नागा साधु हमेशा शस्त्र लेकर क्यों चलते हैं? जानिए इसके पीछे की वजह
नागा साधु हमेशा शस्त्र लेकर क्यों चलते हैं? जानिए इसके पीछे की वजह
Mahakumbh 2025: नागा साधु अपने हाथ में अस्त्र-शस्त्र लेकर क्यों चलते हैं, उनकी जीवन शैली दूसरे संतों से अलग क्यों है, वो वस्त्र क्यों नहीं पहनते। जानिए इन सभी सवालों के जवाब, जो खुद महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने बताई।
महाकुंभ का पहला अमृत स्नान 14 जनवरी को संपन्न हुआ। इस दौरान करीबन 3.5 करोड़ लोगों ने अमृत स्नान किया। इस स्नान के दौरान नागा साधुओं ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। हाथों में भाला, तलवार, गदा आदि शस्त्र लेकर चल रहे नागाओं ने महाकुंभ की चमक को और बढ़ा दिया। इसके बाद से लोगों के मन में सवाल उठने लगे कि आखिर अमृत स्नान के समय नागा साधुओं के हाथों में अस्त्र-शस्त्र क्यों रहते हैं, क्या है आखिर इसके पीछ के राज? जब इन सवालों को लेकर महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती से बात की गई, तो उन्होंने इसके पीछे का सारा राज बता दिया।
बता दें कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी कठिन है, कई सालों तक शख्स को इसकी कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। पर इससे पहले उन्हें 17 पिंडदान करने पड़ते हैं, 8 पिछले जन्म के और 8 इस जन्म के और एक होता है खुद का पिंडदान, जो आम लोगों का मरने के बाद होता है लेकिन नागाओं का जिंदा रहते ही किया जाता है। वस्त्र को लेकर नागा साधु मानते हैं कि हर प्राणी जिस स्वरूप में जन्म लेता है, उसे उसी स्वरूप में जाना है तो इन सांसारिक मोह माया में क्यों पड़ना। स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने आगे कहा कि ये नागा साधु सनातन के सैनिक हैं और वो उस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसकी शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी।
क्यों लेकर चलते हैं शस्त्र? Image Source : PTI
अमृत स्नान करते हुए नागा साधु
महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने कहा कि हमारे यहां आदि शंकराचार्य की बनाई गई परंपरा में दो पद्धतियां हैं, एक शस्त्रों और दूसरा शास्त्रों की परंपरा है। शास्त्र परंपरा के सम्वाहक हम महामंडलेश्वर हैं और शस्त्र की परंपरा के संवाहक हमारे नागा साधु हैं। उनको हमारे यहां सैनिकों के रूप में माना जाता है, वे धर्म की रक्षा के लिए सैनिक हैं। कुंभ की परंपरा में वे भाले सबसे आगे रहते हैं क्योंकि भाले हमें याद दिलाते हैं कि कैसे हमारे सशस्त्र सेना उन भालों को लेकर आगे चलती थी और विधर्मियों से हमारे धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध रहती थी। उन्हीं परंपरा का सम्मान करते हुए हम लोग भालों का सम्मान करते हैं, आगे-आगे भाले जाते हैं, नागा साधु जाते हैं और फिर क्रमश: जो पहले महामंडलेश्वर बना वे और जो बाद में महामंडलेश्वर बना वे स्नान के लिए जाते हैं।
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