामी चुनाव में BNP फिलहाल सबसे बड़ी दावेदार है, लेकिन पुरानी चुनौतियां भी उसके साथ हैं। अब चुनावी मैदान में मुख्य रूप से विपक्षी Bangladesh Nationalist Party दिखाई दे रही है। लेकिन पार्टी खुद वर्षों के सियासी संघर्ष, आंतरिक कलह और लीडरशिप की अस्पष्टता से जूझती रही है। उनकी लीडर खालिदा जिया भी बीमार हैं। सवाल है कि क्या BNP इस खाली पड़े स्पेस को भर पाएगी और उसका नेतृत्व कौन करेगा।
चुनाव में जमात-ए-इस्लामी और NCP का दांव
एक वक्त पीछे धकेली गई Jamaat-e-Islami फिर से एक्टिव हो गई है। उसकी बढ़ती मौजूदगी बांग्लादेश की पॉलिटिक्स को और ज्यादा धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ धकेल सकती है। वहीं NCP, छात्र आंदोलन से निकला नया विकल्प है। सबसे बड़ा दिलचस्प खिलाड़ी स्टूडेंट्स के नेतृत्व वाला National Citizen Party यानी NCP ही दिख रहा है। जो सड़क से सीधे सत्ता की दौड़ में आ गया है। हालांकि, यह ताकतवर है या महज क्षणिक उबाल, यह अभी किसी को पता नहीं है।
सबसे बड़ी चुनौती है चुनाव और उसकी पारदर्शिता
बांग्लादेश का असली इम्तिहान केवल नए नेताओं का नहीं, बल्कि सिस्टम का भी है। देश को एक ऐसा इलेक्शन प्रोसेस चाहिए जिसमें हर विचार को जगह मिल पाए, जिसमें प्रतिशोध और हिंसा ना हो और जिसमें जनता को विश्वास हो कि सरकार उनकी पसंद से तय होगी। लेकिन यह तब तक मुमकिन नहीं जब तक संस्थाओं यानी कोर्ट, चुनाव आयोग और पुलिस-प्रशासन को सियासी पकड़ से फ्री ना किया जाए।
बांग्लादेश के पास आगे का रास्ता क्या
अगर इस समय बांग्लादेश की संस्थाओं में सुधार हो गया तो यह अवसर एक स्थिर लोकतंत्र की शुरुआत बन सकता है। अगर सुधार नहीं हो पाए तो वही पुराना वक्त फिर लौट आएगा। फिर से सियासी संघर्ष, सत्ता की ताकत के दुरुपयोग और सरकार को हड़पने की कोशिशें होंगी। गौरतलब है कि यह सिर्फ सरकार का परिवर्तन नहीं बल्कि एक नए बांग्लादेश की परीक्षा है। शेख हसीना के बाद की बांग्लादेश की सियासत कई संभावनाओं से भरी है। इस चुनाव का परिणाम सिर्फ सत्ता तय नहीं करेगा, यह तय करेगा कि बांग्लादेश आने वाले वर्षों में लोकतंत्र की तरफ बढ़ेगा या संघर्ष की ओर। और यही इस "पोस्ट-हसीना पॉलिटिकल शिफ्ट" को तारीख का सबसे अहम मोड़ बनाता है।
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