Tsunami: यूं तो समंदर की लहरों पर किसी का जोर नहीं चलता है। आम दिनों में भी जब समंदर में ऊंची लहरें उठती हैं तो वह तटों पर दस्तक देकर अपनी ताकत का अहसास कराती हैं। लेकिन तेज भूकंप के बाद समंदर की निचली सतह में हुई हलचल ऐसी लहर पैदा करती है जो विनाशकारी रूप ले लेती है। सुनामी की ये लहरें प्रलयकारी होती हैं। इनकी ताकत के आगे सबकुछ तिनके की तरह बिखर जाता है। रूस के सुदूर पूर्व में 8.8 की तीव्रता का ताकतवर भूकंप आने के चलते जापान, अमेरिका के हवाई और प्रशांत सागर में सुनामी की लहरें उठी हैं। इस लेख में यह जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर तटीय इलाकों में तेज भूकंप के बाद ऐसा क्या होता है कि सुनामी की लहरें उठने लगती हैं? कब समंदर की लहरें कहर बरपाने लगती हैं और कब जारी होता है सुनामी का अलर्ट?
कब आती है सुनामी?
सुनामी एक प्राकृतिक आपदा है। समुद्र तल के नीचे होने वाले भूकंपीय गतिविधियां सुनामी की लहरों को जन्म देती हैं। भूकंप के चलते टेक्टोनिक प्लेटों में हलचल होती हैं और प्लेटें खिसकती हैं। टेक्टोनिक प्लेटों में हलचल के चलते यह पानी को ऊपर की ओर धकेलता है और समंदर में सुनामी की लहरें बनती हैं। लेकिन हर भूकंप सुनामी की कारण नहीं बनता। यह भूकंप की तीव्रता पर निर्भर करता है। भूकंप के बाद सुनामी का खतरा उन देशों में ज्यादा होता है जो समुद्र कि किनारे बसे हैं। खासतौर पर बड़े भूकंप (जब भूकंप की तीव्रता 7 या उससे ज्यादा हो) के बाद समुद्र के तल में तेज हलचल होती हैं और समंदर में विशाल लहरें पैदा होती हैं।
सुनामी का कारण
पृथ्वी की सतह टेक्टोनिक प्लेटों से बनी है जो लगातार गतिमान रहती हैं। सुनामी अक्सर उन जगहों पर आती है जहां एक टेक्टोनिक प्लेट दूसरी के नीचे खिसकती हैं। भूकंप के दौरान, जब इन प्लेटों के बीच तनाव अचानक से मुक्त होता है, तो समुद्र का तल कुछ ही सेकंड में कई मीटर ऊपर या नीचे खिसक जाता है। कल्पना कीजिए कि आप एक बाथटब में पानी के नीचे अपना हाथ तेजी से ऊपर उठाते हैं। ऐसा करने से पानी में एक लहर पैदा होगी जो किनारों की ओर जाएगी। समुद्र में भी ठीक यही होता है, लेकिन बहुत बड़े पैमाने पर समुद्र तल का यह अचानक ऊपर उठना अपने ऊपर मौजूद करोड़ों लीटर पानी को ऊपर की ओर धकेलता है। गुरुत्वाकर्षण के कारण, ऊपर उठा हुआ पानी वापस अपनी जगह पर आने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया में, ऊर्जा पानी में स्थानांतरित हो जाती है और लहरों की एक श्रृंखला बन जाती है जो भूकंप के केंद्र से चारों दिशाओं में फैलना शुरू कर देती है।
सुनामी की लहरें
सुनामी की लहरें सामान्य समुद्री लहरों से अलग होती हैं, क्योंकि इनकी वेवलेंथ बहुत लंबी होती है और इन लहरों की रफ्तार बहुत तेज होती है। ये 500 से 1000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से यात्रा करती हैं। सुनामी चेतावनी प्रणाली भूकंप और समुद्री गतिविधियों की निगरानी करती है। भूकंप की तरह सुनामी का भी पहले से पता नहीं लगाया जा सकता। लेकिन सुनामी चेतावनी केंद्र यह जानकारी जरूर दे देता है कि किस भूकंप के चलते सुनामी आ सकती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सुनामी से बचाव के लिए चेतावनी प्रणालियों के साथ-साथ लोगों का जागरूक होना बेहद जरूरी है।
कैसे दी जाती है सुनामी की चेतावनी?
जब भी समंदर में शक्तिशाली भूकंप आता है तो वहां वॉर्निंग सेंटर अलर्ट हो जाते हैं। हर तरह के वैज्ञानिक आकलन के बाद यह तय किया जाता है कि समुद्र में कंपन के चलते लहरें किस दिशा में और कितनी ऊंचाई तक जाएगी। यह पता लगाने के लिए दुनिया भर में अलग-अलग क्षेत्रीय सुनामी वॉर्निंग सिस्टम बनाई गई हैं। प्रशांत महासागर में अमेरिका, हिंद महासागर में भारत, जापान और इंडोनेशिया जैसे देश इस प्रणाली के जरिए निगरानी करते हैं। इन इलाकों में समुद्र की सतह और दबाव को मापने के लिए कई सेंसर्स और उपकरण समुद्र तल में स्थापित किए गए हैं।

क्या है DART सिस्टम?
डीप ओशन असेसमेंट एंड रिपोर्टिंग ऑफ सुनामी यानी डीएआरटी एक मॉर्डन तकनीक है जो सुनामी की सटीक भविष्यवाणी करने में बेहद कारगर साबित हो रही है। यह तकनीकी वर्ष 2000 में शुरू की गई थी।
इसमें समुद्र की गहराई में बॉटम प्रेशर रिकॉर्डर (BRP) लगाया जाता है जो सतह पर तैरती हुई एक उपकरण से जुड़ा होता है। जैसे समुद्र तल पर कोई असामान्य दबाव या हलचल होती है तो BRP तुरंत डेटा सैटेलाइट के जरिए सुनामी की चेतावनी निगरानी केंद्रों तक भेजता है। ये केंद्र फिर कंप्यूटर की मदद से उस डेटा का विश्लेषण कर यह तय करते हैं कि किन क्षेत्रों में खतरा है। लहरों की गति और दिशा क्या होगी और कितनी ऊंची लहरें उठ सकती हैं। इसके बाद उस क्षेत्र की सरकार और नागरिकों को अलर्ट भेजा जाता है।
आजकल आधुनिक तकनीक के चलते साइंटिस्ट सुनामी का अलर्ट करीब एक घंटे पहले जारी कर सकते हैं। हालांकि यह अनुमान 100 प्रतिशत सटीक नहीं होता है लेकिन लोगों की जान बचाने के लिहाज यह कारगर साबित हुआ है। इस तकनीक के चलते कई देशों में समुद्र तटीय इलाकों में लोगों को समय रहते सुरक्षित जगहों पर जाने का मौका मिल जाता है।