विशेषज्ञ क्या मानते इस रहस्य के बारें में
इस बारें में इन लोगों का कहना है कि ये मीनार अनजानें में झूलने वाली बन गई है। जिन पत्थरों से इस मीनार का निर्माण किया गया है। वह पत्थर कुछ ज्यादा ही लचक वाले थे।
एक दूसरें शोध में यह बताया गया कि इन पत्थरों में फेलस्पार की मात्रा ज्यादा है जो कई सालों तक हुई रासायनिक अभिक्रिया का नतीजा है। यह मीनार बलुआ पत्थर से बनी है। है इन पत्थरों में ऐसा गुण पैदा हो गया।
इसके अलावा इन मीनारों की वास्तुकला भी इसके हिलने में मदद करती है। इन सिलेंडरनुमा मीनारों के अंदर सीढ़ियां सर्पाकार हैं। इसके पायदान पत्थरों को गढ़कर बनाए गए हैं। इनका एक किनारा मीनार की दीवार से जुड़ा है तो दूसरा छोर मीनार के बीचो-बीचों एक पतले स्तंभ की रचना करता है। पत्थरों की गढ़ाई बेहतरीन है। आज भी इनके जोड़ खुले नहीं हैं।
इससे यह बात साबित होती है कि निर्माण में कोई कमी नहीं है। जब मीनारों पर धक्का लगाया जाता है तो उसका असर दो दिशाओं पर होता है, एक तो ताकत लगाने की दिशा के विपरीत और दूसरा सर्पाकार सीढ़ियों की दिशा में नीचे से ऊपर की ओर। जिसके कारण मीनार आगे-पीछे हिलने लगती हैं।
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