बिहार चुनाव का अपना खास इतिहास रहा है। आज जहां चुनावी मंच से सत्ता पक्ष और विपक्ष की जुबानी जंग कभी कभी ऐसी तीखी होती है कि सुनकर दुख होता है। बहस और आरोप-प्रत्यारोप के दौरान तो लोग एक दूसरे को अपशब्द बोलने तक में परहेज नहीं करते। बात मां और बहन तक पहुंच जाती है। लेकिन यही बिहार जिसमें चुनाव की ऐसी कहानियां अतीत में दबी हैं जिन्हें आज सुनकर आपको हैरानी होगी, साथ ही आप ये भी कहेंगे-क्या कभी ऐसे भी नेता थे और ऐसा भी होता था चुनाव। ऐसा ही एक किस्सा है कोसी के दो राजनेताओं परमेश्वर कुमर और लहटन चौधरी की, जो एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी भी थे और अच्छे दोस्त भी।
दो दोस्तों की सियासी कहानी
आजादी के बाद दो दोस्त लहटन चौधरी और परमेश्व कुंवर ने अलग अलग सियासी पार्टियों में रहकर अपनी राजनीति की शुरुआ की, जहां लहटन ने कांग्रेस ज्वाइन किया, वहीं परमेश्वर कुंवर ने सोशलिस्ट पार्टी का दामन थामा। वो 60 का दशक था जब दोनों दोस्त चुनावी राजनीति में एक-दूसरे के धुर प्रतिद्वंद्वी रहे, लेकिन दोनों के बीच की दोस्ती इतनी गहरी थी कि चुनाव प्रचार के दौरान जब दोनों नेता मिलते थे, तो घंटों एक दूसरे से हंसी मजाक किया करते थे।
दोनों के बीच मजाक भी ऐसा कि चुनाव प्रचार के दौरान कहते थे, इस बार आपकी नहीं, मेरी बारी है। ऐसा ही एक वाकया है जब एक बार चुनाव प्रचार के दौरान परमेश्वर कुंवर की जीप में फ्यूएल खत्म हो गया, जब ये बात लहटन चौधरी को पता चली तो वो अपना चुनाव प्रचार छोड़कर अपनी जीप से फ्यूएल निकालकर परमेश्वर कुंवर की गाड़ी में डलवाया।
हम अपने लिए मांग रहे, आप अपने लिए मांगिए
तो वहीं एक बार लहटन चौधरी की गाड़ी प्रचार के दौरान खराब हो गई तो जब यह बात परमेश्वर कुंवर पता चली, तो वे अपनी गाड़ी का झंडा बैनर उतारकर लहटन चौधरी के पास पहुंचे और उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर सभा स्थल लेकर पहुंचे। इतना ही नहीं, एक ही गाड़ी में बैठे दोनों नेता रास्ते में जो भी मिल रहा था, उसे अपनी-अपनी पार्टी के लिए वोट करने की अपील भी करते रहे। इसपर, जब लहटन चौधरी ने परमेश्वर कुंवर से पूछा-हमारी इस हरकत से लोग क्या समझेंगे, तो परमेश्वर कुंवर ने हंसते हुए कहा, अरे क्या समझेंगे, हम अपने लिए मांग रहे और आप अपने लिए वोट मांगिए।
छोटा भाई बनकर लिया आशीर्वाद
साल 1977 के बिहार विधानसभा चुनाव का चुनाव आया तो दोनों दोस्त सहरसा की महिषी विधानसभा सीट पर आमने सामने थे। चौधरी सहरसा ज़िले की महिषी विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार थे, जिनका सीधा मुकाबला जनता पार्टी के कुंवर से था। नामांकन दाखिल करने के बाद, दोनों उम्मीदवारों ने इलाके में जनसंपर्क अभियान चलाया। इस दौरान, चौधरी नवहट्टा प्रखंड के तत्कालीन उपप्रमुख रावणेश्वर प्रसाद सिंह उर्फ डोमन सिंह के घर गए। सभा के बाद, उन्होंने गांव में घर-घर जाकर प्रचार शुरू किया। गांव में भगवान शिव के एक मंदिर की ओर जाते हुए, चौधरी ने अपने प्रतिद्वंद्वी कुंवर को समर्थकों के साथ अपनी ओर आते देखा और रुक गए।
चौधरी को देखते ही कुंवर झुके और उनके पैर छूकर छोटे भाई की तरह उनका आशीर्वाद लिया। चौधरी ने भी उन्हें खुशी और जीत का आशीर्वाद दिया। जैसे ही चौधरी आगे बढ़ने लगे, कुंवर ने उन्हें रोका और पूछा, "क्या मैं छोटा भाई हूं?" चौधरी मुस्कुराए, और बिना एक पल भी गंवाए, उन्हें फिर से जीत का आशीर्वाद दिया और आगे बढ़ने लगे, तो कुंवर ने उन्हें फिर से टोकते हुए पूछा, "अब आप कहां जा रहे हैं? अपने छोटे भाई को जीत का आशीर्वाद देने के बाद आप चुनाव प्रचार कैसे कर सकते हैं?"
ऐसी थी सियासी दोस्ती
यह सुनकर चौधरी मुस्कुराए और बोले, "आप सही कह रहे हैं।" इतना कहकर उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का मन बनाया और फिर उस इलाके से निकलकर सीधे अपने गांव कर्णपुर चले गए। चौधरी उन दिनों कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। 1952 में बिहार के पहले चुनाव के बाद, वे सुपौल विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। इसके बाद, 1964 में वे सहरसा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। जब कुंवर विधानसभा चुनाव जीते, तब महिषी विधानसभा क्षेत्र नया बना था। 1969 में चौधरी ने एक बार फिर महिषी सीट से चुनाव जीता, और 1972, 1980 और 1985 में भी जीतते रहे।