Thursday, May 09, 2024
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अमेरिका पर भड़का चीन, लोकतंत्र का इस्तेमाल 'जनसंहार के हथियार' के रूप में करने का लगाया आरोप

चीन ने कहा कि लंबे समय से, अमेरिका अपनी राजनीतिक व्यवस्था और मूल्यों को दूसरों पर थोपता रहा है, तथाकथित "लोकतांत्रिक सुधारों" पर जोर देता रहा है

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: December 11, 2021 18:44 IST
अमेरिका पर भड़का चीन, लोकतंत्र का इस्तेमाल 'जनसंहार के हथियार' के रूप में करने का लगाया आरोप - India TV Hindi
Image Source : AP, PTI अमेरिका पर भड़का चीन, लोकतंत्र का इस्तेमाल 'जनसंहार के हथियार' के रूप में करने का लगाया आरोप 

Highlights

  • लोकतंत्र के नाम पर बंटवारे और टकराव को भड़काना इतिहास में लौटना है-चीन
  • यह दुनिया में उथल-पुथल और आपदा के अलावा कुछ नहीं लाएगा-चीन

बीजिंग: चीन ने अमेरिका पर "विभाजन और टकराव को भड़काने" के लिए लोकतंत्र को "जनसंहार के हथियार" के रूप में इस्तेमाल करने का शनिवार को आरोप लगाया और बाइडन प्रशासन द्वारा आयोजित लोकतंत्र के लिए शिखर सम्मेलन की आलोचना की। चीन ने इस सम्मेलन को उसके उदय को रोकने और अलग-थलग करने के लिए, अमेरिका द्वारा बनाया जा रहा एक नय मोर्चा करार दिया। दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 100 से अधिक नेताओं ने भाग लिया। यह सम्मेलन निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने, मानवाधिकारों की रक्षा और भ्रष्टाचार से लड़ने में प्रगति का मूल्यांकन करने के आह्वान के साथ शुक्रवार को संपन्न हुआ। 

अमेरिका ने चीन और रूस को आमंत्रितों की सूची से हटा दिया था लेकिन बीजिंग स्वशासी द्वीप ताइवान को आमंत्रित किए जाने पर गुस्से में है, जिसे चीन ने 'एक चीन' नीति का घोर उल्लंघन बताया, चीन ताइपे को चीनी मुख्य भूभाग का अभिन्न अंग मानता है। पिछले कई दशकों में ऐसा पहली बार हो रहा है जब ताइवान किसी इतने महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हिस्सा ले रहा है। इसमें ताइवान के बिना विभाग वाले मंत्री ऑड्रे तांग और अमेरिका में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधि कार्यालय के प्रमुख ह्सियाओ बी-खिम शामिल हुए। 

ताइवानी मीडिया की खबरों में कहा गया कि ‘ डिजिटल अधिनायकवाद का निषेध और लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन’ विषय पर परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए तांग ने कहा कि सरकारों को नागरिक संस्थाओं के साथ मिलकर डिजिटल लोकतंत्र के लिये काम करना चाहिए जिससे दुनिया के सामने मौजूद विभिन्न चुनौतियों का सामना किया जा सके। शिखर सम्मेलन के समापन पर बाइडन ने कहा, “लोकतंत्र के लिए इस शिखर सम्मेलन को समाप्त करते हुए मैं एक अंतिम संदेश देना चाहता हूं कि हम जानते हैं कि हमारे आगे काम कितना कठिन होने वाला है। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हम चुनौती के लिए तैयार हैं।” 

उन्होंने कहा कि दो दिवसीय डिजिटल सभा ने प्रदर्शित किया है कि लोकतांत्रिक दुनिया हर जगह है। बाइडन ने कहा कि निरंकुशता कभी भी दुनिया भर के लोगों के दिलों में, विश्व के प्रत्येक भाग में जलने वाली स्वतंत्रता की चिंगारी को नहीं बुझा सकती है। उन्होंने कहा, “हम उन सभी के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो उन मूल्यों को साझा करते हैं, आगे के मार्ग के नियमों को आकार देने के लिए जो 21 वीं सदी में हमारी प्रगति को नियंत्रित करने जा रहे हैं, जिसमें साइबर सुरक्षा और उभरती प्रौद्योगिकियों के मुद्दे शामिल हैं ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता और लोकतंत्र का लाभ मिलता रहे, जैसा कि हमारे पास है।” 

पिछले कुछ सप्ताह से शिखर सम्मेलन को लेकर आक्रामक रुख अपने चीनी विदेश मंत्रालय, ने अमेरिका पर लोकतंत्र के नाम पर विभाजन का आरोप लगाते हुए एक लंबा बयान जारी किया। बयान में कहा गया, “लोकतंत्र के नाम पर बंटवारे और टकराव को भड़काना इतिहास में लौटना है, और यह दुनिया में उथल-पुथल और आपदा के अलावा कुछ नहीं लाएगा।” उसने कहा कि लंबे समय से, अमेरिका अपनी राजनीतिक व्यवस्था और मूल्यों को दूसरों पर थोपता रहा है, तथाकथित "लोकतांत्रिक सुधारों" पर जोर देता रहा है, एकतरफा प्रतिबंधों का दुरुपयोग करता रहा है और "रंग क्रांतियों" को उकसाता रहा है, जिसके "विनाशकारी परिणाम" हुए हैं। 

विश्व भर में मीडिया विभिन्न विरोध आंदोलनों और सरकारों के प्रयास या सफल परिवर्तन का वर्णन करने के लिए “रंग क्रांति” शब्द का उपयोग करता है बयान में कहा गया, “लोकतंत्र अमेरिका द्वारा अन्य देशों के मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जनसंहार का एक हथियार बन गया है।” साथ ही कहा कि अमेरिकी 'लोकतंत्र के लिए शिखर सम्मेलन' ने "वैचारिक रेखा खींची है और लोकतंत्र को एक उपकरण तथा एक हथियार में बदल दिया है।” 

बयान में कहा गया कि अमेरिका ने "लोकतंत्र के बहाने लोकतंत्र को विफल करने, विभाजन और टकराव को भड़काने और अपनी आंतरिक समस्याओं से ध्यान हटाने की कोशिश की। इसने दुनिया भर में अपने अधिपत्य को बनाए रखने का प्रयास किया, और इसके मूल में संयुक्त राष्ट्र के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कमजोर करने और अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा रेखांकित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास किया।” 

पाकिस्तान को भी भारत और मालदीव के साथ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन वह इसमें शामिल नहीं हुआ। संभवत: चार दिसंबर को चीनी विदेश मंत्री वांग यी द्वारा अपने पाकिस्तानी समकक्ष शाह महमूद कुरैशी को देर रात फोन करने के बाद उसने यह कदम उठाया। माना जा रहा है कि फोन पर चीनी विदेश मंत्री ने बैठक की आलोचना करते हुए कहा कि अमेरिका का लक्ष्य लोकतंत्र की मजबूती नहीं बल्कि अधिपत्य जमाना है। वांग ने कुरैशी से कहा था कि अमेरिका लोकतंत्र के नाम पर दुनिया में अपनी प्रभावी स्थिति की रक्षा करना चाहता है। 

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