Bangladesh Unrest: बांग्लादेश फिर से वैचारिक आग में झुलस रहा है। सड़कों पर भड़काऊ नारे, मीडिया संस्थानों पर अटैक और लोकतांत्रिक आवाजों को कुचलने की कोशिशें- ये सब अचानक भड़की किसी हिंसा का परिणाम नहीं हैं, बल्कि कट्टरपंथियों की सोच-समझी प्लानिंग का विस्तार है। नई हिंसा के पीछे भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले उस्मान हादी के विचार बताए जा रहे हैं, जो इस दुनिया से जा चुका है। अवामी लीग के नेता ने एक वीडियो जारी करके इसका खुलासा किया है, जिसमें दंगाई कबूल करता हुआ दिख रहा है कि वह उस्मान हादी के 'मार्गदर्शन' में ही काम कर रहा है। उसके दिखाए रास्ते पर चल रहा है। हिंदू लड़के दीपू दास की हत्या हो या फिर मीडिया संस्थानों पर हमले, इन हालिया घटनाओं ने बता दिया है कि उस्मान हादी के मरने के बाद उसके विचार भी खतरा बने हुए हैं।
वीडियो में कट्टरपंथी का सबसे बड़ा कबूलनामा!
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी के नेता मोहम्मद अली अराफात ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया और उसके साथ में एक वीडियो भी जारी किया है। इसमें उस्मान हादी का समर्थक ने जोश-जोश में अपना पूरा प्लान बता दिया। मोहम्मद अली अराफात ने अपने पोस्ट में लिखा, 'वीडियो में इस कट्टरपंथी इस्लामिस्ट की टिप्पणी को सुनिए। वह इस बात पर अफसोस जता रहा है कि वह 5 अगस्त के तुरंत बाद प्रोथोम आलो और डेली स्टार न्यूज के दफ्तरों में आग लगाने में असमर्थ रहा। फिर वह गर्व से दावा करता है कि उसने और उसके लोगों ने उस्मान हादी के मार्गदर्शन में काम किया है। मीडिया दफ्तरों में आग लगाने के बाद, वे बचे हुए हिस्से को तबाह करने के इरादे से धनमंडी 32 में मौजूद बंगबंधु के आवास की तरफ बढ़ रहे हैं। इनके कार्यों से चरमपंथी विचारधारा दिखती है जो बहुलवाद को अस्वीकार करती है और हिंसा के जरिए से समाज पर अपने विश्वासों को थोपना चाहती है। ऐसी ताकतों के प्रभुत्व में एक आजाद और लोकतांत्रिक समाज फल-फूल नहीं सकता।'
यूनुस पर उन्मादियों को एक्टिव करने का आरोप
मोहम्मद अली अराफात ने अपने पोस्ट में आगे लिखा, 'शेख हसीना ने इकोनॉमिक डेवलपमेंट के जरिए जीवन स्तर को ऊपर उठाया और ऐसे चरमपंथ को रोकने की कोशिश की। हालांकि, कई पश्चिमी विश्लेषक उनकी लीडरशिप और इरादों का सही आकलन नहीं कर पाए। ये वही कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें हैं जिन्होंने शेख हसीना की सरकार पर हिंसा की। कई एक्सपर्ट इस बात को समझने में नाकामयाब रहे कि यह एक फुल-स्केल विद्रोह था। 5 अगस्त, 2024 की घटनाओं के बाद यूनुस के नेतृत्व में उन्हीं ताकतों को दोबारा एक्टिव कर दिया गया है और इसके नतीजे अब साफ दिखाई दे रहे हैं।'

मौत के बाद भी खतरा है उस्मान हादी
जैसा कि उस्मान हादी के समर्थक ने बताया कि वह उसके बताए रास्ते पर चल रहा है, उससे दंगों का पैटर्न साफ हो गया है। सबसे पहले आजाद मीडिया संस्थानों को निशाना बनाया गया क्योंकि वे सवाल पूछते हैं, सरकार और कट्टरता को आईना दिखाते हैं। मीडिया संस्थानों पर अटैक का मकसद सिर्फ प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि खबरों को रोकना और डर का माहौल पैदा करना है। अराफात के पोस्ट में ये भी बताया गया कि मीडिया पर हमलों के बाद दंगाई, बंगबंधु के आवास की तरफ बढ़े। यह सोच दिखाती है कि टारगेट सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि बहुलवादी पहचान और लोकतांत्रिक विरासत दोनों पर सीधा हमला है।
उस्मान हादी के विचार क्यों खतरनाक?
बांग्लादेशी स्टूडेंट लीडर उस्मान हादी के विचारों का संदर्भ यहां अहम है। इन विचारों में बहुलवाद की एंट्री नहीं है। इसमें हिंसा के माध्यम से समाज पर एकरूपता थोपने की मिज़ाज है। ऐसी विचारधारा असहमति को देश से गद्दारी मानती है और सवाल उठाने वालों को दुश्मन। इसी के परिणामस्वरूप, मीडिया संस्थान इसका पहला निशाना बनते हैं। यही कारण है कि दंगों में स्ट्रैटेजी के तहत मीडिया संस्थानों को चुना गया ताकि भय और अराजकता के बीच उनकी मुखर आवाजें खामोश हो जाएं।
बांग्लादेशी आर्मी भी दे रही मौन सहमति
सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो दंगाई ये भी बताता दिख रहा है कि जब वह मीडिया संस्थान को जला रहा था तो कैसे आर्मी ने उसे रोकने के बजाय उसको अपनी मौन सहमति दी। उन्मादी ने बताया कि जब वे प्रोथोम आलो को आग लगाने पहुंचे तो वहां आर्मी भी आ गई। लेकिन आर्मी ने उन्हें नहीं रोका। क्योंकि उन्होंने पहले ही साफ कर दिया था कि जो भी रोकेगा उसे आग में डाल देंगे। वे आर्मी के जवानों को सलाम करते हैं क्योंकि उन्होंने आगजनी करने से नहीं रोका।
बांग्लादेशी दंगाई अब चाहते क्या हैं?
इसके बाद दंगाई एक और धमकी देता है और बोलता है कि बांग्लादेश में डेली स्टार खत्म हो चुका है। प्रोथोम आलो भी खत्म हो गया। हम रुकने वाले नहीं हैं। जिन लोगों ने उस्मान हादी को मारा है और शेख हसीना, इस सभी को बांग्लादेश को हैंडओवर करना चाहिए। मैं सरकार से मांग करता हूं जब तक ये नहीं होता तब तक भारत के साथ राजनयिक संबंध खत्म कर लेने जरूरी हैं।
अब सवाल है कि आगे क्या? स्थिति चिंताजनक हैं। अगर इन विचारों को चुनौती नहीं मिली और कानून-व्यवस्था के साथ ही लोकतांत्रिक संस्थानों की सुरक्षा नहीं की गई, तो हालात और खराब होंगे। एक आजाद और लोकतांत्रिक समाज ऐसी कट्टरपंथी ताकतों के प्रभुत्व में नहीं फल-फूल सकता। बांग्लादेश के आगे सबसे बड़ी चुनौती आज यही है कि वह हिंसा की इस सियासत का जवाब कैसे दें ताकि उन्मादी विचारों की आग पूरे देश की नींव को ना जला पाए।
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