Friday, April 26, 2024
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भारत-चीन में तनाव को कम करने के लिए 2-3 दिन में होगी कोर कमांडर स्तर की बातचीत: सूत्र

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव को लेकर अगले 2-3 दिनों में कोर कमांडर स्तर की बातचीत होगी।

Devendra Parashar Reported by: Devendra Parashar @DParashar17
Published on: September 18, 2020 21:29 IST
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Image Source : PTI REPRESENTATIONAL भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव को लेकर अगले 2-3 दिनों में कोर कमांडर स्तर की बातचीत होगी।

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव को लेकर अगले 2-3 दिनों में कोर कमांडर स्तर की बातचीत होगी। सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक, इस बातचीत का एजेंडा और मुद्दा वही रहेगा, जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की मौजूदगी में हुई उच्च-स्तरीय बैठक में तय किया गया था। सूत्रों ने बताया कि कोर कमांडर स्तर की बातचीत में भारत इस बात पर जोर देगा कि चीन की ओर से डिसएंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन काम साथ-साथ पूरा किया जाए।

इससे पहले भारत ने गुरुवार को कहा कि चीन को पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील क्षेत्र सहित टकराव वाले सभी इलाकों से सैनिकों को पूर्ण रूप से हटाने के लिये प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए। साथ ही, उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिशें नहीं करने को भी कहा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि दोनों देशों को तनाव बढ़ा सकने वाली गतिविधियों से दूर रहते हुए टकराव वाले इलाकों में तनाव घटाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। चीनी ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ (PLA) ने पैंगोंग झील क्षेत्र के उत्तरी और दक्षिणी तटों पर पिछले 3 सप्ताह में भारतीय सैनिकों को डराने की कम से कम 3 कोशिशें की हैं। यहां तक कि 45 साल में पहली बार एलएसी पर हवा में गोलियां चलाई गई।

श्रीवास्तव ने कहा, ‘चीन को पैंगोंग झील सहित टकराव वाले सभी इलाकों से यथाशीघ्र सैनिकों को पूर्ण रूप से हटाने के लिये और सीमा क्षेत्रों में तनाव घटाने के लिये भारत के साथ गंभीरता से काम करना चाहिए। सीमा क्षेत्रों में शांति एवं स्थिरता को कायम रखने पर द्विपक्षीय समझौतों एवं प्रोटोकॉल के मुताबिक ऐसा किया जाना चाहिए।’ चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी किए गए एक बयान के मद्देनजर श्रीवास्तव की यह टिप्पणी आई है। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि सैनिकों को हटाना और सीमा क्षेत्रों में शांति बहाल करने की प्रक्रिया शुरू करना भारत पर निर्भर करता है।

श्रीवास्तव ने कहा, ‘हम आशा करते हैं कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का पूरी तरह से सम्मान करेगा और एकतरफा तरीके से यथास्थिति बदलने की कोई और कोशिश नहीं करेगा।’ विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मॉस्को में दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच क्रमश: 4 और 10 सितंबर को हुई अलग-अलग बैठकों में बनी सहमति का भी जिक्र किया। श्रीवास्तव ने कहा, ‘बैठकों के दौरान दोनों देशों के मंत्रियों के बीच यह सहमति बनी कि एलएसी से लगे टकराव वाले सभी इलाकों से सैनिकों को शीघ्र और पूरी तरह से हटाया जाना चाहिए। इसलिए, दोनों देशों को तनाव बढ़ा सकने वाली गतिविधियों से दूर रहते हुए टकराव वाले इलाकों में तनाव घटाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके लिये द्विपक्षीय समझौतों एवं प्रोटोकॉल के सख्त अनुपालन की जरूरत है तथा यथास्थिति बदलने की एकतरफा कोशिश नहीं करनी चाहिए।’

श्रीवास्तव ने सीमा गतिरोध पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा बुधवार और बृहस्पतिवार को संसद में दिये बयान का भी जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने दो टूक कह दिया है कि चीनी पक्ष के साथ भारत शांतिपूर्ण वार्ता के लिये प्रतिबद्ध है जिसमें राजनयिक एवं सैन्य माध्यम भी शामिल हैं। मास्को में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से अलग 10 सितंबर को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ एक बैठक की थी, जिसमें सीमा विवाद के हल के लिये पांच सूत्री एक समझौते पर सहमति बनी। उल्लेखनीय है कि 15 जून को गलवान घाटी में हुई झड़प में 20 भारतीय सैन्य कर्मियों के शहीद होने के बाद पूर्वी लद्दाख में तनाव कई गुना बढ़ गया। चीनी सैनिक भी इसमें हताहत हुए लेकिन चीन ने अब तक कोई आंकड़ा सार्वजनिक नहीं किया है।

पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर 29 और 30 अगस्त की दरम्यानी रात भारतीय भूभाग पर कब्जा करने की चीन की नाकाम कोशिश के बाद स्थिति एक बार फिर से बिगड़ गई। भारत ने पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर कई पर्वत चोटियों पर तैनाती की और किसी भी चीनी गतिविधि को नाकाम करने के लिये क्षेत्र में फिंगर 2 तथा फिंगर 3 इलाकों में अपनी मौजूदगी मजबूत की है। चीन फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच के इलाकों पर कब्जा कर रहा है। इस इलाके में फैले पर्वतों को फिंगर कहा जाता है। चीन ने भारत के कदम का पुरजोर विरोध किया है। हालांकि, भारत यह कहता रहा है कि ये चोटियां एलएसी के इस ओर हैं। भारत ने चीनी अतिक्रमण के प्रयासों के बाद क्षेत्र में अतिरिक्त सैनिक एवं हथियार भी भेजे हैं। साथ ही, क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाई है।

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