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पीएम मोदी की 'चाय पे चर्चा' से लेकर नीतीश के 'कैबिनेट' तक कैसे पहुंचे PK? अब बिहार में तलाश रहे नई मंजिल

प्रशांत किशोर यानी पीके कभी पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार के बेहद खास रहे हैं। दोनों ही शीर्ष नेताओं के चुनावी रणनीतिकार की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर बिहार में अपनी अलग पार्टी बनाकर नई मंजिल तलाशने में लगे हुए हैं।

Edited By: Dhyanendra Chauhan @dhyanendraj
Published : Oct 17, 2025 10:56 am IST, Updated : Oct 17, 2025 11:42 pm IST
प्रशांत किशोर- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर।

राजनीति के मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर (PK) का नाम आज बिहार की सियासत में जोरों-शोरों से घूम रहा है। देश की सियासत व बिहार की राजनीति में वह PK के नाम से जाने जाते हैं। कभी पीएम नरेंद्र मोदी की 'चाय पे चर्चा' से भाजपा को सत्ता की कुंजी सौंपने वाले, तो कभी नीतीश कुमार के कंधे पर चढ़कर JDU को मजबूत करने वाले पीके अब अपनी ही पार्टी 'जन सुराज' के बैनर तले बिहार को नई दिशा देने का दावा कर रहे हैं। इन सब के बीच, सवाल वही पुराना है, क्या ये रणनीतिकार अब खिलाड़ी बन पाएंगे या फिर वोटों की बाजीगरी में फिर से किसी और की झोली भरेंगे?

चाय पे चर्चा से शुरू हुई राजनीतिक यात्रा

पीके की कहानी 2014 के लोकसभा चुनाव से शुरू होती है। संयुक्त राष्ट्र में काम कर चुके इस बिहारी बाबू ने गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के लिए 'सिटिजंस फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस' (CAG) नाम की संस्था बनाई। यहां से निकला 'चाय पे चर्चा' कैंपेन काफी पॉपुलर हुआ। 

लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की ऐसे चमकाई छवि

2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एक साधारण सी चाय की दुकान पर युवाओं को जोड़ने वाली मुहिम, जो नरेंद्र मोदी की 'आम आदमी' वाली छवि को चमकाने में कामयाब रही। चुनावी प्रचार में 3डी होलोग्राम रैलियां, 'रन फॉर यूनिटी' और 'मंथन' जैसे आइडियाज पीके की देन थे। नतीजा ये रहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक 282 सीटें जीतीं। इसके बाद पीके ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, वो पीएम मोदी के करीबी बन गए, लेकिन जल्द ही सियासी पारी में भी आ गए।

जानिए कैसे हुए नीतीश के कैंप में एंट्री?

2014 के बाद पीके ने भाजपा को अलविदा कह दिया। नीतीश कुमार से मुलाकात उनके करियर का टर्निंग पॉइंट बनी। 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में पीके ने नीतीश-लालू के महागठबंधन को संभाला। 'बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है' जैसे नारों ने JDU-RJD गठजोड़ को 178 सीटें दिलाईं। जीत के बाद नीतीश ने पीके को JDU का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया और कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। ये वो दौर था जब  पीके को पर्दे के पीछे से बिहार की सियासत रचने वाला 'चाणक्य' कहा जाने लगा।  

जब नीतीश कुमार से हुआ मतभेद

लेकिन 2020 में सब बदल गया। एनआरसी-सीएए पर नीतीश कुमार से मतभेद हुआ, पीके ने पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। नीतीश कुमार ने कहा, 'अमित शाह के कहने पर ही शामिल किया था।' इस पर पीके ने पलटवार किया और नीतीश कुमार को 'झूठा' तक कह दिया। 

नीतीश से ब्रेकअप के बाद जन सुराज का जन्म

नीतीश कुमार से नाता टूटने के बाद पीके ने पंजाब, बंगाल, यूपी जैसी जगहों पर रणनीति बनाई। कभी ममता बनर्जी के लिए, कभी स्टालिन के लिए रणनीती बनाई। हालांकि, बिहार उनकी जन्मभूमि रही। 2022 में उन्होंने 'जन सुराज' अभियान लॉन्च किया। दो साल की 3,000 किलोमीटर से ज्यादा की पदयात्रा  की। पीके ने गांव-गांव जाकर बेरोजगारी, पलायन और कुशासन पर सवाल उठाए। अक्टूबर 2024 में जन सुराज पार्टी बनी। पीके ने वादा किया कि बिहार को 10 साल में विकसित राज्य बनाना है। पीके ने कहा, 'नीतीश-लालू के 35 सालों में बिहार पिछड़ा, अब जनता का राज आएगा।' बिहार की सभी विधानसभा क्षेत्र में जाकर उन्होंने जनता के बीच प्रचार-प्रसार किया। 

चुनाव में ऐसे समीकरण बैठा रहे PK

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर पीके ने 243 में से सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारें हैं, इनमें से ज्यादातर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया गया है। पीके ने ज्यादातर टिकट महिलाओं को मुस्लिम-हिंदू गठजोड़ का फॉर्मूला बनाया है। नीतीश कैबिनेट पर पीके ने हमले जारी कर रखे हैं। पीके की रणनीति युवा, ईबीसी और महिलाओं को जोड़ना है। क्या पीके की जन सुराज पार्टी सत्ता की मंजिल तक पहुंचेगी या किंग मेकर साबित होगी? इस बात का फैसला बिहार की जनता ही करेगी। 

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