गुवाहाटी: असम सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अंतर-धार्मिक जमीन हस्तांतरण के लिए एक विशेष प्रक्रिया (SOP) को मंजूरी दी है। इसका मकसद है कि ऐसी जमीन की खरीद-बिक्री को गहराई से जांचा जाए ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक ताने-बाने और पारदर्शिता को सुनिश्चित किया जा सके। मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने बुधवार को कैबिनेट बैठक के बाद इसकी जानकारी दी। आइए, इस नई प्रक्रिया को आसान भाषा में समझते हैं कि यह क्या है, कैसे काम करेगी और इसका असम के लिए क्या मतलब है।
क्या है असम सरकार की यह नई प्रक्रिया?
असम सरकार ने फैसला किया है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी जमीन किसी अलग धर्म के व्यक्ति को बेचना चाहता है, तो उसकी गहन जांच होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर कोई मुस्लिम किसी हिंदू की जमीन खरीदना चाहता है या इसका उल्टा भी हो तो इसे पहले SOP का पालन करते हुए जांचा-परखा जाएगा। इस जांच में कई पहलुओं को देखा जाएगा, जैसे:
- धोखाधड़ी की आशंका: क्या इस सौदे में कोई फ्रॉड या गैरकानूनी गतिविधि तो नहीं?
- पैसे का स्रोत: जमीन खरीदने वाला पैसा कहां से ला रहा है?
- सामाजिक प्रभाव: क्या इस हस्तांतरण से इलाके की सामाजिक शांति पर असर पड़ेगा?
- राष्ट्रीय सुरक्षा: क्या इस सौदे से देश की सुरक्षा को कोई खतरा हो सकता है?
एक बार फिर बता दें कि यह प्रक्रिया तब लागू होगी जब खरीदार और बेचने वाले अलग-अलग धर्मों के हों। अगर दोनों एक ही धर्म के हों, तो यह SOP लागू नहीं होगी।

कैसे होगी जमीन की खरीद-बिक्री की जांच?
असम सरकार की इस नई प्रक्रिया के तहत जमीन हस्तांतरण की हर अर्जी को कई चरणों से गुजरना होगा:
- अर्जी जमा करना: जमीन हस्तांतरण की अर्जी सबसे पहले जिला आयुक्त (DC) को दी जाएगी।
- राजस्व विभाग को भेजना: DC इस अर्जी को राज्य के राजस्व विभाग को भेजेगा।
- विशेष शाखा की जांच: राजस्व विभाग का एक नोडल अधिकारी इस अर्जी को असम पुलिस की स्पेशल ब्रांच को सौंपेगा। यह शाखा सौदे की पूरी पड़ताल करेगी। वे देखेंगे कि कहीं कोई धोखाधड़ी, जबरदस्ती या गैरकानूनी काम तो नहीं हो रहा। साथ ही, खरीदार के पैसे के स्रोत और इलाके के सामाजिक माहौल पर असर की भी जांच होगी।
- अंतिम फैसला: जांच के बाद विशेष शाखा अपनी रिपोर्ट राजस्व विभाग को भेजेगी। इसके आधार पर जिला आयुक्त अंतिम फैसला लेगा कि सौदा मंजूर करना है या नहीं।
NGOs पर भी लागू होगी प्रक्रिया
यह SOP सिर्फ व्यक्तियों तक सीमित नहीं है। अगर कोई बाहरी NGO (गैर-सरकारी संगठन) असम में जमीन खरीदकर स्कूल, अस्पताल या दूसरी सुविधाएं बनाना चाहता है, तो उसे भी इस प्रक्रिया से गुजरना होगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि कुछ NGOs ने बारपेटा, कछार और श्रीभूमि जिलों में जमीन खरीदने की कोशिश की है। उन्होंने बताया कि इनमें से कई NGOs केरल से हैं। ऐसे में यह प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी कि उनकी मंशा और फंडिंग की जांच हो।

आखिर क्यों जरूरी है यह कदम?
मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि असम एक संवेदनशील राज्य है। यहां जमीन के सौदों को बहुत सावधानी से देखना जरूरी है ताकि सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय सुरक्षा बनी रहे। उन्होंने कहा, 'हमारा मकसद यह सुनिश्चित करना है कि हर सौदा पारदर्शी हो और उसका कोई गलत असर न पड़े।'
क्या है इस SOP का मकसद?
यह नई प्रक्रिया असम में जमीन के सौदों को और पारदर्शी बनाने की कोशिश है। सरकार का कहना है कि इससे न सिर्फ धोखाधड़ी रुकेगी, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय हितों की रक्षा भी होगी। खासकर उन इलाकों में जहां अलग-अलग समुदाय रहते हैं, वहां यह प्रक्रिया सामंजस्य बनाए रखने में मदद कर सकती है। हालांकि, कुछ लोग इसे जटिल प्रक्रिया मान सकते हैं, लेकिन सरकार का मानना है कि यह लंबे समय में फायदेमंद होगा। इस प्रक्रिया से यह भी सुनिश्चित होगा कि असम की जमीन का इस्तेमाल सिर्फ सही मकसद के लिए हो। (PTI इनपुट्स के साथ)


