बैद्यनाथ
शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसने शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। इस तपस्या में रावण ने अपने एक-एक करके अपने सिर भगवान शिव को अर्पित कर दिए। जिससे प्रसन्न होकर शिव भगवान ने उसके दस सिर जोड़ कर वरदान मांगने के लिए रावण से कहा तो रावण ने कह कि हे प्रभु आप मेरे साथ लंका चलो।
शिव ने रावण के बात मान ली लेकिन एक शर्त रखी। शर्त थी कि अगर तुमने इस शिवलिंग को कही नही रखना। अगर तुमने ऐसा किया तो यह वही स्थापित हो जाएगे। रावण ने यह शर्त मान ली और शिवलिंग लेकर लंका को चलने लगा।
जब यह बात देवताओं के पास पहुंची तो खलबली मच गई। अगर भगवान शिव लंका में स्थापित हो गए तो रावण को हरा पाना असंभव हो जाएगा। इस परेशानी का हल निकालने के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए और उन लोगों ने रावण के शिवलिंग लंका ले जाने से रोकने के लिए प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने एक ब्राह्मण का रूप धारण करके धरती चले गए। साथ ही योजना के अनुसार वरुण देव रावण के पेट में चले गए।
उसी समय रावण को बहुत तेज लघुशंका लगी। इसके कारण रावण को शिवलिंग किसी के हाथ देना था। तभी वहां पर ब्राह्मण वेष में विष्णु वहां पहुंचे। रावण ने उन्हें देखकर शिवलिंग को थोडी देर पकडनें का आग्रह किया। ब्राह्मण ने तुरंत शिवलिंग पकड़ लिया और रावण लघुशंका के लिेए चला गया। रावण के जाते ही विष्णु जी ने शिवलिंग नीचे रख दी।
रावण जब ब्राह्मण को देखने आया तो देखा कि शिवलिंग जमीन पर रखा हुआ है और ब्राह्मण जा चुका है। उसने शिवलिंग उठाने की कोशिश की, लेकिन शर्त के अनुसार, भगवान शिव उसी जगह पर स्थापित हो गए थे। जिसके कारण रावण को बहुत तेज गुस्सा आया जिसके कारण रावण ने शिवलिंग पर मुष्टि प्रहार किया जिससे वह जमीन में धंस गया। बाद में रावण ने क्षमा मांगी। माना जाता है कि इस शिवलिंग की पूजा रावण रोज करने आता है। जिसे अब बैद्यनाथ धाम से जाना जाता हैं।
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