Wednesday, December 03, 2025
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मोरारजी देसाई: इकलौते PM जिन्हें भारत और पाक दोनों का मिल चुका है सर्वोच्च सम्मान, इंदिरा को कहते थे 'गूंगी गुडिया'

पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को 14 अगस्त 1990 को पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से नवाजा गया था। वह पहले भारतीय थे जिन्हें पाकिस्तान ने यह पुरस्कार दिया।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : Apr 10, 2025 12:58 pm IST, Updated : Apr 10, 2025 12:58 pm IST
morarji desai- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO मोरारजी देसाई को मिला था पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान 'निशान-ए-पाकिस्तान'।

भारतीय राजनीति में ऐसे कम ही राजनेता हुए हैं, जिन्होंने जीवनपर्यंत अपने सिद्धांतों का पालन किया। ऐसे ही एक राजनेता थे मोरारजी देसाई। मोरारजी सिद्धांतों के लिए किसी से भी लड़ जाते फिर चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। प्रशासनिक नौकरी को छोड़कर राजनीति में शामिल होने वाले मोरारजी देसाई का 10 अप्रैल 1995 को 99 साल की उम्र में निधन हो गया था। वह साल 1977 से लेकर 1979 तक भारत के चौथे प्रधानमंत्री रहे।

मोरारजी देसाई का जन्म गुजरात के भदेली गांव में 29 फरवरी, 1896 को हुआ था। वह देश के एकलौते प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा है। उन्हें भारत रत्न और पाकिस्तान का सर्वोच्‍च सम्‍मान निशान-ए-पाकिस्‍तान मिल चुका है।

क्या इस वजह से मोरारजी देसाई को मिला निशान-ए-पाकिस्तान?

मोरारजी को सर्वोच्च सम्मान देने के पाकिस्तान के इस कदम के पीछे का मकसद हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारना था? या महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सीमांत गांधी कहे जाने वाले 'खान अब्दुल गफ्फार खान' को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिए जाने के बाद इसे सद्भावना के तहत पाकिस्तान द्वारा भी किसी भारतीय नेता को सम्मानित करना था? इस पूरे वाकये पर सबसे चर्चित थ्योरी यह है कि इमेर्जेंसी के बाद 1970 के आखिरी के दशक में जब वह भारत के पीएम थे तो पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी करने के लिए इजराइली विमानों को जरूरी ईंधन भरने के लिए भारत की धरती का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी थी।

भारतीय रॉ एजेंट्स को पाकिस्तानी सेना ने उतारा मौत के घाट

साथ ही पाकिस्तान के तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल जिया-उल हक को बातों ही बातों में यह बता दिया था कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को पाकिस्तान के परमाणु प्रोग्राम के बारे में सब पता है। जिससे पाकिस्तान के शहर कहुंटा में जहां परमाणु प्लांट लगे थे, उसमें सारे भारतीय रॉ एजेंट्स को पाकिस्तानी सेना ने मौत के घाट उतार दिया। वहीं, इस मामले पर डिफेंस एक्सपर्ट आलोक बंसल इन संभावनाओं से साफ इनकार कर देते हैं कि पाकिस्तान के कहुंटा शहर के परमाणु प्लांट के बारे में पूर्व पीएम मोरारजी देसाई ने जियाउल हक को कुछ बताया था या इस एहसान के चलते उनको 'निशान-ए-पाकिस्तान' दिया गया था। हालांकि उन्होंने खान अब्दुल गफ्फार खान को 1988 में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न दिए जाने की घटना को इसके केंद्र में रखा।

नेहरू के निधन के बाद PM पद के सबसे मजबूत दावेदार थे मोरारजी

मोरारजी देसाई बहुत काबिल नेता थे। 1964 में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद वो प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे हालांकि कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी के बीच वे अपने साथ ज्यादा सदस्यों को नहीं जोड़ पाए ऐसे में पीएम की कुर्सी पर लाल बहादुर शास्त्री बैठ गए। 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री पद खाली हो गया। मोरारजी और इंदिरा गांधी में पीएम बनने को लेकर जोरदार टक्कर थी। मोरारजी अपने को कांग्रेस का बड़ा नेता समझते थे। वह इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहा करते थे। कई अन्य नेता भी इंदिरा का विरोध कर रहे थे। इसके बावजूद  इंदिरा गांधी पीएम बन गईं और मोरारजी का विरोध किनारे रह गया।

जयप्रकाश नारायण का समर्थन से बने प्रधानमंत्री

नवंबर 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ और इंदिरा गांधी ने नई कांग्रेस बनाई तो देसाई इंदिरा के खिलाफ खेमे वाली कांग्रेस-ओ में थे। 1975 में मोरारजी देसाई जनता पार्टी में शामिल हो गए। मार्च 1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया। लेकिन उनके लिए प्रधानमंत्री बनना इतना आसान नहीं था क्योंकि चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम भी पीएम पद के दावेदार थे। ऐसे समय में जयप्रकाश नारायण का समर्थन काम आया और मोरारजी प्रधानमंत्री बने। 1977 से लेकर 1979 तक मोरारजी देसाई कार्यकाल रहा। चौधरी चरण सिंह के साथ मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।

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