Tuesday, December 09, 2025
Advertisement
  1. Hindi News
  2. Explainers
  3. Explainer: नई शिक्षा नीति के तीन भाषा वाले फॉर्मूले का विरोध क्यों कर रहा तमिलनाडु, एक सदी से चला आ रहा विवाद है असली वजह

Explainer: नई शिक्षा नीति के तीन भाषा वाले फॉर्मूले का विरोध क्यों कर रहा तमिलनाडु, एक सदी से चला आ रहा विवाद है असली वजह

तमिलनाडु में छात्रों को अंग्रेजी और तमिल की शिक्षा दी जाती है। अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी भी पढ़ाई जाती है। तमिलनाडु कई दशक से हिंदी विरोध के कारण राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों का विरोध करता रहा है।

Edited By: Shakti Singh
Published : Feb 28, 2025 01:20 pm IST, Updated : Feb 28, 2025 01:20 pm IST
MK Stalin PM Modi- India TV Hindi
Image Source : PTI तमिलनाडु का भाषा विवाद कई दशक पुराना है

केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को समग्र शिक्षा योजना के तहत मिलने वाला पैसा देने से मना कर दिया है। केंद्र का कहना है कि तमिलनाडु ने नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लागू करने से इनकार कर दिया है। इसी वजह से राज्य को समग्र शिक्षा योजना का फंड नहीं दिया जा रहा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि केंद्र सरकार ने अब तक 2,152 करोड़ रुपये जारी नहीं किए हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम को प्रावधानों को लागू करने के लिए इस फंड की जरूरत है। स्टालिन केंद्र सरकार से जल्द ही फंड रिलीज करने की मांग की थी।

स्टालिन ने यह भी कहा कि हिंदी सिर्फ मुखौटा है और केंद्र सरकार की असली मंशा संस्कृत थोपने की है। उन्होंने कहा कि हिंदी के कारण उत्तर भारत में अवधी, बृज जैसी कई बोलियां खत्म हो गईं। राजस्थान का उदाहरण देते हुए स्टालिन ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार वहां उर्दू को हटाकर संस्कृत थोपने की कोशिश कर रही है। अन्य राज्यों में भी ऐसा होगा। इसलिए तमिलनाडु इसका विरोध कर रहा है। दरअसल यह विवाद लगभग एक सदी से चला आ रहा है। आइए जानते हैं इसकी जड़ कहां है।

क्या है असली विवाद?

एमके स्टालिन ने गुरुवार को कहा कि केंद्र ने तमिल जैसी भाषाओं को खत्म करने और संस्कृत को थोपने की योजना बनाई है। स्टालिन ने कहा कि द्रविड़ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई ने दशकों पहले राज्य में द्विभाषा नीति लागू की थी, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि ‘‘हिंदी-संस्कृत के माध्यम से आर्य संस्कृति को थोपने और तमिल संस्कृति को नष्ट करने के लिए कोई जगह नहीं है। स्टालिन के बयान से ही साफ है कि तमिलनाडु के नेता 'आर्यन इन्वेजन थ्योरी' पर यकीन करते हैं। इस थ्योरी के अनुसार दक्षिण भारतीय लोग भारत के मूल निवासी हैं और उत्तर भारत के लोग बाहरी आक्रमणकारियों के वंशज हैं, जो यहीं बस गए। ऐसे में तमिल नेता हिंदी के जरिए आर्यन संस्कृति का विरोध करते हैं।

तमिलनाडु में कई नेताओं ने कहा कि संस्कृत के जरिए उनकी पुरानी विरासत को खत्म करने की कोशिश हो रही है। इसी वजह से तमिलनाडु हमेशा से ही हिंदी और संस्कृत का विरोधी रहा है। 1963 में जब हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव आया तब तमिलनाडु में हिंसक आंदोलन शुरू हो गए। 70 लोगों की मौत के बाद 1967 में भाषा नीति में संशोधन हुआ और हिंदी के साथ अंग्रेजी भी आधिकारिक भाषा बनी रही। इसके बाद 1986 में राजीव गांधी की सरकार को भी इसी मुद्दे पर विरोध झेलना पड़ा।

नवोदय स्कूल भी ठुकराए

केंद्र सरकार ने देश के हर जिले में नवोदय विद्यालय स्थापित किए हैं। नियम के अनुसार हर नवोदय विद्यालय में छठी से नौवीं तक तीन भाषाएं पढ़ाई जाती हैं। इनमें हिंदी और अंग्रेजी अनिवार्य हैं और तीसरी भाषा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है। तमिलनाडु सरकार को हिंदी से इतनी आपत्ति थी कि अब तक राज्य के किसी भी जिले में कोई नवोदय स्कूल नहीं खुला है। तमिलनाडु छोड़कर देश के सभी राज्यों में छात्रों को तीन भाषाएं पढ़ाई जाती हैं, लेकिन तमिलनाडु में छात्र सिर्फ तमिल और अंग्रेजी ही पढ़ते हैं।

क्या है तीन भाषा वाला फॉर्मूला?

1948-49 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अगुआई वाले विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने इस विषय पर विस्तार से जांच की थी और कहा था कि अचानक से अंग्रेजी की जगह हिंदी को आधिकारिक भाषा बना देना उचित नहीं होगा। आयोग ने कहा था कि हिंदी को संघीय भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए और स्थानीय भाषाएं राज्यों के लिए होनी चाहिए। धीरे-धीरे करके अंग्रेजी को हटाया जा सकता है। इसके लिए पूरे देश में हिंदी का प्रचार प्रसार जरूरी है। इसी आधार पर देश की शिक्षा नीतियां तय की गईं और हर बार तमिलनाडु ने नई शिक्षा नीति का विरोध किया। 

आयोग ने कहा था कि कॉलेज में पढ़ने वाले हर छात्र को अपनी क्षेत्रीय भाषा के अलावा देश की कोई दूसरी भाषा का भी ज्ञान होना चाहिए। इसके साथ ही वह अंग्रेजी पढ़ने-लिखने में भी सक्षम हो। यहीं से तीन भाषा वाले फॉर्मूले की शुरुआत हुई। इस प्रस्ताव को 1964-66 के राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने स्वीकार किया और इसे इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में शामिल किया गया। राजीव गांधी सरकार द्वारा पारित 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति और 2020 की नवीनतम एनईपी में भी इस फॉर्मूले को को बरकरार रखा गया है।

नई शिक्षा नीति में ऐसा क्या?

नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि हर स्कूल में तीन भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। 2020 की एनईपी में हिंदी का कोई उल्लेख नहीं है। नीति में कहा गया है कि बच्चों को पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों की पसंद होंगी। हालांकि, तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं होना जरूरी है। इसका मतलब यह है कि एक राज्य कोई भी दो भारतीय भाषाएं सिखा सकता है, जिनमें से कोई भी हिंदी और अंग्रेजी नहीं है। तमिलनाडु में फिलहाल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। शिक्षा नीति के अनुसार तीसरी भाषा के रूप में यहां हिंदी या संस्कृत, कन्नड़, तेलगू या कोई अन्य भारतीय भाषा पढ़ाई जा सकती है, लेकिन एमके स्टालिन का कहना है कि केंद्र सरकार तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत को ही थोपेगी। इसलिए वह इसका विरोध कर रहे हैं।

Google पर इंडिया टीवी को अपना पसंदीदा न्यूज सोर्स बनाने के लिए यहां
क्लिक करें

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। News in Hindi के लिए क्लिक करें Explainers सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement