किष्किंधापुरी
किष्किंधापुरी जो अब कर्नाटक राज्य में है। यहां से भी रावण की प्रमुख घटनाओं में से एक है। किष्किंधापुरी जो कि राजा बलि की नगरी थी। एक बार रावण ने सुना कि राजा बालि बड़ा बलवान और पराक्रमी है। जिसके कारण रावण उससे युद्ध करने के लिए जा पहुंचा।
बालि की पत्नी तारा, तारा के पिता सुषेण, युवराज अंगद और उसके भाई सुग्रीव ने रावण समझाया कि इस समय बालि नगर से बाहर सन्ध्योपासना के लिए गए हुए हैं। वे ही इतने पराक्रमी है कि आपसे युद्ध कर सकते है और किसी वानर में इतनी शक्ति नही है कि आपसे युद्ध कर सकें। सुग्रीव में बलि की प्रतिक्षा करने को कहा साथ ही यह भी बताया कि वह कितना बड़ा पराक्रमी है। सीथ ही कहा कि आप चाहे तो नदी के तट पर जा सकते है। जहां पर राजा बलि उपासना कर रहे है।
इतना सुनते ही रावण अपने विमान में सवार होकर नही तट पहुंच गया। वहां पर देखा कि राजा बालि शाम की आरती कर रहा था। उसने सोचा कि मैं चुपचाप बालि पर आक्रमण कर दूंगा। बालि ने रावण को आते देख लिया, लेकिन वह बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ और वैदिक मंत्रों का उच्चारण करता रहा। जैसे ही उसे पकड़ने के लिए रावण ने पीछे से हाथ बढ़ाया, लेकिन बालि ने उसे पकड़कर अपनी कांख (बाजू) में दबा लिया और आकाश में उड़ चला। रावण बार-बार बालि को अपने नखों से कचोटता रहा, लेकिन बालि ने उसकी कोई चिंता नहीं की।
तब उसे छुड़ाने के लिए रावण के मंत्री और सिपाही उसके पीछे शोर मचाते हुए दौड़े, लेकिन वे बालि के पास तक न पहुंच सके। इस प्रकार बालि रावण को लेकर पश्चिम सागर के तट पर पहुंचा। वहां उसने संध्योपासना पूरी की।
इसके बाद वह रावण को पुन: लेकर किष्किंधापुरी लौटा। इसके बाद अपने उपवन में बैठकर रावण से पूछा कि कहिए आप कौन है और मेरे पास किसलिए आए है। दशानन ने कहा कि मैं रावण हूं। और मै आपसे युद्ध करने आया था। लेकिन मैने आपका बल देख लिया जिसके कारण मै आपका मित्र बनाना चाहता हूं। और दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता की और एक-दूसरे के मित्र बन गए।
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