Monday, April 29, 2024
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महीनों में तैयार होती है 1 साड़ी, जानें कांचीपुरम साड़ी की क्या है खास बात

नीता अंबानी की कांचीपुरम साड़ी की चर्चा हर जगह है। तो, आइए जानते हैं क्या है कांचीपुरम सिल्स जिसे इंडियन हैंडलूम का मास्टरपीस कहा जाता है और क्यों है ये बेहद खास।

Pallavi Kumari Written By: Pallavi Kumari @Shabdita_Pallav
Published on: March 04, 2024 13:33 IST
kanchipuram sare- India TV Hindi
Image Source : SOCIAL kanchipuram sare

मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की प्री-वेडिंग उत्सव पर नीता अंबानी के हर लुक की अलग से चर्चा रही है। लेकिन, सबसे ज्यादा खूबसूरत वो सिल्वर कलर की कांचीपुरम साड़ी में नजर आई, जिसके बाद भारतीय हस्तशिल्पकारी की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। दरअसल, यह दक्षिण भारत के बुनकरों द्वारा हस्तनिर्मित साड़ी जिसपर जरदोजी कढ़ाई मनीष मल्होत्रा ​​द्वारा तैयार की गई है। इस साड़ी को भारतीय कला, हस्तशिल्प और हथकरघा का मास्टरपीस माना गया क्यों, आइए जानते हैं इस साड़ी से जुड़ी कुछ खास बातें।

क्यों खास थी नीता अंबानी की कांचीपुरम साड़ी

इस साड़ी की खासियत खुद बॉलीवुड और इंडिया के फेमस डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने बताई। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर बताया कि अनंत और राधिका के प्री-वेडिंग में श्रीमती नीता अंबानी ने जो साड़ी पहनी थी वो हैंडलूम कांचीपुरम साड़ी है। ये साड़ी दक्षिण भारत के बुनकरों द्वारा हस्तनिर्मित एक उत्कृष्ट कृति है, जिन्होंने पीढ़ियों से अपनी कला को निखारा है और यह पारंपरिक भारतीय शिल्प कौशल को दर्शाता है। 

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कांचीपुरम साड़ी की क्या है खास बात? 

कांचीपुरम साड़ी (kanchipuram saree) की उत्पत्ति सदियों पहले हुई थी जब ये साड़ियां मंदिरों में बुनी जाती थीं। ये रेशम से बुनी गई कांचीपुरम साड़ियां असंख्य रंगों में पाई जाती हैं। इन साड़ियों में भारी सोने की बुनाई के साथ खास रंग के बॉर्डर और पल्लू होते हैं। ये प्योर सिल्क है इसलिए आपको ये साड़ी गोल्डन और सिल्क रंगों में ही ज्यादा मिलेगी।

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महीनों में तैयार होती है 1 साड़ी

कांसीपुरम सिल्क साड़ी की खासियत कोरवई तकनीक से कंट्रास्ट बॉर्डर और पेटनी तकनीक से कंट्रास्ट पल्लू बनाने में है। कंट्रास्ट बॉर्डर को तीन शटल का उपयोग करके बुना जाता है, दोनों साइड बॉर्डर के लिए दो शटल और साड़ी की बॉडी के लिए एक शटल। कंट्रास्ट पल्लू को पेटनी तकनीक का उपयोग करके बुना जाता है। इस प्रकार से महीनों में बस एक साड़ी ही बनकर तैयार होती है और इसलिए इस साड़ी की कीमत भी काफी ज्यादा होती है। 

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