Thursday, April 18, 2024
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आप की अदालत : नितिन गडकरी ने कहा, 'मैं राजनीति से संन्यास नहीं ले रहा हूं, राजनीति में रहकर सामाजिक कार्य करूंगा'

इमरजेंसी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन से मैं राजनीति में आया हूं। और राजनीति मेरा पेशा नहीं है। ये मेरा मिशन है। मैं किसी की चिंता नहीं करता। जो मेरे मन में होता है वो बात मैं कहता हूं

IndiaTV Hindi Desk Written By: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: April 02, 2023 0:00 IST
'आप की अदालत' में नितिन गडकरी - India TV Hindi
Image Source : INDIA TV 'आप की अदालत' में नितिन गडकरी

नयी दिल्ली : केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने राजनीति से संन्यास की खबरों को खारिज करते हुए कहा है कि वे राजनीति में रहकर सामाजिक कार्य करना चाहेंगे। इंडिया टीवी पर प्रसारित शो 'आप की अदालत' में रजत शर्मा के सवालों का जवाब देते हुए गडकरी ने कहा, ' राजनीति मेरा पेशा नहीं है। राजनीति से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन करना मेरा उद्देश्य है। मेरे मन की ऑउटऑफ बॉक्स आइडिया समाज को बदलने की होती है। मेरी बहुत इच्छा है। राजनीति करते-करते इन सब कामों के लिए अपना समय दूंगा, इसके लिए काम करूंगा। मैंने कहीं नहीं कहा मैं राजनीति छोडूंगा। लेकिन मोहन धारिया मेमोरियल लेक्चर में मेरे बयान का कुछ पत्रकारों ने गलत अर्थ निकाला और यह छाप दिया कि मैं राजनीति से संन्यास लेना चाहता हूं। मैंने कभी नहीं कहा कि मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा। उन्हें चार घंटे बाद अपनी रिपोर्ट वापस लेनी पड़ी।"

जब रजत शर्मा ने इस बात का जिक्र किया कि जब उन्हे बीजेपी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया था तो एनसीपी नेताओं ने बयान जारी कर कहा था कि गडकरी को उनके बढ़ते कद के कारण हटाया गया है। गडकरी ने कहा, 'देखिए मैं भारतीय जनता पार्टी में अक्सर कहता था , 'आज मंत्री हूं , कल नहीं रहूंगा।' फिर इसके ऊपर नयी न्यूज़ बन जाएगी। मैं बड़ा नेता हूं , कल नहीं रहूंगा , जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु भी होती है।  मैं कोई अमृत्व लेके नहीं आया। पर मेरा सबसे बड़ा क्वालिफिकेशन है कि मैं भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता हूं और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्वयं सेवक हूं। ये मेरे परमानेंट हैं। मैं कोई साधु-संन्यासी नहीं हूं। मैं अपना परिवार,अपना घर, सब कुछ देखने के बाद फिर समाज का और देश का काम करता हूं। 

'मैं कनविक्शन ओरिएंटेड पॉलिटिशियन हूं। प्रोफेशनल पॉलिटिशियन नहीं हूं। इमरजेंसी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन से मैं राजनीति में आया हूं। और राजनीति मेरा पेशा नहीं है। ये मेरा मिशन है। मैं किसी की चिंता नहीं करता। जो मेरे मन में होता है वो बात मैं कहता हूं और कभी मैंने जो बात कही, एक आध बार गलत कही होगी। तो मैं पब्लिकली कहता हूं कि मुझसे गलती हो गई।'

नई ड्राइविंग पॉलिसी 

गडकरी ने कहा कि उनका मंत्रालय जल्द ही नई ड्राइविंग पॉलिसी और रूल्स लेकर आएगा, जिसके तहत आवेदकों को एक थियोरॉटिकल परीक्षा ऑनलाइन पास करनी होगी और फिर ड्राइविंग टेस्ट के लिए व्यक्तिगत रूप से मौजूद रहना होगा। उन्होंने कहा, "मै खुले दिल से इस बात को स्वीकार करता हूं। कोई संकोच नहीं है कि इस 8–9 साल में पूरा प्रयास करने के बाद भी सड़क हादसों को हम कम नहीं कर सके हैं। हर साल 5 लाख से ज्यादा हादसे होते हैं। करीब 3 लाख लोगों के हाथ-पैर टूटते है और करीब डेढ़ लाख लोगों की मौत होती है। जिनकी मौतें होती है उनमें  से 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग 18 से 34 आयुवर्ग के हैं। हमने हादसों वाली जगह को ब्लैक स्पॉट के रूप में चिन्हित करने के लिए 1 हजार करोड़ रुपया खर्च किया है। हमारी कोशिश है कि ब्लैक स्पॉट्स को आइडेंटिफाई करके कहीं अंडर पास बना रहे हैं तो कहीं ब्रिज बना रहे हैं। इस तरह से सुधार की कोशिश की है। 

दूसरा मुद्दा ऑटो मोबाइल इंजीनियरिंग का है। उसमें भी हमने इकोनॉमिक मॉडल में 6 एयर बैग मैंडेटरी करने की बात कही है। उसमें लगातार सुधार किया है। तीसरी बात विशेष तौर पर  एनफोर्समेंट (कानून लागू करने) की है। लोगों में कानून के प्रति सम्मान भी नहीं है और डर भी नहीं है। मगर बहुत कोशिश करने के बाद भी 3 प्रतिशत GDPA का नुकसान सड़क हादसों के कारण होता है। मुझे दुख होता है कि सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं भारत में होती हैं। इसलिए हम ड्राइविंग लाइसेंस नीति में बदलाव कर रहे हैं।

गडकरी ने खुलासा किया कि 2014 में जब वे परिवहन मंत्री बने तो उन्होंने सभी सरकारी ड्राइवरों की जांच कराई और पाया कि करीब 40 प्रतिशत ड्राइवर्स को मोतियाबिंद की शिकायत थी। गडकरी ने कहा-' एक मुख्यमंत्री का ड्राइवर दोनों आंखों से अंधा था और वो आवाज़ मदद से गाड़ी चलाता था। एक महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे मैं नाम नही लूंगा किसी का, उन्होंने मुझे बताया कि मेरा ड्राइवर एक आंख से अंधा था। मैं 9 साल के अनुभव के बाद ये समझ पाया हूं की सड़क हादसे का सबसे बड़ा संबध ह्युमन बिहेवीयर से है ।

राहुल गांधी

गडकरी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अपनी दादी इंदिरा गांधी के नक्शेकदम पर चलने की सलाह दी, जो विदेशी जमीन पर अपने घरेलू प्रतिद्वंद्वियों की आलोचना करने से बचती थीं। गडकरी ने कहा, 'मैं आपको बता दूं। इंदिरा जी का उद्धरण है कि उनपर विशेष रूप से शाह कमिशन लगा था। इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार आयी थी तब इंदिरा जी लंदन गयी थीं। जब वहां के पत्रकारों ने उनके साथ जो हो रहा था उसके बारे में बातें की ,तो उन्होंने कहा। .. जो जो मेरे प्रश्न हैं, देश में जो कुछ मेरे साथ हो रहा है, उसकी चर्चा मैं देश के बाहर नहीं करूंगी। इसकी चर्चा मैं देश में करूंगी। मुझे लगता है राहुल जी को इंदिरा जी से ये बात ज़रूर सीखनी चाहिए। सरकार के साथ उनका जो भी मतभेद है, जो भी गुस्सा है, उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है। उन्हें भारत के अंदर बोलना चाहिए। बाहर जाकर अपने देश को बदनाम या देश का अपमान नहीं करना चाहिए। 

राहुल गांधी की संसद की सदस्यता से अयोग्य करार दिए जाने के मसले पर नितिन गडकरी ने कहा, 'बीजेपी या मोदी जी ने उनकी सदस्यता समाप्त नहीं की। यह फैसला अदालत का था।  हमें दोष देना उचित नहीं होगा। बाकी राजनीति है। जब मैं पार्टी अध्यक्ष था, तब हम विपक्ष में थे। हमने दो-तीन महीने सदन नहीं चलने दिया। सदस्य जैसा व्यवहार अभी कर रहे हैं वैसा ही करते थे। अटल जी (वाजपेयी) ने कहा था, पार्टियां आएंगी और जाएंगी, नेता आएंगे और जाएंगे प्रधानमंत्री बदलेंगे, इस देश की जनता संप्रभु है, लोकतंत्र सर्वोपरि है, देश को आगे बढ़ना चाहिए।'

गडकरी ने कांग्रेस को याद दिलाया कि डॉ. मनमोहन सिंह के शासन के दौरान अमित शाह पर जांचकर्ताओं ने नरेंद्र मोदी को फंसाने का दबाव डाला था।  गडकरी ने कहा-'मैं आपसे एक बात पूछता हूं। जब कांग्रेस की सरकार थी, जब UPI की सरकार थी तब अमित शाह के साथ क्या किया ? जब इनकी सरकार थी तब झूठे इल्ज़ाम मोदी जी पर क्यों लगाए गए? अमित शाह जी से यह क्यों पूछा गया आप बताओ, माफ़ी का साक्षीदार बनो, मोदी जी का नाम बताओ हम आपको छोड़ देंगे। ये कौन सी राजनीति है? इसलिए  मुझे लगता है कि हम लोग सब लोग मिलकर विचारों के आधार पर राजनीति करें , राजनीति में और लोकतंत्र में गुणात्मक बदलाव करें। मतभेद हो सकते हैं। भिन्नता हो सकती हैं। पार्टियां अलग हो सकती हैं। एजेंडे अलग हो सकते हैं। नेता अलग हो सकते हैं, लेकिन इस देश का विकास, गरीब आदमी का उत्थान और संसदीय लोकतंत्र हमारा उद्देश्य होना चाहिए। लोकतंत्र हमारी आस्था है। संसद हमारा मंदिर है और उसकी गरिमा को कायम रखना हम सब का काम है।

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