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Mahakumbh: नागा साधुओं के कौन-कौन से हैं प्रमुख अखाड़े? उनके इष्टदेव के बारे में भी जानिए

Mahakumbh: महाकुंभ में नागा साधु ने अपनी धुनि रमा ली है। साथ ही दूसरे अमृत स्नान के लिए तैयार हैं, जो मौनी अमावस्या के दिन होना है। ऐसे में आइए जानते हैं उनके प्रमुख अखाड़े के बारे में...

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jan 17, 2025 18:48 IST, Updated : Jan 17, 2025 18:48 IST
Mahakumbh 2025
Image Source : PTI महाकुंभ

Kumbh Mela 2025: महाकुंभ मेले में हर बार की तरह सबसे ज्यादा का विषय नागा साधु और उनके अखाड़े ही हैं। कारण है उनका रहस्यमयी जीवन। हर कोई उनके रहस्यमयी जीवन जानने को आतुर रहता है। आमजन के बीच यह अक्सर कोतूहल का विषय बना रहता है कि आखिर वे कहां से आते हैं महाकुंभ के बाद कहां चले जाते हैं। इनके कितने अखाड़े हैं और उनके साधना विधि और इष्टदेव कौन हैं।

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बता दें कि नागा साधुओं के प्रमुख तौर पर 13 अखाड़ों को मान्यता प्राप्त है, जिसमें 7 शैव, 3 वैष्णव और 3 उदासीन अखाड़े हैं। ये सभी अखाड़े एक जैसे ही दिखते हैं पर इनकी पूजा विधि, परंपराएं और इष्टदेव अलग-अलग हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में...

जूना अखाड़ा

इस अखाड़े को शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा माना जाता है, इस अखाड़े में सबसे ज्यादा देशी और विदेशी महामंडलेश्वर हैं। इसके इष्टदेव दत्तात्रेय भगवान हैं। इस अखाड़े को एक और नाम भैरव कहा जाता है।

अटल अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 569 ईस्वी में हुई थी। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है। साथ ही इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को ही दीक्षा मिलती है। इस अखाड़े की इष्टदेव भगवान गणेश हैं। 

महानिर्वाणी अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 681 ईस्वी में हुई। हालांकि इसके जगह को लेकर विवाद है कुछ लोगों का कहना है कि यह अखाड़ा वैद्यनाथ धाम में बना जबकि कुछ का मानना है हरिद्वार के नीलधारी में इसकी उत्पत्ति हुई। उज्जैन के महाकालेश्वर की पूजा का जिम्मा यही अखाड़ा संभालता है। इस अखाड़े की इष्टदेव कपिल मुनि है।

आह्रवान अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 646 में की गई और 1603 में इसे पुनर्संयोजित किया गया। इस अखाड़े का केंद्र काशी है। इसके इष्टदेव दत्तात्रेय और गणेश जी है। इस अखाड़े में महिला साध्वियों को शामिल नहीं किया जाता।

निरंजनी अखाड़ा

यह अखाड़ा 826 में बना, कहा जाता है कि सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे इसी अखाड़े में हैं। इसे गुजरात के मांडवी में स्थापित किया गया था। इस अखाड़े के इष्ट देव कार्तिकेय हैं।

पंचाग्नि अखाड़ा

इसकी स्थापना 1136 में हुई। इसका भी प्रमुख केंद्र काशी है। इस अखाड़े में चारों पीठों के शंकराचार्य सदस्य हैं। साथ ही इस अखाड़े में सिर्फ ब्राह्मणों को ही दीक्षा दी जाती है। इस अखाड़े की इष्टदेव माता गायत्री और अग्नि हैं।

आनंद अखाड़ा

यह एक शैव अखाड़ा है, जिसकी स्थापना 855 में एमपी के बरार में हुई थी। इस अखाड़े की खास बात है कि यहां आज तक एक भी महामंडलेश्वर नहीं बना। इस अखाड़े में आचार्य का पद ही प्रमुख माना जाता है। इसका भी अभी केंद्र काशी है। इसके इष्टदेव सूर्य देव हैं।

निर्मोही अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 1720 में स्वामी रामानंद ने की थी। वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से सबसे ज्यादा अखाड़े इसी में हैं। जिनकी कुल संख्या 9 है। इनके इष्टदेव श्रीराम और श्रीश्याम (श्रीकृष्ण) हैं।

बड़ा उदासीन अखाड़ा

इसके संस्थापक चंद्राचार्य उदासीन जी हैं। इनमें सांप्रदायिक भेद हैं। इसके उद्देश्य लोगों की सेवा करना है। इसके 4 महंत होते हैं जो कभी रिटायर नहीं होते। इसके इष्टदेव चंद्रदेव हैं।

निर्मल अखाड़ा

इसकी स्थापना 1784 में हुई, श्री गुरुग्रंथ साहिब इनकी ईष्ट पुस्तक है और इष्ट देव गुरु नानक देव हैं।

नया उदासीन अखाड़ा

नया उदासीन अखाड़ा 1902 में प्रयागराज में बना, इसके इष्टदेव चंद्रदेव हैं।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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